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महिलाओं ने संभाला गोंद का कारोबार, महिला उत्पादक समूह बनाकर किया 6 लाख का व्यवसाय - Gum business of tribal women in Shivpuri

शिवपुरी के करैरा में आदिवासी महिलाएं गोंद का कारोबार संभाल रही हैं. इसके लिए उन्होंने एक उत्पादक समूह बनाया जिसके चलते उन्होंने 6 लाख का व्यवसाय किया है.

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Published : Mar 8, 2021, 2:09 PM IST

शिवपुरी। महिलाएं जब जागरूक होती है तो परिवार के साथ-साथ समाज को भी बदल कर रख देती है. ऐसी ही कहानी है करैरा अंचल के जंगली क्षेत्र की आदिवासी व अन्य समाज की महिलाओं की जिसमें महिलाओं ने तो कारोबार को ही बदलकर रख दिया है, जो कारोबार बिचौलियों के हाथों में था, जब महिलाओं ने इसकी बागडोर अपने हाथ में संभाली तो अब बिचौलिए क्लीन बोल्ड हो चुके है.

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महिलाओं ने संभाला गोंद का कारोबार

करैरा के जंगली क्षेत्र के ग्राम राजगढ़, रामपुरा उड़वाहा और मार की आदिवासी महिलाएं अलसुबह जंगल का रूख करती है. इनके हाथ मे होते है गोंद निकालने के औजार और मकसद होता है पेड़ों से गोंद निकालना, मार की रहवासी भागो और उसके साथ जुड़ी सभी महिलाएं उस आदिवासी समुदाय से आती हैं, जिन्हें बेहद सीधा सरल माना जाता है, और इनकी इसी जागरूकता की कमी का फायदा स्थानीय दुकानदार उठाते रहे है. जंगल से जो गोंद यह दिनभर की मेहनत के बाद लाती थी उसे यह दुकानदार औने पौने भाव मे खरीदते थे. मगर अब तस्वीर बदल चुकी है. भागो और इन चार गांव के आदिवासी महिलाएं जंगल से लाने बाली गोंद को व्यापारियों को न देकर गाव में बने महिलाओं के उत्पादक समूह को बेचती है, जहां इन्हें अच्छा भाव तो मिलता ही है व्यापारी की डंडी मारने से भी यह बच जाती है. भागो आदिवासी कहती है सुबह 8 बजे निकलती है शाम को लोटे है दिनभर में 5 किलो तक गोंद एकत्र कर लेते है, पहले इसे सेठ को देते थे तो सस्ती जाती थी अब समूह को देते है तो महंगी जाती है.

गांव में ही संग्रह केंद्र

तस्वीर वाकई में बदल चुकी है, जो गोंद महिलाएं जंगल से निकालकर लाती है उन्हें राजगढ़, मार, रामपुरा और उरवाहा चार गावो में बने महिला उत्पादक समूह द्वारा संचालित संग्रह केंद्र पर बिक्रय करती है. गावों में गोंद खरीदने के लिए संग्रहण केंद्र संचालित है जहां आदिवासी महिलाओं से गोंद खरीदती जाती है, खरीदने के बाद यहां गोंद की सफाई और ग्रेडिंग के साथ बोरो में भरकर पैकिंग का काम भी किया जाता है और फिर इन्हें भेजा जाता है इंदौर और देवास के व्यापारियों को ना कि स्थानीय दुकानदारों को, जो अब तक इनका शोषण करते रहे.

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महिला उत्पादक समूह

एक साल में किया साढ़े 6 लाख का कारोबार

समूह में काम कर रही आदिवासी महिलाएं भी मानती है कि इस काम से उनके जीवन मे बदलाब आया है इस साल इन्होंने 20 कुंतल सलाई की गोंद और 800 किलो कमरकस की गोंद का व्यवसाय किया है जिसमे साढ़े 6 लाख का टर्नओवर हुआ हुआ है ,ललिता आदिवासी जो की मार के संग्रहण केंद्र की जिम्मेदारी संभालती है और शारदा परिहार जो राजगढ़ गाव के संग्रह केंद्र की जिम्मेदारी सम्हाले है मानती है कि शुरुआत में उन्हें कुछ दिक्कतें आई गाव स्तर पर जो बिचौलिए आदिवासी महिलाओं से गोंद खरीदते थे उन्होंने भाव बढाया तो महिला उत्पादक समूहों ने भी भाव बढ़ा दिया जिससे फायदा आदिवासी महिलाओं का हुआ.

