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कृष्ण जन्माष्टमी 2020: बांके बिहारी मंदिर पर लगा कोरोना का ग्रहण - बांके बिहारी मंदिर

हर साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर लोग उत्साह मनाते थे, मगर इस बार कोरोना वायरस ने त्योहार को फीका कर दिया, जहां करैरा नगर स्थित बांके बिहारी के मंदिर में भी कई कार्यक्रमों को निरस्त करना पड़ा.

corona epidemic effect at Banke Bihari Temple on krishna janmashtmi
बांके बिहारी मंदिर पर लगा कोरोना का ग्रहण
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Published : Aug 12, 2020, 6:40 PM IST

शिवपुरी। हर साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे, लेकिन इस वर्ष कोरोना संक्रमण महामारी ने पर्व पर ग्रहण लगा दिया. ऐसा ही कुछ करैरा नगर स्थित बांके बिहारी के मंदिर में भी हुआ, जहां कोरोना संक्रमण के चलते धूमधाम से मनाया जाने वाला त्योहार फीका पड़ गया.

बांके बिहारी के मंदिर लगभग 450 से 500 साल पुराना बताया जाता है. इस मन्दिर की बनावट भी पुरानी है, जहां ईंट और चूने की चिनाई से दीवाल और छत बनाई गई है. दीवालों पर की गई नक्कासी सालों पुराने होने का गवाह पेश करती है. इसमें विराजे भगवान बांके बिहारी की प्रतिमा संगमरमर की है. हर रोज सुबह-शाम यहां पर आरती के समय भक्तों की भीड़ होती है. वहीं जिस क्षेत्र में यह मंदिर है, उसे 'बिहारी गंज' नाम दिया गया है. यहां पहले मंदिर की पूजा रज्जब दास द्वारा की जाती थी.

बांके बिहारी के मंदिर से जुड़ी कई घटनाएं हैं, जिनसे भगवान के प्रति लोगों की अटूट आस्था है. उन्हीं में से एक घटना भक्तिन की है. माना जाता है की मंदिर के पास एक सेठ का मकान था, जिसका देहांत हो गया था. इसके बाद उनकी पत्नी ने घर में ही छोटी दुकान खोल ली थी, लेकिन एक दिन उन्होंने अपना मकान और सारी संपत्ति मंदिर के नाम कर दी, जिसके बाद से ही लोग महिला को भक्तिन के नाम से पुकारने लगे.

मंदिर में ही भक्तिन दिन-रात बांके बिहारी का भजन करती थी. मंदिर के पुजारी महंत रज्जब दास खाने-पीने के लिए व्यवस्था कर देते थे. हालांकि भक्तिन के प्रति बांके बिहारी की आस्था पुजारी महंत को रास नहीं आई. उन्होंने गलत आरोप लगाते हुए महिला को मंदिर से बाहर निकालने की बात कही. उसी रात भक्तिन ने प्राण त्याग दिए.

मन्दिर के पुजारी आरती के बाद बांके बिहारी के गर्भ गृह में रात के समय एक चारपाई और गद्दा, तकिया, चादर की व्यवस्था किया करते है. इससे जुड़ी भी एक घटना मंदिर के पुजारी बताते है कि जब उनके पूर्वज बांके बिहारी की सेवा कर रहे थे, तो एक बार उन्हें इलाज के लिए बाहर जाना पड़ा. वहीं उनके सेवा की जिम्मेदारी अपने बेटे को सौंप कर गए, लेकिन बेटे ने भगवान के सोने की व्यवस्था नहीं की. इसके बाद बांके बिहारी ने सपने में आकर उन्हें जगाया, जिसकी वजह से उन्हें सुबह वापस आना पड़ा.

करैरा के इस प्राचीन मंदिर से लगा हुआ खाली भू-खण्ड आज भी मौजूद है, जहां कभी भक्तिन का मकान हुआ करता था. वहीं मंदिर के पुजारी के पास उसका दानपत्र भी पुराने स्टाम्प पेपर पर लिखा हुआ है. हालांकि मन्दिर से जुड़ी और भी कई कथाएं है, जिनसे लोगों में बांके बिहारी के प्रति आस्था बढ़ी है.

शिवपुरी। हर साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे, लेकिन इस वर्ष कोरोना संक्रमण महामारी ने पर्व पर ग्रहण लगा दिया. ऐसा ही कुछ करैरा नगर स्थित बांके बिहारी के मंदिर में भी हुआ, जहां कोरोना संक्रमण के चलते धूमधाम से मनाया जाने वाला त्योहार फीका पड़ गया.

बांके बिहारी के मंदिर लगभग 450 से 500 साल पुराना बताया जाता है. इस मन्दिर की बनावट भी पुरानी है, जहां ईंट और चूने की चिनाई से दीवाल और छत बनाई गई है. दीवालों पर की गई नक्कासी सालों पुराने होने का गवाह पेश करती है. इसमें विराजे भगवान बांके बिहारी की प्रतिमा संगमरमर की है. हर रोज सुबह-शाम यहां पर आरती के समय भक्तों की भीड़ होती है. वहीं जिस क्षेत्र में यह मंदिर है, उसे 'बिहारी गंज' नाम दिया गया है. यहां पहले मंदिर की पूजा रज्जब दास द्वारा की जाती थी.

बांके बिहारी के मंदिर से जुड़ी कई घटनाएं हैं, जिनसे भगवान के प्रति लोगों की अटूट आस्था है. उन्हीं में से एक घटना भक्तिन की है. माना जाता है की मंदिर के पास एक सेठ का मकान था, जिसका देहांत हो गया था. इसके बाद उनकी पत्नी ने घर में ही छोटी दुकान खोल ली थी, लेकिन एक दिन उन्होंने अपना मकान और सारी संपत्ति मंदिर के नाम कर दी, जिसके बाद से ही लोग महिला को भक्तिन के नाम से पुकारने लगे.

मंदिर में ही भक्तिन दिन-रात बांके बिहारी का भजन करती थी. मंदिर के पुजारी महंत रज्जब दास खाने-पीने के लिए व्यवस्था कर देते थे. हालांकि भक्तिन के प्रति बांके बिहारी की आस्था पुजारी महंत को रास नहीं आई. उन्होंने गलत आरोप लगाते हुए महिला को मंदिर से बाहर निकालने की बात कही. उसी रात भक्तिन ने प्राण त्याग दिए.

मन्दिर के पुजारी आरती के बाद बांके बिहारी के गर्भ गृह में रात के समय एक चारपाई और गद्दा, तकिया, चादर की व्यवस्था किया करते है. इससे जुड़ी भी एक घटना मंदिर के पुजारी बताते है कि जब उनके पूर्वज बांके बिहारी की सेवा कर रहे थे, तो एक बार उन्हें इलाज के लिए बाहर जाना पड़ा. वहीं उनके सेवा की जिम्मेदारी अपने बेटे को सौंप कर गए, लेकिन बेटे ने भगवान के सोने की व्यवस्था नहीं की. इसके बाद बांके बिहारी ने सपने में आकर उन्हें जगाया, जिसकी वजह से उन्हें सुबह वापस आना पड़ा.

करैरा के इस प्राचीन मंदिर से लगा हुआ खाली भू-खण्ड आज भी मौजूद है, जहां कभी भक्तिन का मकान हुआ करता था. वहीं मंदिर के पुजारी के पास उसका दानपत्र भी पुराने स्टाम्प पेपर पर लिखा हुआ है. हालांकि मन्दिर से जुड़ी और भी कई कथाएं है, जिनसे लोगों में बांके बिहारी के प्रति आस्था बढ़ी है.

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