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टीकमगढ़: चाइनीज सामानों ने फींकी की कुम्हारों की दीपावली

चाइनीज सामानों से बाजार पटे पड़े हैं, इनकी वजह से कुम्हारों की दीपावली फींकी पड़ गई है, उनकी मेहनत की रोजी- रोटी पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

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Published : Oct 23, 2019, 3:16 PM IST

चाइनीज आइटमों ने फीकी की कुम्हारों की दिवाली

टीकमगढ़। बुंदेलखंड सहित पूरे देश में मिट्टी की कला और कलाकार दोनों ही संकट में हैं. कुशल कारीगर अपने हाथों से मिट्टी की कई प्रकार की कलाकृतियां बनाकर लोगों का दिल जीतने की कोशिश में लगे हैं लेकिन जाइनीज सामानों ने कुम्हारों की दीपावली को फींका कर दिया है, मिट्टी के कलाकार अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर हो गए हैं. जंगल से मिट्टी लाकर आकर्षक दीए और तमाम प्रकार की कलात्मक बर्तन बनाते हैं, लक्ष्मी पूजन के लिए घड़े, डबुलिया सहित तमाम प्रकार की कलाकृतियों को अपने हाथों से निर्मित करते हैं, जो देसी और शुद्ध मिट्टी के होते हैं, लेकिन आज चाइनीज समानों के आगे इनके माल को खरीददार नहीं मिल रहे हैं.

चाइनीज आइटमों ने फीकी की कुम्हारों की दिवाली

आधुनिकता की दौड़ में चाइनीज आइटम आगे

सैकड़ों सालों से कुम्हार मिट्टी से आकर्षक दीपक बनाते चले आ रहे हैं, लेकिन अब आधुनिकता की दौड़ में लोग चाइनीज आइटम को ज्यादा पसंद कर रहे हैं, जिससे इनकी कला पर ब्रेक लगता नजर आ रहा है. वहीं डर इस बात का है कि आने वाले समय में बुंदेलखंड से यह कला विलुप्त ना हो जाये.

खरीदनी पड़ती है मिट्टी

पहले प्रत्येक गांव में कुम्हार गड़ा के नाम से 3 एकड़ जमीन शाशन छोड़ता था, ताकि मिट्टी निकालकर अपनी कला और कलात्मक बर्तन बनाकर रोजी रोटी चला सकें, लेकिन अब गांवों में इनको जमीन भी नहीं दी जाती, जिससे यह मिट्टी निकालकर बर्तन बना सकें. पैसे देकर मिट्टी लेनी पड़ती है जिसे पकाने में काफी लकड़ी का इस्तेमाल होता है और तमाम प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, बावजूद इन सब के भी मार्केट में उन्हें मेहनत का पैसा नहीं मिलता है न ही प्रशासन से ही कोई मदद कुम्हारों को मिल रही है.

टीकमगढ़। बुंदेलखंड सहित पूरे देश में मिट्टी की कला और कलाकार दोनों ही संकट में हैं. कुशल कारीगर अपने हाथों से मिट्टी की कई प्रकार की कलाकृतियां बनाकर लोगों का दिल जीतने की कोशिश में लगे हैं लेकिन जाइनीज सामानों ने कुम्हारों की दीपावली को फींका कर दिया है, मिट्टी के कलाकार अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर हो गए हैं. जंगल से मिट्टी लाकर आकर्षक दीए और तमाम प्रकार की कलात्मक बर्तन बनाते हैं, लक्ष्मी पूजन के लिए घड़े, डबुलिया सहित तमाम प्रकार की कलाकृतियों को अपने हाथों से निर्मित करते हैं, जो देसी और शुद्ध मिट्टी के होते हैं, लेकिन आज चाइनीज समानों के आगे इनके माल को खरीददार नहीं मिल रहे हैं.

चाइनीज आइटमों ने फीकी की कुम्हारों की दिवाली

आधुनिकता की दौड़ में चाइनीज आइटम आगे

सैकड़ों सालों से कुम्हार मिट्टी से आकर्षक दीपक बनाते चले आ रहे हैं, लेकिन अब आधुनिकता की दौड़ में लोग चाइनीज आइटम को ज्यादा पसंद कर रहे हैं, जिससे इनकी कला पर ब्रेक लगता नजर आ रहा है. वहीं डर इस बात का है कि आने वाले समय में बुंदेलखंड से यह कला विलुप्त ना हो जाये.

