सीधी। सिहावल सीट मध्य प्रदेश की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है. यहां से कांग्रेस ने कामलेश्वर इंद्रजीत कुमार को मैदान में उतारा है. तो वहीं, बीजेपी विश्वमित्र पाठक को टिकट दिया है. इधर रानी वर्मा को बहुजन समाज पार्टी ने टिकट दिया है. अब देखना है, कि कौन यहां से जीत का परचम लहराएगा. सिहावल विधानसभा में 2023 में कुल मिलाकर क्या परिदृश्य रहेगा इस विश्लेषण से समझे.
आर्थिक गतिविधि: सिहावल विधानसभा की भौगोलिक स्थिति इस विधानसभा को कुछ खास बनाती है. यह एक तरफ उत्तर प्रदेश के बनारस के बहुत करीब है और दूसरी ओर सिंगरौली से जुड़ी हुई है. इस विधानसभा के ज्यादातर लोग खेती, किसानी पर निर्भर हैं. यहां बाणसागर परियोजना की नहर की वजह से खेती किसानी बहुत अच्छी होती है और गेहूं और धान की फसल का उत्पादन किया जाता है. हालांकि उनके पास कोई कैश क्रॉप नहीं है. गेहूं और धान का अच्छा उत्पादन होने की वजह से यहां किसान परंपरागत खेती ही कर रहे हैं. लेकिन पानी की उपलब्धता अच्छी होने से इस इलाके में समृद्धि है. जनसंख्या की दृष्टि से देखा जाए तो इस विधानसभा में सबसे ज्यादा कुर्मी. पटेल समाज के लोग रहते हैं. इनकी तादाद यहां लगभग 40% है. इसके बाद ब्राह्मण भी यहां बड़ी तादाद में हैं. एससी और एसटी की तादाद भी लगभग 30% है. कुल मिलाकर यह विधानसभा कुर्मी बाहुल्य है और इसी का फायदा लंबे समय से इस विधानसभा से एक ही परिवार को मिला है. वर्तमान में इस परिवार के कमलेश्वर पटेल विधायक हैं. इसके पहले इनके पिता इंद्रजीत पटेल से सिहावल विधानसभा से जीत कर आते रहे हैं.
राजनीति में परिवारवाद: बीते तीन चुनाव का यदि हम अलोकन करें तो सिहावल विधानसभा में मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ही मुख्य राजनीतिक दल है. कांग्रेस नेता इंद्रजीत पटेल इस विधानसभा क्षेत्र से लंबे समय तक विधायक रहे हैं. वे मध्य प्रदेश के शिक्षा मंत्री भी थे. लेकिन 2008 के चुनाव में उन्हें भारतीय जनता पार्टी से उम्मीदवार विश्वामित्र पाठक ने 1000 वोटों से हरा दिया था. 2013 में इंद्रजीत पटेल की जगह उनके लड़के कमलेश्वर पटेल की एंट्री हुई. कमलेश्वर पटेल ने अपने पिता की हार का बदला लिया और विश्वामित्र पाठक को 32000 वोटो से हराया. विश्वामित्र पाठक भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी थे. 2018 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस के कमलेश्वर पटेल विधानसभा चुनाव में थे. लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी ने विश्वामित्र पाठक की जगह शिव बहादुर चंदेल को चुनाव मैदान में उतारा. भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद थी विश्व बहादुर चंदेल चुनाव जीत जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. एक बार फिर कमलेश्वर पटेल 32000 वोटों से जीत गए. 2023 के चुनाव में कांग्रेस की ओर से फिर कमलेश्वर पटेल ही उम्मीदवार होंगे. लेकिन भारतीय जनता पार्टी इस बार विश्वामित्र पाठक को चुनाव मैदान में उतर सकती है.
कमलेश्वर पटेल का दबदबा: पिछले विधानसभा चुनाव में सीधी जिले से राजनीति करने वाले अर्जुन सिंह के पुत्र राहुल सिंह चुनाव हार गए थे और उसका फायदा कमलेश्वर पटेल को मिला और उन्होंने अपने राजनीतिक स्थिति मजबूत कर ली. कमलनाथ सरकार में भी कमलेश्वर पटेल मंत्री रहे.
शिक्षा स्वास्थ्य के बुरे हाल: पटेल परिवार लंबे समय से सिहावल विधानसभा का प्रतिनिधित्व करता आ रहा है. उनके खुद के एजुकेशन इंस्टिट्यूट हैं. इंद्रजीत पटेल खुद शिक्षा मंत्री रहे, लेकिन इसके बावजूद इस इलाके में शिक्षा की स्थिति बहुत खराब है. यहां एकमात्र सरकारी कॉलेज है जिसमें केवल ग्रेजुएशन तक की शिक्षा होती है. इसलिए यहां के लोगों को पढ़ाई के लिए पलायन करना पड़ता है और लोग बनारस और उत्तर प्रदेश की तरफ जाते हैं. इस पूरे इलाके में कोई भी शहरी क्षेत्र नहीं है. बल्कि 113 ग्राम पंचायत से यह विधानसभा बनती है. शिक्षा के अलावा यहां स्वास्थ्य की भी स्थिति बहुत खराब है. लोगों को इलाज करवाने के लिए बनारस और सीधी जाना पड़ता है. इस इलाके में रोजगार की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. इसलिए लोगों को पलायन करना पड़ता है. यहां की नजदीकी रेलवे लाइन 60 किलोमीटर दूर सिंगरौली में है.
अवैध रेत उत्खनन बड़ा व्यापार: इस विधानसभा क्षेत्र में फैक्ट्रियां तो नहीं है लेकिन रोजगार का एक दूसरा बड़ा साधन अवैध रेत का खनन है. यहां से बड़े पैमाने पर रेट का उत्खनन किया जाता है. जो उत्तर प्रदेश में महंगी दलों में बेची जाती है और इसमें कहीं ना कहीं राजनीतिक दलों का संरक्षण भी शामिल है. नेता भी इसका फायदा उठाते हैं. 2023 के चुनाव में यहां पर बाकी प्रदेश के अलावा जाति का मुद्दा सबसे बड़ा है और यदि जाति के हिसाब से फिर वोट पड़ती है तो इसका फायदा कमलेश्वर पटेल को मिलेगा. क्योंकि कुर्मी बाहुल्य इस विधानसभा क्षेत्र में कुर्मी पटेल समाज का नेतृत्व करते हैं.