महिला दिवस विशेषः पद्म विभूषण से सम्मानित जानकी देवी की कहानी

ऐसे आई महिलाओ में जागरूकता

इस व्यवसाय से जुड़ी 135 महिलाओ में आखिरकार ये जागरूकता आई कैसे ये भी सवाल है तो इसके लिए इन महिलाओं को तकनीकी सहयोग दिया सृजन संस्था ने जो महिलाओ के उत्थान उनकी आजीविका के लिए इस क्षेत्र में काम कर रही है संस्था ने आदिवासियों के शोषण को देखा तो उन्होंने महिलाओ के उत्पादक समूह बनाए और मार्केट लिंकेज का काम भी कराय साथ ही समूहों से जुड़ी महिलाओ को बाज़र का एक्सपोजर कराया ताकि महिलाएं सीख सके की बाज़र कैसे चलता है उन्हें काम कैसे करना है. करैरा में कार्यरत सृजन संस्था के प्रोजेक्ट मैनेजर संदीप भुजेल कहते है समुदाय की भूमिका प्रमुख रही है हमने तो इन्हें मर्केटिंग से जुड़ाव कराया है आगे भी इन महिलाओं के बाहरी बाजारी से मुलाकात कराएंगे इससे महिलाओ के जीबन स्तर में भी बदलाव आया है.

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जिन महिलाओं को पिछड़ा और शोषित कहा जाता था आज वह इंदौर और देवास तक के व्यापारियों के साथ गोंद का कारोबार कर रही है इतना ही नही इस कारोबार का पूरा हिसाब किताब ओर लेखा जोखा भी यह महिलाएं कर रही है जिसका मुनाफा भी महिलाओं के उत्पादक समूह की साभी सदस्यों को बांटा जाता है तो यह कहा जा सकता की की आत्मनिर्भर भारत, आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश की तस्बीर बनने के शुरुआत हो चुकी है.

शिवपुरी। महिलाएं जब जागरूक होती है तो परिवार के साथ-साथ समाज को भी बदल कर रख देती है. ऐसी ही कहानी है करैरा अंचल के जंगली क्षेत्र की आदिवासी व अन्य समाज की महिलाओं की जिसमें महिलाओं ने तो कारोबार को ही बदलकर रख दिया है, जो कारोबार बिचौलियों के हाथों में था, जब महिलाओं ने इसकी बागडोर अपने हाथ में संभाली तो अब बिचौलिए क्लीन बोल्ड हो चुके है.

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महिलाओं ने संभाला गोंद का कारोबार

करैरा के जंगली क्षेत्र के ग्राम राजगढ़, रामपुरा उड़वाहा और मार की आदिवासी महिलाएं अलसुबह जंगल का रूख करती है. इनके हाथ मे होते है गोंद निकालने के औजार और मकसद होता है पेड़ों से गोंद निकालना, मार की रहवासी भागो और उसके साथ जुड़ी सभी महिलाएं उस आदिवासी समुदाय से आती हैं, जिन्हें बेहद सीधा सरल माना जाता है, और इनकी इसी जागरूकता की कमी का फायदा स्थानीय दुकानदार उठाते रहे है. जंगल से जो गोंद यह दिनभर की मेहनत के बाद लाती थी उसे यह दुकानदार औने पौने भाव मे खरीदते थे. मगर अब तस्वीर बदल चुकी है. भागो और इन चार गांव के आदिवासी महिलाएं जंगल से लाने बाली गोंद को व्यापारियों को न देकर गाव में बने महिलाओं के उत्पादक समूह को बेचती है, जहां इन्हें अच्छा भाव तो मिलता ही है व्यापारी की डंडी मारने से भी यह बच जाती है. भागो आदिवासी कहती है सुबह 8 बजे निकलती है शाम को लोटे है दिनभर में 5 किलो तक गोंद एकत्र कर लेते है, पहले इसे सेठ को देते थे तो सस्ती जाती थी अब समूह को देते है तो महंगी जाती है.

