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रैगिंग के मामले में एमपी टॉप 3 राज्यों में, कानून को लेकर सरकार गंभीर, विधि विभाग से मांगा अभिमत - मध्य प्रदेश विधि आयोग

मध्यप्रदेश में रैगिंग की घटनाओं पर रोकथाम के लिए राज्य शासन कानून लाने पर विचार कर रहा है. जिसके लिए मध्य प्रदेश विधि आयोग ने अभिमत मांगा है.

Madhya Pradesh government serious about Anti Ragging Act
मध्यप्रदेश शासन एंटी रैगिंग एक्ट को लेकर गंभीर
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Published : Nov 23, 2020, 6:54 AM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश में रैगिंग की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए राज्य शासन जल्द ही एंटी रैगिंग एक्ट लाने पर विचार कर रहा है. इसको लेकर मध्य प्रदेश विधि आयोग ने राज्य शासन को करीब 10 माह पहले रिपोर्ट सौंपी थी. रिपोर्ट में आयोग ने रैगिंग को रोकने इसे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में लाते हुए 3 साल तक की सजा और 25 हजार के जुर्माने की सिफारिश की है. राज्य शासन ने इसको लेकर विधि विभाग से अभिमत मांगा है. मध्य प्रदेश रैगिंग के मामले में देश में तीसरे स्थान पर है. रैगिंग की घटनाओं को रोकने 7 राज्य पहले ही कानून बना चुके हैं.

रैगिंग के मामले में एमपी टॉप 3 राज्यों में
रैगिंग के मामले में एमपी देश में तीसरे स्थान पर

तमाम सख्ती के बाद भी रैगिंग की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं. कई मामलों में तो स्टूडेंट शिकायत भी दर्ज नहीं कराते. पिछले 10 सालों में देश में रैगिंग की 6,958 शिकायतें दर्ज हुई. इनमें साल 2019 में 1,070 शिकायतें दर्ज की गई हैं. रैगिंग की घटनाओं के मामले में मध्यप्रदेश देश में तीसरे स्थान पर है. मध्यप्रदेश में 2009 से 2019 तक कुल 775 रैगिंग के मामले सामने आए हैं. इनमें 2019 में 132 मामले सामने आए. जबकि 2018 में 104, 2017 में 100 मामले सामने आए थे. जबकि 2016 में सिर्फ 55 मामले थे. इस साल 2020 में मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में रैगिंग की 19-19 घटनाएं सामने आ चुकी हैं. रैंगिग की घटनाओं को देखते हुए यूजीसी ने एक बार फिर देश के तमाम विश्वविद्यालयों को पत्र लिखकर रैगिंग की घटनाओं को सख्ती से रोकने के निर्देश दिए हैं.

7 राज्यों में बन चुका है रैगिंग को लेकर कानून

रैगिंग को रोकने के लिए 6 से अधिक राज्य पहले ही अलग से कानून बना चुके हैं. छत्तीसगढ़ राज्य में 2001 में ही एंटी रैगिंग एक्ट लाया जा चुका है. इसके अलावा आंध्र प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, केरल और उत्तर प्रदेश में भी यह कानून लाया जा चुका है. अब इसके बाद मध्यप्रदेश में भी ऐसा ही कानून लाने पर विचार किया जा रहा है. इसके लिए राज्य सरकार द्वारा गठित राज्य विधि आयोग ने शासन से इसे संज्ञेय अपराध बनाने की अनुशंसा की है और बिल का ड्राफ्ट शासन को सौंपा है. इसमें विधि आयोग ने 3 साल की सजा और 25 हजार रूपए के जुर्माने का प्रावधान किया है. राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस वेद प्रकाश के मुताबिक रैकिंग में कई बार बच्चे सुसाइड जैसे कदम भी उठा लेते हैं, इसलिए रैगिंग को रोकने सख्ती करने की जरूरत है. राज्य सरकार की अनुशंसा के लिए भेजे गए ड्राफ्ट में सजा और जुर्माने के प्रावधान के साथ यह भी अनुशंसा की गई है, कि सजा पा चुके छात्र को 3 साल तक किसी भी शिक्षण संस्थान में एडमिशन न दिया जाए.

रैगिंग रोकने के लिए यूजीसी की गाइडलाइन

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने देश भर के तमाम विश्वविद्यालयों कॉलेजों में रैगिंग की घटनाएं रोकने के लिए रैगिंग रोधी समिति, रैगिंग विरोधी दस्ते, प्रकोष्ठ के गठन के लिए कहा है, इसके अलावा कॉलेज परिसर में सीसीटीवी लगाने और सेमिनार आयोजित करने के लिए भी कहा गया है. वहीं हॉस्टल, कैंटीन, शौचालय जैसे स्थानों पर रैगिंग रोकने संबंधी पोस्टर लगाने के भी निर्देश हैं. रैगिंग के शिकार स्टूडेंट यूजीसी की हेल्पलाइन नंबर 1800 180 5522 पर भी सीधी शिकायत दर्ज करा सकते हैं.

