शिवपुरी। कोलारस जनपद के ग्राम लुकवासा की गणेशपुरा कॉलोनी (Ganeshpura Colony) में स्थित गजानन भगवान (Lord Ganesh) को गुरुवार को 51 किलो के लड्डू का भोग (Laddu ka Bhog) लगाया गया. यह लड्डू लोगों में चर्चा का विषय बना रहा. लोगों का कहना है कि यह कोई विशेष बात नहीं है. अब से पहले यहां 51 किलो लड्डूओं (51 kg Laddu) का भोग लगता था, लेकिन पहली बार 51 किलो के एक लड्डू का भोग लगा है.
पहली बार लगा 51 किलो के एक लड्डू का भोग
गांव के लोगों ने बताया कि हर साल भोग लगता था. इस बार अचानक भक्तों के मन में आया कि क्यों न 51 किलो के एक लड्डू का भोग लगाया जाए. 51 किलो का एक लड्डू बनाना मुश्किल था. जब इस बात पर मंथन चल रहा था, तभी एक हलवाई खुद आया और उसने 51 किलो के एक लड्डू बनाने की जिम्मेदारी ले ली. गांव वाले मानते हैं कि इसमें उनका कुछ नहीं है, यह तो भगवान की प्रेरणा है. उनकी ही प्रेरणा से भगवान की मढ़िया मंदिर में बदल गई और 51 किलो लड्डुओं का भोग 51 किलो के लड्डू का भोग बन गया.
मंदिर स्थापना कब हुई- नहीं जानता कोई
जब भगवान गणेश की मढ़िया और प्रतिमा के इतिहास (History of Temple) के बारे में गांव वालों से पूछा कि मंदिर की स्थापना किसने और कब कराई. गांव का कोई भी व्यक्ति इस बात का जवाब नहीं दे सका. हालांकि गांव के सबसे उम्रदराज 99 वर्षीय बुजुर्ग व रिटायर्ड शिक्षक माधो सिंह के अनुसार उन्होंने इस मंदिर को बचपन से ऐसे ही देखा है. उनके अनुसार उनके बुजुर्ग भी यही कहते थे कि वह मंदिर को बचपन से ऐसे ही देखते आ रहे हैं.
करीबन 634 वर्ष पूर्व बना है मंदिर
मंदिर के पुजारी (Temple Priest) अय्या महाराज बताते हैं कि उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी मंदिर की पूजा करता आ रहा है. बकौल अय्या महाराज उन्होंने मंदिर के पूर्व पुजारी व उनके दादाजी स्व. मूलचंद्र वैरागी ने अपनी डायरी में लिखा हुआ था कि मंदिर की सत्यापन 1444 ईस्वी यानी करीब 634 वर्ष पहले हुई थी.
9 घंटे में बनकर तैयार हुआ लड्डू
लड्डू बनाने वाले हलवाई का कहना है कि इस लडडू को बनाने में उन्हें 9 घंटे का समय लगा. इसे बनाने के लिए 15 किलो बेसन, 8 किलो घी, 28 किलो शक्कर का बूरा, 500 ग्राम काजू, 500 ग्राम किशमिश, 500 ग्राम बादाम, 250 ग्राम पिस्ता, 250 ग्राम डोंडा उपयोग किया है. उनके अनुसार, इतने बड़े लड्डू को बांधना बड़ी चुनौती थी, लेकिन यह सिर्फ गजानन की मर्जी से ही संभव हो पाया है.
हम लोगों ने पहले से इस लड्डू को लेकर कोई विचार नहीं किया था. भगवान की प्रेरणा से ही यह संभव हुआ है.
हरिओम रघुवंशी, समिति सदस्य लुकवासा