गांव में ही संग्रह केंद्र

तस्वीर वाकई में बदल चुकी है, जो गोंद महिलाएं जंगल से निकालकर लाती है उन्हें राजगढ़, मार, रामपुरा और उरवाहा चार गावो में बने महिला उत्पादक समूह द्वारा संचालित संग्रह केंद्र पर बिक्रय करती है. गावों में गोंद खरीदने के लिए संग्रहण केंद्र संचालित है जहां आदिवासी महिलाओं से गोंद खरीदती जाती है, खरीदने के बाद यहां गोंद की सफाई और ग्रेडिंग के साथ बोरो में भरकर पैकिंग का काम भी किया जाता है और फिर इन्हें भेजा जाता है इंदौर और देवास के व्यापारियों को ना कि स्थानीय दुकानदारों को, जो अब तक इनका शोषण करते रहे.

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महिला उत्पादक समूह

एक साल में किया साढ़े 6 लाख का कारोबार

समूह में काम कर रही आदिवासी महिलाएं भी मानती है कि इस काम से उनके जीवन मे बदलाब आया है इस साल इन्होंने 20 कुंतल सलाई की गोंद और 800 किलो कमरकस की गोंद का व्यवसाय किया है जिसमे साढ़े 6 लाख का टर्नओवर हुआ हुआ है ,ललिता आदिवासी जो की मार के संग्रहण केंद्र की जिम्मेदारी संभालती है और शारदा परिहार जो राजगढ़ गाव के संग्रह केंद्र की जिम्मेदारी सम्हाले है मानती है कि शुरुआत में उन्हें कुछ दिक्कतें आई गाव स्तर पर जो बिचौलिए आदिवासी महिलाओं से गोंद खरीदते थे उन्होंने भाव बढाया तो महिला उत्पादक समूहों ने भी भाव बढ़ा दिया जिससे फायदा आदिवासी महिलाओं का हुआ.

महिला दिवस विशेषः पद्म विभूषण से सम्मानित जानकी देवी की कहानी

ऐसे आई महिलाओ में जागरूकता

इस व्यवसाय से जुड़ी 135 महिलाओ में आखिरकार ये जागरूकता आई कैसे ये भी सवाल है तो इसके लिए इन महिलाओं को तकनीकी सहयोग दिया सृजन संस्था ने जो महिलाओ के उत्थान उनकी आजीविका के लिए इस क्षेत्र में काम कर रही है संस्था ने आदिवासियों के शोषण को देखा तो उन्होंने महिलाओ के उत्पादक समूह बनाए और मार्केट लिंकेज का काम भी कराय साथ ही समूहों से जुड़ी महिलाओ को बाज़र का एक्सपोजर कराया ताकि महिलाएं सीख सके की बाज़र कैसे चलता है उन्हें काम कैसे करना है. करैरा में कार्यरत सृजन संस्था के प्रोजेक्ट मैनेजर संदीप भुजेल कहते है समुदाय की भूमिका प्रमुख रही है हमने तो इन्हें मर्केटिंग से जुड़ाव कराया है आगे भी इन महिलाओं के बाहरी बाजारी से मुलाकात कराएंगे इससे महिलाओ के जीबन स्तर में भी बदलाव आया है.

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जिन महिलाओं को पिछड़ा और शोषित कहा जाता था आज वह इंदौर और देवास तक के व्यापारियों के साथ गोंद का कारोबार कर रही है इतना ही नही इस कारोबार का पूरा हिसाब किताब ओर लेखा जोखा भी यह महिलाएं कर रही है जिसका मुनाफा भी महिलाओं के उत्पादक समूह की साभी सदस्यों को बांटा जाता है तो यह कहा जा सकता की की आत्मनिर्भर भारत, आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश की तस्बीर बनने के शुरुआत हो चुकी है.

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