सीधी। जिले के बढोरा गांव में रहने वाले सूर्यभान प्रसाद तिवारी, जिन्होंने सेना में रहकर कई लड़ाइयां लड़ी. देश की सेवा के लिए कई बार उन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी. कई मेडल जीते. 1961 से 1977 तक उन्होंने सेना में अपनी सेवाएं दीं. अनेक मोर्चों पर तैनात रहे, लेकिन जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर जब उन्हें मदद की जरूर मदसूस हुई तो कोई सहारा नहीं मिल पाया. रिटायर्ड फौजी के पास आज न रहने के लिए घर है और न खाने के लिए अनाज. 1981 में पेंशन बंद होने से आज रिटायर्ड फौजी दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर है. सूर्यभान प्रसाद तिवारी ने भले ही फौजी रहते हुए तमाम जंगे लड़ी हो और जीती हों, लेकिन सरकारी उपेक्षा की वजह से आज वो अपने जिंदगी की जंग हार चुके हैं.
जेल की हो चुकी है सजा
दरअसल सूर्यभान तिवारी को परिवार द्वारा षड्यंत्र कर शिकार बनाया गया था. आपराधिक मामले में जेल की हवा खानी पड़ी, जिसके बाद 1981 से इनकी पेंशन बंद हो गई. ऐसे में अब तक किसी तरह गरीबी में जिंदगी काटते रहें, परिवार का विस्तार होता गया और आर्थिक संकट गहराता चला गया.
दाने-दाने को मोहताज
आज सूर्यभान एक कच्चे मकान में रहते हैं, जो बारिश में कभी भी गिर सकता है. थोड़ी बहुत खेती किसानी है, जिससे इनका और इनके परिवार का पेट भरता है, लेकिन अब इनका गुजारा होना मुश्किल हो रहा है. पेंशन पाने के लिए अनेक दफ्तरों में चक्कर काट चुके हैं, अब जिला प्रशासन से पेंशन की गुहार लगा रहे हैं. रिटायर्ड फौजी के बेटे का कहना है कि, परिवार की माली हालत खराब है. पिता फौज में रहे, लेकिन पेंशन बंद होने की वजह से आज दाने-दाने को मोहताज हैं
जिला प्रशासन से लगाई मदद की गुहार
बदहाली की जिंदगी जी रहे फौजी ने पेंशन के लिए सालों इंतजार किया, लेकिन अब उनकी हिम्मत धीरे-धीरे जवाब देने लगी है. अपनी गरीबी की जिंदगी से तंग आकर जिला कलेक्टर से मदद की गुहार लगाई. जहां कलेक्टर ने पीड़ित परिवार को न्याय का भरोसा दिलाया है. बहरहाल जिसने देश के लिए अपनी जवानी फौज में लगा दी. 3 लड़ाइयां लड़कर मेडल हासिल किया, लेकिन व्यवस्था से नहीं लड़ सके.