खजुराहो: शिल्प कला और संस्कृति के लिए विश्व विख्यात खजुराहो में नृत्य महोत्सव का अद्भुत आयोजन चल रहा है. जिसको देखने समझने और जानने के लिए देश-विदेश के लोगों का तांता लगा हुआ है. खजुराहो के मंच पर अपनी कला दिखाना के लिए देश दुनिया भर के जाने-माने कलाकार अपनी प्रस्तुति देकर दर्शकों का मन अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. तालियों की गड़गड़ाहट कलाकारों का उत्साह बढ़ा रही है.
51वें खजुराहो नृत्य समारोह की दूसरी शाम देश के सुप्रसिद्ध नृत्य कलाकारों ने कंदरिया महादेव मंदिर की आभा में बने मंच पर संस्कृति के अनूठे रंग दमक उठे. सांझ की धुंधलाती रोशनी में नृत्य का संसार जगमगा उठा और रात होते-होते परवान चढ़ा. पहली प्रस्तुति थी सुप्रसिद्ध मणिपुरी नृत्यांगना और पद्मश्री सुश्री दर्शना झावेरी एवं उनके शिष्यों की. एक ऐसी नृत्यांगना जिसने नृत्य को न सिर्फ किया, बल्कि उसे आत्मसात भी किया. अपनी गुरु परम्परा को नृत्य के आकाश में बुलंदियों तक लेकर आईं. गुरु बिपिन सिंह के मणिपुरी घराने की आला दर्जे की नृत्यांगना ने अपनी प्रस्तुति का आरम्भ पारंपरिक रूप से ईश्वर की वंदना से किया.
होलिका प्रस्तुति में दिखी ब्रज की होली
मंगलाचरण में उन्होंने भगवान श्री कृष्ण और राधा को नमन किया. इसके बाद बसंत रास का प्रमुख उत्सव होली मंच पर साकार हुआ. जिसके केंद्र में थे कृष्ण, राधा और गोपियां. होलिका की प्रस्तुति में ब्रज की होली सदृश्य दिखाई. होली के रंगों के बाद मनभजन प्रस्तुति दी, जो जयदेव रचित गीत गोविंदम पर आधारित थी. इसमें भगवान श्री कृष्ण और राधा की मधुमयी नोंक-झोंक को दर्शाया. इसके बाद प्रबंद नर्तम, सप्ता, नायिकाभेदा, मांडिला नर्तन और अंत में मृदंग वादन की प्रस्तुति से विराम दिया.
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भरतनाट्यम में दिखीं मानव स्वभाव की जटिलताएं
मणिपुरी के बाद अवसर था भरतनाट्यम नृत्य को देखने का. मंच पर युवा नृत्यांगना सुश्री श्रेयसी गोपीनाथ की प्रस्तुति थी "द व्हील ऑफ चॉइसेस." जिसे श्रेयसी गोपीनाथ डांस अकादमी के कलाकारों ने प्रस्तुत किया. इसमें उन्होंने मानव स्वभाव की जटिलताओं को प्रदर्शित किया. अंतिम प्रस्तुति छाऊ की रही. जिसे प्रस्तुत किया पद्मश्री शशधर आचार्य एवं उनके साथी ने. उनकी प्रस्तुति का नाम महानायक गरुड़ था. इस नृत्यनाटिका में उन्होंने नृत्य के माध्यम से बड़े प्रभावी ढंग से दिखाया कि गरुड़ एक महानायक के रूप में प्रतिबिंबित होता है, जो अपने अदम्य शौर्य से गरुड़ भास्कर, गरुड़ वासुकी, गरुड़ वाहन, नरकासुर वध जैसे चरित्रों का अनुपालन करता है और धर्म ग्रंथों में अपनी पूज्य स्थिति को प्राप्त करता है.
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सूर्य को निगलने चल पड़ा था गरुड़
धर्म ग्रंथों में विदित कथाओं के अनुसार, गरुड़ का जन्म समय से पूर्व ही हो गया, बावजूद इसके उसमे अपार ऊर्जा थी. अपनी ऊर्जा की प्रचंडता के कारण वह अपने माता के मना करने पर भी सूर्य को निगलने के लिए चल पड़ा. वह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए भगवान विष्णु को चुनौती देता है और उनसे युद्ध कर उन्हें और उनके सभी अस्त्रों को पराजित करता है, तत्पश्चात भगवान विष्णु ने उन्हें अपने वाहन के रूप में स्थान प्रदान किया. इस चरित्र की विविधता को दर्शाने के लिए छऊ की तीन शैलियां सरायकेला, मयूरभंज और पुरुलिया तीनों में अद्भुत कलात्मक सामंजस्य दिखाई दिया.
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प्राचीन शेल चित्रों को देखने देशी, विदेशियों की भीड़
खजुराहो में प्राचीन शेल चित्रों को देखने देशी, विदेशियों की भीड़ लग रही है. खजुराहो के शिल्प सौंदर्य और छतरपुर जिले के शैल चित्र आने वालों को अपनी ओर केंद्रित कर रहे हैं. महाराजा छत्रसाल यूनिवर्सिटी के शोध निदेशक एवं विभागाध्यक्ष डॉ. सुधीर कुमार छारी बताते हैं, ''छतरपुर जिले में उन्होंने 3000 से अधिक शैल चित्रों की खोज की है. जो 45000 से 20000 ईस्वी पूर्व के हैं. ये शैल चित्र विश्व के सर्वाधिक प्राचीन शैल चित्र हैं.''
उन्होंने इनकी तकनीक, रंग और विषय पर बात की. उन्होंने बताया कि, ''ये सीधी रेखा में बनाए गए चित्र हैं और इन्हें बनाने के लिए केवल लाल रंग का उपयोग किया गया है. जबकि दूसरी जगहों पर अन्य रंग के शैल चित्र भी पाए गए हैं.'' उन्होंने बताया कि, ''खजुराहो के शिल्पों में अनूठा सौंदर्य देखने को मिलता है, जिसमें स्त्री पेंटिंग करती, अंगड़ाई लेती, बाल बनाती, श्रृंगार करती इत्यादि मुद्राओं में हैं, जो सौंदर्य से भरपूर हैं.''