टीकमगढ़। बुंदेलखंड का जतारा मदन सागर तालाब के कारण एक अलग पहचान रखता है. जतारा की बात करें तो चौथी शताब्दी में सम्राट चंद्रगुप्त के शासन के दौरान जतारा के अस्तित्व के प्रमाण इलाहाबाद के शिलालेखों में मिले हैं. जतारा का इतिहास राजपूत और मुगलों के खट्टे-मीठे अनुभवों का गवाह है. सातवीं-आठवीं शताब्दी में चंदेल राजा जय शक्ति का शासन था, उनकी रानी का नाम तारा देवी था. राजा जय शक्ति की मौत के बाद रानी तारा देवी ने यहां राज किया. कहा जाता है कि रानी की जयकार के कारण जयतारा से जतारा नाम पड़ा. जय शक्ति ने गौरैया मंदिर की पहाड़ी पर किला बनाया था. चंदेल राजा मदन वर्मा ने 12वीं शताब्दी में जतारा में मदन सागर तालाब की नींव रखी थी. ओरछा महाराजा ने 1602 ईसवी में जतारा जहांगीर सलीम को बुलवाया. जहांगीर जतारा में ही रुक गया. तब जतारा का नाम सलीमाबाद हो गया. इसके बाद सलीम शाह ने जतारा को अधिकार में ले लिया और नाम इस्लामाबाद रखा. जतारा के राजा भारती चंद ने सलीम शाह को हराकर इस्लामाबाद को अपने अधिकार में लिया और फिर जतारा नाम से जाना जाने लगा.
हरिशंकर का किरण ने मुकाबला: टीकमगढ़ की जतारा सीट से 17 प्रत्याशी मैदान में हैं. भाजपा ने खटीक हरिशंकर को प्रत्याशी बनाया है. वहीं कांग्रेस ने अहिरवार किरन के नाम पर मोहर लगाई है. इसके अलावा आम आदमी पार्टी, सपा और बसपा ने भी प्रत्याशी उतारे हैं.
जतारा विधानसभा परिचय: जतारा विधानसभा क्षेत्र परिसीमन के बाद 2008 से अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है. जतारा 1951 में तत्कालीन विंध्य प्रदेश की 48 विधानसभा में से एक था. जतारा टीकमगढ़ जिले की 3 विधानसभा में से एक है. जो 2008 परिसीमन के बाद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. जतारा विधानसभा लिधोरा नगर पंचायत, जतारा और पलेरा तहसील के कुछ हिस्सों को मिलाकर बना है.
जतारा का राजनीतिक इतिहास: जतारा विधानसभा एक ऐसी सीट है, जहां भाजपा कांग्रेस के अलावा बसपा और सपा जैसे दल भी मुकाबले में रहते हैं. हालांकि जतारा की पहचान बीजेपी के गढ़ के तौर पर है, लेकिन कडे़ मुकाबले में यहां जीत और हार के परिणाम चौकाने वाले होते हैं. 1990 से लेकर अब तक सात चुनावों में पांच बार भाजपा और दो बार कांग्रेस जीती है.
विधानसभा चुनाव 2008: जतारा में 2008 विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष देखने को मिला. खास बात ये है कि कांग्रेस यहां पर पांचवे स्थान पर रही. 2008 में भाजपा के हरीशंकर खटीक के लिए 20 हजार 389 मत मिले, तो बीजेएसएच के दिनेश अहिरवार को 19 हजार 542 और बसपा के लक्ष्मण प्रसाद अहिरवार को 17 हजार 958 वोट मिले. वहीं सपा के संतोष प्रजापति 8 हजार 568 वोटों के साथ चौथे स्थान पर रहे और कांग्रेस के पर्वतलाल अहिरवार को सिर्फ 7 हजार 750 वोट मिले. इस तरह भाजपा के हरीशंकर खटीक 1 हजार 297 वोटों से चुनाव जीत गए.
विधानसभा चुनाव 2013: विधानसभा चुनाव 2013 में कांग्रेस के प्रत्याशी दिनेश अहिरवार को 51 हजार 149 वोट मिले और भाजपा के हरीशंकर खटीक को 50 हजार 916 वोट मिले. इस तरह कडे़ मुकाबले में कांग्रेस के दिनेश अहिरवार 233 वोट से जीत हासिल करने में कामयाब रहे.
विधानसभा चुनाव 2018: 2013 की नजदीकी हार का बदला लेने में हरीशंकर खटीक कामयाब रहे और उन्होंने 63 हजार 315 वोट हासिल किए. साल 2018 में जतारा सीट से कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारा था. दूसरे स्थान पर महान दल के आरआर बंसल रहे, जिन्हें 26 हजार 600 वोट मिले. इस तरह हरिशंकर खटीक 36 हजार 715 वोट लेकर चुनाव जीत गए.
जतारा का जातीय समीकरण: जतारा विधानसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर अहिरवार और बशंकार मतदाता निर्णायक स्थिति में होते हैं. इसके अलावा कुशवाहा, यादव और अन्य समाज भी यहां हार जीत के फैसले में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
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चुनावी मुद्दे: जतारा की बात करें तो इसका हाल भी बुंदेलखंड के दूसरे पिछडे़ इलाकों की तरह है. यह कृषि प्रधान विधानसभा क्षेत्र में सिंचाई की सुविधाओं की कमी के कारण किसान अच्छे से खेती भी नहीं कर पाता है. अनुसूचित जाति का बड़ा तबका मजदूरी पर निर्भर है, लेकिन रोजगार के साधन ना होने के कारण पलायन के लिए मजबूर हैं. स्वास्थ्य सुविधाओं के हाल बदहाल और इलाके के कई गांव सडक के माध्यम से शहर से नहीं जुड पाए हैं.
कौन-कौन दावेदार: पिछले विधानसभा चुनाव में 36 हजार ज्यादा मतों से चुनाव जीतने वाले हरीशंकर खटीक इस सीट के प्रबल दावेदार हैं, लेकिन टीकमगढ़ सांसद और केंद्रीय मंत्री वीरेन्द्र खटीक का नाम भी तेजी से सामने आया है. वहीं मुकेश अहिरवार, विवेक बंटी अहिरवार भी टिकट की मांग कर रहे हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस से किरण अहिरवार, पंकज अहिरवार, आर आर बंसल, वृंदावन अहिरवार, कमलेश वर्मा प्रमुख दावेदार हैं.