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खामोश छुक-छुक! मायूस चेहरे-व्यापार प्रभावित, गांव-गांव यात्री लेने जाती थी नैरोगेज ट्रेन

128 साल की लाइफलाइन जल्द साइडलाइन में पार्क हो जाएगी. दशकों से इस ट्रेन के जरिए अपनी मंजिल तक पहुंचने वाले लोग मायूस हैं. व्यापार भी प्रभावित हो रहा है क्योंकि जिन क्षेत्रों में ये ट्रेन सवारी लेने गांव-गांव जाती थी, वहां आज भी आवागमन के मुकम्मल इंतजाम नहीं हैं, लिहाजा नैरोगेज ट्रेन के बंद होने से लोग बेहद निराश हैं.

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Published : Jul 13, 2021, 11:33 AM IST

Updated : Jul 26, 2021, 4:17 PM IST

ग्वालियर। दुनिया की सबसे लंबी नैरोगेज ट्रेन ग्वालियर-चंबल अंचल में अब दिखाई नहीं देगी. इसके बंद होने से अंचल के लोगों में मायूसी है. 100 साल से अधिक पुरानी इस नैरोगेज ट्रेन के बंद होने से लोग काफी निराश हैं क्योंकि अंचल के लोगों के लिए ये एक तरह से लाइफलाइन मानी जाती थी. लोग रोजाना इस ट्रेन से यात्रा करते थे, वह अब भी इस ट्रेन के सफर को याद कर रहे हैं. भले ही इसके बदले नई और आधुनिक ब्रॉड गेज ट्रेन का इंतजाम हो जाएगा, पर जो लोगों बचपन-जवानी से लेकर बुढ़ापे तक इसी ट्रेन से रोजाना अपनी मंजिल तक आते-जाते रहे हैं, उसकी स्मृति में वो लम्हा अमिट ही रहेगा.

नैरोगेज ट्रेन का सफर

100 साल से अधिक पुरानी दुनिया की सबसे लंबी नैरोगेज ट्रेन अंग्रेजों की मदद से सिंधिया रियासत के महाराजा माधोराव ने लोगों के आवागमन के लिए चलवाया था. तब आवागमन का यही एकमात्र सहारा था. ट्रेन की सबसे खास बात यह थी कि यह अंचल के हर गांव के आसपास से गुजरती थी. यह ट्रेन ग्वालियर से चलकर मुरैना जिले के कुछ गांव और उसके बाद श्योपुर जिले के अधिकतर गांव से होकर गुजरती थी. मतलब ग्वालियर, मुरैना और श्योपुर जिले के लोगों के लिए एक तरह से जीवनदायिनी थी, लोग इसमें बैठकर आनंददायक सफर करते थे.

narrow gauge train
ट्रैक पर दौड़ती ट्रेन

इतिहास बन गई नैरोगेज की छुक-छुक 'रफ्तार'! दो फीट चौड़े ट्रैक पर 128 सालों से दौड़ रही थी ट्रेन

पहले जब आवागमन का कोई साधन नहीं था, तब यह नैरोगेज ट्रेन लोगों के लिए लाइफ लाइन थी, जोकि अंचल के 300 से अधिक गांवों से होकर गुजरती थी. यही वजह है कि इस ट्रेन में सबसे ज्यादा गांव के लोग ही सफर करते थे. लोग इसी ट्रेन से एक गांव से दूसरे गांव तक जाते थे. साथ ही गांव के लोगों को जब शहर जाना हो या फिर किसी दूर गांव, सिर्फ नैरोगेज ही साधन था. पर जबसे नैरोगेज ट्रेन बंद हुई है, तब से लोग मायूस हैं क्योंकि जिस रूट पर यह ट्रेन चलती थी, वहां अभी भी आवागमन के साधन उपलब्ध नहीं हैं. यही वजह है कि जब से यह ट्रेन बंद हुई है, तब से लोगों को आवागमन के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है.

narrow gauge train
ट्रेन से उतरते यात्री

छोटी लाइन की बड़ी कहानी भाग-1: जब राजा का 'शौक' बन गई 'प्रजा' के जीने का सहारा

नैरोगेज ट्रेन बंद होने से लोगों पर ही नहीं बल्कि व्यापार पर भी बुरा असर पड़ा है. चूंकि इसी ट्रेन में बैठकर 300 से अधिक गांव के लोग व्यापार करने के लिए शहर जाते थे, जब से ट्रेन बंद हुई है, तब से गांव के लोग काफी परेशान हैं. व्यापारियों का कहना है कि नेहरू ब्रिज ट्रेन बंद होने से व्यापार पर काफी बुरा असर पड़ा है. इसी ट्रेन से लोग व्यापार करने शहर जाते थे. ट्रेन बंद होने से गांव के लोग शहर नहीं जा पा रहे हैं. इस ट्रेन के चलाने का मूल उद्देश्य यही था कि पहले गांव के लोग शहर में व्यापार करने नहीं पहुंच पाते थे, इसलिए माधोराव सिंधिया ने इस ट्रेन को चलवाने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी और व्यापार भी बढ़ा था.

