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मजदूरी की 'मजबूरी' कल की बात, लक्ष्मी आज हैं मजबूत बागवान - शिवपुरी में खेत में काम करने वाला सफल किसान

किसी शायर ने कहा है जिंदगी जिंदा दिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं. जिंदादिली की यही मिशाल पेश की है शिवपुरी जिले के करैरा अंतर्गत आने वाले बरोदी गांव की लक्ष्मी जाटव ने. लक्ष्मी पहले एक मजदूर थीं, अब वे अपनी मेहनत के दम पर सफल किसान हैं.

Story of Laxmi becoming a successful farmer
लक्ष्मी जाटव
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Published : Feb 5, 2021, 9:57 PM IST

Updated : Feb 6, 2021, 1:45 AM IST

शिवपुरी। कहते हैं न अगर इंसान पूरी शिद्दत से चाह ले तो कुछ भी कर गुजरता है और उसकी सोच में घर की समस्याएं हों तो उसकी कामयबी दोगुनी रफ्तार से उसके पास आती है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है शिवपुरी के बरोदी गांव की लक्ष्मी जाटव ने. जो कभी परिवार के लिए खेतों में मजदूरी करतीं थीं, लेकिन अब अपने मेहनत और हौसले के दम पर एक कामयाब किसान होने के साथ-साथ एक फल बागान की मालकिन हैं.

मजदूर से बनी सफल किसान लक्ष्मी

आर्थिक तंगी ने दिया आगे बढ़ने का हौसला

आर्थिक तंगी से जूझ रहीं लक्ष्मी को जब गांव की कुछ महिलाओं ने आजीविका मिशन के समूह के बारे में बताया. पहले तो उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया. फिर वे 2 साल बाद लक्ष्मी जय भीम स्वसहायता समूह से जुड़ गईं. बेटी को पढ़ाने के लिए समूह से 2 हजार रुपये का लोन लिया. इससे लक्ष्मी की हिम्मत बढ़ गई. उन्होंने लगातार समूह से जुड़े रह कर काम करना शुरू कर दिया.

शुरुआत में लक्ष्मी ने 20 हजार का लोन लेकर घर में ही छोटी दुकान शुरू की. इससे लक्ष्मी की मजदूरी छूट गई. इसका फायदा ये हुआ कि उन्हें खुद के खेत में काम करने के लिए भी वक्त मिलने लगा. इसी दौरान लक्ष्मी सृजन संस्था के संपर्क में आईं. यहीं से उन्हें लघु बागवानी का बगीचा लगाने कि लिए प्रेरणा मिली.

540 वर्ग मीटर में शुरू की लघु बागवानी

लक्ष्मी ने पहले 540 वर्ग मीटर में लघु बागवानी शुरू की. कड़ी मेहनत के दम पर पहले ही साल में 20 हजार का मुनाफा हुआ. उसके बाद उन्होंने जैविक खाद का उपयोग किया. धीरे-धीरे लघु बागवानी को का रकबा बढ़ता चला गया. आज वे 2 बीघा जमीन पर बागवानी कर रहीं हैं. उन्होंने अब जौविक खाद के उपयोग के जरिए परंपरागत खेती भी शरू की है.

रसायन फ्री फलोत्पादन

सृजन संस्था के अधिकारी सुशांत भी लक्ष्मी को मेहनती बताते हैं. उन्होंने कहा कि लक्ष्मी ने अपनी जैसी महिलाओं के लिए मिशाल पेश की है. साथ ही रसायन फ्री फलोत्पादन से अपनी आय भी दोगुनी की है.अगर लोग इसी तरह नए प्रयोग करें, तो वे न सिर्फ आत्मनिर्भर होंगे बल्कि आत्मनिर्भर भारत का सपना भी साकार होगा.

अब जीवन पहले से बेहतर है

किसी शायर ने कहा है जिंदगी जिंदा दिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं. जिंदादिली की मिशाल पेश की है करैरा के बरोदी गांव की लक्ष्मी जाटव ने. लक्ष्मी जाटव के पास 2 बीघा जमीन है. लेकिन उसमें उत्पादन न कर पाने के कारण उनकी जीविका मजदूरी पर निर्भर थी. वहीं उनसे सामने बिटिया के परवरिश की भी चिंता थी, इस पर उन्होंने कुछ कर गुजरने की सोची और एक मजदूर से बागान की मालकिन बन गईं. अब उनका जीवन काफी बेहतर तरीके से चल रहा है.

