ग्वालियर। दुनिया की सबसे लंबी नैरोगेज ट्रेन ग्वालियर-चंबल अंचल में अब दिखाई नहीं देगी. इसके बंद होने से अंचल के लोगों में मायूसी है. 100 साल से अधिक पुरानी इस नैरोगेज ट्रेन के बंद होने से लोग काफी निराश हैं क्योंकि अंचल के लोगों के लिए ये एक तरह से लाइफलाइन मानी जाती थी. लोग रोजाना इस ट्रेन से यात्रा करते थे, वह अब भी इस ट्रेन के सफर को याद कर रहे हैं. भले ही इसके बदले नई और आधुनिक ब्रॉड गेज ट्रेन का इंतजाम हो जाएगा, पर जो लोगों बचपन-जवानी से लेकर बुढ़ापे तक इसी ट्रेन से रोजाना अपनी मंजिल तक आते-जाते रहे हैं, उसकी स्मृति में वो लम्हा अमिट ही रहेगा.
100 साल से अधिक पुरानी दुनिया की सबसे लंबी नैरोगेज ट्रेन अंग्रेजों की मदद से सिंधिया रियासत के महाराजा माधोराव ने लोगों के आवागमन के लिए चलवाया था. तब आवागमन का यही एकमात्र सहारा था. ट्रेन की सबसे खास बात यह थी कि यह अंचल के हर गांव के आसपास से गुजरती थी. यह ट्रेन ग्वालियर से चलकर मुरैना जिले के कुछ गांव और उसके बाद श्योपुर जिले के अधिकतर गांव से होकर गुजरती थी. मतलब ग्वालियर, मुरैना और श्योपुर जिले के लोगों के लिए एक तरह से जीवनदायिनी थी, लोग इसमें बैठकर आनंददायक सफर करते थे.
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पहले जब आवागमन का कोई साधन नहीं था, तब यह नैरोगेज ट्रेन लोगों के लिए लाइफ लाइन थी, जोकि अंचल के 300 से अधिक गांवों से होकर गुजरती थी. यही वजह है कि इस ट्रेन में सबसे ज्यादा गांव के लोग ही सफर करते थे. लोग इसी ट्रेन से एक गांव से दूसरे गांव तक जाते थे. साथ ही गांव के लोगों को जब शहर जाना हो या फिर किसी दूर गांव, सिर्फ नैरोगेज ही साधन था. पर जबसे नैरोगेज ट्रेन बंद हुई है, तब से लोग मायूस हैं क्योंकि जिस रूट पर यह ट्रेन चलती थी, वहां अभी भी आवागमन के साधन उपलब्ध नहीं हैं. यही वजह है कि जब से यह ट्रेन बंद हुई है, तब से लोगों को आवागमन के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है.
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नैरोगेज ट्रेन बंद होने से लोगों पर ही नहीं बल्कि व्यापार पर भी बुरा असर पड़ा है. चूंकि इसी ट्रेन में बैठकर 300 से अधिक गांव के लोग व्यापार करने के लिए शहर जाते थे, जब से ट्रेन बंद हुई है, तब से गांव के लोग काफी परेशान हैं. व्यापारियों का कहना है कि नेहरू ब्रिज ट्रेन बंद होने से व्यापार पर काफी बुरा असर पड़ा है. इसी ट्रेन से लोग व्यापार करने शहर जाते थे. ट्रेन बंद होने से गांव के लोग शहर नहीं जा पा रहे हैं. इस ट्रेन के चलाने का मूल उद्देश्य यही था कि पहले गांव के लोग शहर में व्यापार करने नहीं पहुंच पाते थे, इसलिए माधोराव सिंधिया ने इस ट्रेन को चलवाने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी और व्यापार भी बढ़ा था.