ग्वालियर। दुनिया की सबसे लंबी नैरोगेज ट्रेन ग्वालियर-चंबल अंचल में अब दिखाई नहीं देगी. इसके बंद होने से अंचल के लोगों में मायूसी है. 100 साल से अधिक पुरानी इस नैरोगेज ट्रेन के बंद होने से लोग काफी निराश हैं क्योंकि अंचल के लोगों के लिए ये एक तरह से लाइफलाइन मानी जाती थी. लोग रोजाना इस ट्रेन से यात्रा करते थे, वह अब भी इस ट्रेन के सफर को याद कर रहे हैं. भले ही इसके बदले नई और आधुनिक ब्रॉड गेज ट्रेन का इंतजाम हो जाएगा, पर जो लोगों बचपन-जवानी से लेकर बुढ़ापे तक इसी ट्रेन से रोजाना अपनी मंजिल तक आते-जाते रहे हैं, उसकी स्मृति में वो लम्हा अमिट ही रहेगा.

नैरोगेज ट्रेन का सफर

100 साल से अधिक पुरानी दुनिया की सबसे लंबी नैरोगेज ट्रेन अंग्रेजों की मदद से सिंधिया रियासत के महाराजा माधोराव ने लोगों के आवागमन के लिए चलवाया था. तब आवागमन का यही एकमात्र सहारा था. ट्रेन की सबसे खास बात यह थी कि यह अंचल के हर गांव के आसपास से गुजरती थी. यह ट्रेन ग्वालियर से चलकर मुरैना जिले के कुछ गांव और उसके बाद श्योपुर जिले के अधिकतर गांव से होकर गुजरती थी. मतलब ग्वालियर, मुरैना और श्योपुर जिले के लोगों के लिए एक तरह से जीवनदायिनी थी, लोग इसमें बैठकर आनंददायक सफर करते थे.

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ट्रैक पर दौड़ती ट्रेन

इतिहास बन गई नैरोगेज की छुक-छुक 'रफ्तार'! दो फीट चौड़े ट्रैक पर 128 सालों से दौड़ रही थी ट्रेन

पहले जब आवागमन का कोई साधन नहीं था, तब यह नैरोगेज ट्रेन लोगों के लिए लाइफ लाइन थी, जोकि अंचल के 300 से अधिक गांवों से होकर गुजरती थी. यही वजह है कि इस ट्रेन में सबसे ज्यादा गांव के लोग ही सफर करते थे. लोग इसी ट्रेन से एक गांव से दूसरे गांव तक जाते थे. साथ ही गांव के लोगों को जब शहर जाना हो या फिर किसी दूर गांव, सिर्फ नैरोगेज ही साधन था. पर जबसे नैरोगेज ट्रेन बंद हुई है, तब से लोग मायूस हैं क्योंकि जिस रूट पर यह ट्रेन चलती थी, वहां अभी भी आवागमन के साधन उपलब्ध नहीं हैं. यही वजह है कि जब से यह ट्रेन बंद हुई है, तब से लोगों को आवागमन के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है.

narrow gauge train
ट्रेन से उतरते यात्री

छोटी लाइन की बड़ी कहानी भाग-1: जब राजा का 'शौक' बन गई 'प्रजा' के जीने का सहारा

नैरोगेज ट्रेन बंद होने से लोगों पर ही नहीं बल्कि व्यापार पर भी बुरा असर पड़ा है. चूंकि इसी ट्रेन में बैठकर 300 से अधिक गांव के लोग व्यापार करने के लिए शहर जाते थे, जब से ट्रेन बंद हुई है, तब से गांव के लोग काफी परेशान हैं. व्यापारियों का कहना है कि नेहरू ब्रिज ट्रेन बंद होने से व्यापार पर काफी बुरा असर पड़ा है. इसी ट्रेन से लोग व्यापार करने शहर जाते थे. ट्रेन बंद होने से गांव के लोग शहर नहीं जा पा रहे हैं. इस ट्रेन के चलाने का मूल उद्देश्य यही था कि पहले गांव के लोग शहर में व्यापार करने नहीं पहुंच पाते थे, इसलिए माधोराव सिंधिया ने इस ट्रेन को चलवाने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी और व्यापार भी बढ़ा था.

Last Updated : Jul 26, 2021, 4:17 PM IST
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