शिवपुरी। कहते हैं न अगर इंसान पूरी शिद्दत से चाह ले तो कुछ भी कर गुजरता है और उसकी सोच में घर की समस्याएं हों तो उसकी कामयबी दोगुनी रफ्तार से उसके पास आती है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है शिवपुरी के बरोदी गांव की लक्ष्मी जाटव ने. जो कभी परिवार के लिए खेतों में मजदूरी करतीं थीं, लेकिन अब अपने मेहनत और हौसले के दम पर एक कामयाब किसान होने के साथ-साथ एक फल बागान की मालकिन हैं.

मजदूर से बनी सफल किसान लक्ष्मी

आर्थिक तंगी ने दिया आगे बढ़ने का हौसला

आर्थिक तंगी से जूझ रहीं लक्ष्मी को जब गांव की कुछ महिलाओं ने आजीविका मिशन के समूह के बारे में बताया. पहले तो उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया. फिर वे 2 साल बाद लक्ष्मी जय भीम स्वसहायता समूह से जुड़ गईं. बेटी को पढ़ाने के लिए समूह से 2 हजार रुपये का लोन लिया. इससे लक्ष्मी की हिम्मत बढ़ गई. उन्होंने लगातार समूह से जुड़े रह कर काम करना शुरू कर दिया.

शुरुआत में लक्ष्मी ने 20 हजार का लोन लेकर घर में ही छोटी दुकान शुरू की. इससे लक्ष्मी की मजदूरी छूट गई. इसका फायदा ये हुआ कि उन्हें खुद के खेत में काम करने के लिए भी वक्त मिलने लगा. इसी दौरान लक्ष्मी सृजन संस्था के संपर्क में आईं. यहीं से उन्हें लघु बागवानी का बगीचा लगाने कि लिए प्रेरणा मिली.

540 वर्ग मीटर में शुरू की लघु बागवानी

लक्ष्मी ने पहले 540 वर्ग मीटर में लघु बागवानी शुरू की. कड़ी मेहनत के दम पर पहले ही साल में 20 हजार का मुनाफा हुआ. उसके बाद उन्होंने जैविक खाद का उपयोग किया. धीरे-धीरे लघु बागवानी को का रकबा बढ़ता चला गया. आज वे 2 बीघा जमीन पर बागवानी कर रहीं हैं. उन्होंने अब जौविक खाद के उपयोग के जरिए परंपरागत खेती भी शरू की है.

रसायन फ्री फलोत्पादन

सृजन संस्था के अधिकारी सुशांत भी लक्ष्मी को मेहनती बताते हैं. उन्होंने कहा कि लक्ष्मी ने अपनी जैसी महिलाओं के लिए मिशाल पेश की है. साथ ही रसायन फ्री फलोत्पादन से अपनी आय भी दोगुनी की है.अगर लोग इसी तरह नए प्रयोग करें, तो वे न सिर्फ आत्मनिर्भर होंगे बल्कि आत्मनिर्भर भारत का सपना भी साकार होगा.

अब जीवन पहले से बेहतर है

किसी शायर ने कहा है जिंदगी जिंदा दिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं. जिंदादिली की मिशाल पेश की है करैरा के बरोदी गांव की लक्ष्मी जाटव ने. लक्ष्मी जाटव के पास 2 बीघा जमीन है. लेकिन उसमें उत्पादन न कर पाने के कारण उनकी जीविका मजदूरी पर निर्भर थी. वहीं उनसे सामने बिटिया के परवरिश की भी चिंता थी, इस पर उन्होंने कुछ कर गुजरने की सोची और एक मजदूर से बागान की मालकिन बन गईं. अब उनका जीवन काफी बेहतर तरीके से चल रहा है.

Last Updated : Feb 6, 2021, 1:45 AM IST
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