खरीदनी पड़ती है मिट्टी

पहले प्रत्येक गांव में कुम्हार गड़ा के नाम से 3 एकड़ जमीन शाशन छोड़ता था, ताकि मिट्टी निकालकर अपनी कला और कलात्मक बर्तन बनाकर रोजी रोटी चला सकें, लेकिन अब गांवों में इनको जमीन भी नहीं दी जाती, जिससे यह मिट्टी निकालकर बर्तन बना सकें. पैसे देकर मिट्टी लेनी पड़ती है जिसे पकाने में काफी लकड़ी का इस्तेमाल होता है और तमाम प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, बावजूद इन सब के भी मार्केट में उन्हें मेहनत का पैसा नहीं मिलता है न ही प्रशासन से ही कोई मदद कुम्हारों को मिल रही है.

Intro:एंकर इन्ट्रो / टीकमगढ़ जिले में बुन्देलखण्ड के मिट्टी कलाकार ओर मिट्टी कला विलुप्त होने की कगार पर मेहनत के वाद नही नही मिलते बाजिव दाम कुम्हार जाती के लोग बन्द कर सकते मिट्टी के बर्तन बनाना चाइनीज आइटम ने रोजी रोटी छीनी


Body:वाइट् /01मुन्नालाल कुम्हार टीकमगढ़

वाइट् 02 सल्लू बाई कुम्हार टीकमगढ़

वाइस ओबर / टीकमगढ़ जिले में आजकल बुन्देलखण्ड की कला और कलाकार संकट में है !यह कुम्हार जाती के कुशल कारीगर अपने हाथों से मिट्टी से चक्के पर कई प्रकार की कलाकृतियां बनाकर लोगो का दिल जीतने बाले आज अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर है !यह लोग बड़ी मेहनत से जंगल से मिट्टी लाकर आकर्षक दीपक ओर तमाम प्रकार की कलात्मक बर्तन ओर दीपावली के सुराती ,लक्ष्मी पूजन को घड़े डबुलिया सहित तमाम प्रकार की कलाकृतियों को अपने हाथों से निर्मित करते है !जो देशी ओर सुद्ध मिट्टी के होते है !दीपावली पर पूजन में सुभ माने जाते है !मगर आज यह लोग अपने उदर पोषण को लेकर चिंतित है !इन कुम्हार जाती के लोगो के धनदे पर चाइनीज आइटम ने डांका डाला है जिससे यह लोग काफी परेसान है !यह लोग जगलो से मिट्टी लाकर ओर फिर उसको छानकर चक्के पर लगाकर बड़ी मेहनत से दीपक ओर बर्तन बनाते है !जिसमे लागत ज्यादा होती और मेहनत भी ज्यादा लेकिन इनका दीपक एक रुपया में भी लोग नही लेते क्योकि चाइनीज दीपक 50 पैसे में मिलता है !जिससे यह काफी परेसान है !और उनकी कोई सुनने बाला नही है !सेकड़ो सालो से कुम्हार जाती के यह लोग मिट्टी के आकर्षक दीपक बनाते चले आरहे है !लेकिन अब आधुनिकता की दौड़ में लोग चाइनीज आइटम ज्यादा पसंद कर रहे है !जिससे इनकी कला पर ब्रेक लगता नजर आरहा है !कही ऐसा न हो कि आने बाले समय मे बुन्देलखण्ड से यह कला विलुप्त हो जाये क्योकि जब इन को मेहनत के ही दाम न मिले तो रोजी रोटी कैसे चलेगी ऐसे में कुम्हार जाती के लोगो के सामने संकट की घड़ी दिखाई दे रही है !


Conclusion:टीकमगढ़ जिले के हजारो कुम्हारों के सामने रोजी रोटी की समस्या खड़ी हो गई पहिले समय मे इनके रोजी रोटी चलाने के लिए प्रत्येक गांव में कुम्हार गड़ा के नाम से 3 एकड़ जमीन शाशन छोड़ता था शासकीय की जिसमे से यहमिट्टी निकालकर अपनी कला और कलात्मक बर्तन बनाकर रोजी रोटी चला सके लेकिन अब तो गांवो में इनको जमीन भी नही जिससे यह मिट्टी निकालकर बर्तन बना सके अब तो इनको मिट्टी पैसे देकर लेनी पड़ती है बन बिभाग से ओर उसको पकाने में भी काफि लकड़ी लगती है !ओर तमाम प्रकार की दिक्कतें होती है !और इसके बाद भी मार्केट न मिलने पर उनकी मेहनत बेकार होती है!जिससे जिले में आज कुम्हार जाती के लोग आर्थिक मजबूरी से गुजर रहे है !इनको जिला प्रसासन भी कोई आर्थिक सहयोग नही करता ओर न ही उनकी आर्कषक कला को मार्किट देने में कोई सहयोग जिससे उनकी कला की डिमांड दिनों दिन घटटी जा रही और चाइनीज आइटम का बाजारो में बोल बाला है !इन सभी कुम्हारों ने अपनी पीड़ा हमे सुनाई
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