टीकमगढ़। जिले के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने दिल्ली में अपनी नौकरी छोड़कर टीकमगढ़ में कड़कनाथ मुर्गे का पोल्ट्री फार्म शुरू किया है. अपनी पत्नी के साथ इंजीनियर नरेंद्र कुमार खेत में लगभग 5 हजार कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गों का पालन कर रहे हैं.
क्या खास है कड़कनाथ में
कड़कनाथ झाबुआ जिले में पाई जाने वाली खास प्रजाति है, जिसे जंगली मुर्गा भी कहा जाता है, कई लोग इसे कालामांसी कहते हैं, कड़कनाथ देशी मुर्गे से कई गुना लाभकारी होता है.
पशु चिकित्सक आरके जैन की माने तो कड़कनाथ प्रजाति का मुर्गा झाबुआ और अलीराजपुर जिले में पाया जाता है. इस काले रंग के मुर्गे का मांस और खून भी काला होता है. कड़कनाथ में देशी मुर्गों की अपेक्षा 25 फीसदी ज्यादा प्रोटीन पाया जाता है. इसके मांस का सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है. प्रोटीन के अलावा इसमें कैल्शियम, फास्फोरस, हीमोग्लोबीन और विटामिन पाए जाते हैं. कड़कनाथ मुर्गा लगभग 80 प्रकार की बीमारियों के लिए लाभदायक होता है.
पालन करना नहीं आसान
आम तौर पर मुर्गे 40 दिन में तैयार हो जाते हैं, लेकिन कड़कनाथ के चूजे से मुर्गा तैयार होने में 6 माह लगते हैं, इस मुर्गे का वजन 2 किलो से ज्यादा नहीं होता. यही वजह है कि आम तौर पर इसका पालन करना कठिन माना जाता है. ज्यादा स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर इस मुर्गे की कीमत 800 से एक हजार रुपये प्रति किलो तक होती है. इस मुर्गे की डिमांड राजधानी भोपाल, इंदौर और दिल्ली में सबसे ज्यादा होती है.