भोपाल। मध्यप्रदेश में रैगिंग की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए राज्य शासन जल्द ही एंटी रैगिंग एक्ट लाने पर विचार कर रहा है. इसको लेकर मध्य प्रदेश विधि आयोग ने राज्य शासन को करीब 10 माह पहले रिपोर्ट सौंपी थी. रिपोर्ट में आयोग ने रैगिंग को रोकने इसे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में लाते हुए 3 साल तक की सजा और 25 हजार के जुर्माने की सिफारिश की है. राज्य शासन ने इसको लेकर विधि विभाग से अभिमत मांगा है. मध्य प्रदेश रैगिंग के मामले में देश में तीसरे स्थान पर है. रैगिंग की घटनाओं को रोकने 7 राज्य पहले ही कानून बना चुके हैं.

रैगिंग के मामले में एमपी टॉप 3 राज्यों में
रैगिंग के मामले में एमपी देश में तीसरे स्थान पर

तमाम सख्ती के बाद भी रैगिंग की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं. कई मामलों में तो स्टूडेंट शिकायत भी दर्ज नहीं कराते. पिछले 10 सालों में देश में रैगिंग की 6,958 शिकायतें दर्ज हुई. इनमें साल 2019 में 1,070 शिकायतें दर्ज की गई हैं. रैगिंग की घटनाओं के मामले में मध्यप्रदेश देश में तीसरे स्थान पर है. मध्यप्रदेश में 2009 से 2019 तक कुल 775 रैगिंग के मामले सामने आए हैं. इनमें 2019 में 132 मामले सामने आए. जबकि 2018 में 104, 2017 में 100 मामले सामने आए थे. जबकि 2016 में सिर्फ 55 मामले थे. इस साल 2020 में मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में रैगिंग की 19-19 घटनाएं सामने आ चुकी हैं. रैंगिग की घटनाओं को देखते हुए यूजीसी ने एक बार फिर देश के तमाम विश्वविद्यालयों को पत्र लिखकर रैगिंग की घटनाओं को सख्ती से रोकने के निर्देश दिए हैं.

7 राज्यों में बन चुका है रैगिंग को लेकर कानून

रैगिंग को रोकने के लिए 6 से अधिक राज्य पहले ही अलग से कानून बना चुके हैं. छत्तीसगढ़ राज्य में 2001 में ही एंटी रैगिंग एक्ट लाया जा चुका है. इसके अलावा आंध्र प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, केरल और उत्तर प्रदेश में भी यह कानून लाया जा चुका है. अब इसके बाद मध्यप्रदेश में भी ऐसा ही कानून लाने पर विचार किया जा रहा है. इसके लिए राज्य सरकार द्वारा गठित राज्य विधि आयोग ने शासन से इसे संज्ञेय अपराध बनाने की अनुशंसा की है और बिल का ड्राफ्ट शासन को सौंपा है. इसमें विधि आयोग ने 3 साल की सजा और 25 हजार रूपए के जुर्माने का प्रावधान किया है. राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस वेद प्रकाश के मुताबिक रैकिंग में कई बार बच्चे सुसाइड जैसे कदम भी उठा लेते हैं, इसलिए रैगिंग को रोकने सख्ती करने की जरूरत है. राज्य सरकार की अनुशंसा के लिए भेजे गए ड्राफ्ट में सजा और जुर्माने के प्रावधान के साथ यह भी अनुशंसा की गई है, कि सजा पा चुके छात्र को 3 साल तक किसी भी शिक्षण संस्थान में एडमिशन न दिया जाए.

रैगिंग रोकने के लिए यूजीसी की गाइडलाइन

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने देश भर के तमाम विश्वविद्यालयों कॉलेजों में रैगिंग की घटनाएं रोकने के लिए रैगिंग रोधी समिति, रैगिंग विरोधी दस्ते, प्रकोष्ठ के गठन के लिए कहा है, इसके अलावा कॉलेज परिसर में सीसीटीवी लगाने और सेमिनार आयोजित करने के लिए भी कहा गया है. वहीं हॉस्टल, कैंटीन, शौचालय जैसे स्थानों पर रैगिंग रोकने संबंधी पोस्टर लगाने के भी निर्देश हैं. रैगिंग के शिकार स्टूडेंट यूजीसी की हेल्पलाइन नंबर 1800 180 5522 पर भी सीधी शिकायत दर्ज करा सकते हैं.

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