शिवपुरी। एक ओर जहां प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान पिछड़ी जनजातियों की महिलाओं को 1 हजार रुपये हर महीने देने की योजना का अपने हर भाषण में बखान कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों में जमीनी हकीकत कुछ और नजर आ रही है. बड़ी संख्या में पिछड़ी जनजातियों सहरिया आदिवासी वर्ग की महिलाएं योजना का लाभ लेने के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रही है. ऐसा ही एक मामला शिवपुरी जिले के आदिवासी बहुल विकासखंड पोहरी में सामने आया जहां पात्र होने के बाद भी आदिवासी महिलाओं को लाभ नहीं मिल पा रहा है.
कर्मचारियों की लापरवाही परेशान हितग्राही
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पिछड़ी जनजातियों बैगा, भारिया और सहरिया आदिवासी परिवारों को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए चलाई जा रही महत्वकांक्षी आहार अनुदान योजना का लाभ मैदानी कर्मचारियों की लापरवाही के कारण पात्र होने के बाद भी आदिवासी महिलाओं को नहीं मिल पा रहा है. इस योजना का लाभ लेने के लिए पोहरी विकास खंड के कई गांव की आदिवासी महिलाएं योजना शुरू होने के तीन साल गुजर जाने के बाद भी सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रहीं हैं.
आधिकारियों से मात्र आश्वासन
पोहरी विकासखंड की ग्राम पंचायत धौरिया की आदिवासी बस्ती की गिरजा, कस्तूरी, रेखा आदिवासी आदि ने बताया कि पंचायत सचिव से लेकर विकासखंड अधिकारी और जनप्रतिनिधियों के यहां कई बार इस योजना के लाभ के लिए आवेदन पत्र जमा कराकर गुहार लगा चुकी हैं, बावजूद इसके पात्र होने के बाद भी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. आदिवासी महिलाओं ने बताया कि पंचायत सचिव आवेदन पत्र ऑनलाइन कराने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेता है. जबकि अधिकारी सर्वे कराकर योजना में नाम जोड़ने का आश्वासन दे देते हैं.
क्या है योजना
आहार अनुदान योजना साल 2017 में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने शिवपुरी के कोलारस में आदिवासी सम्मेलन के दौरान शुरू की थी. योजना के तहत प्रदेश की पिछड़ी जनजातियों बैगा, भारिया और सहरिया आदिवासियों के परिवारों को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए आहार अनुदान दिया जाता है. मध्य प्रदेश के सहरिया आदिवासियों में बढ़ते कुपोषण पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार उन्हें सब्जी, फल और दूध के लिए हर माह एक हजार रुपये परिवार की मुखिया महिला के खाते में जमा करवाती है.