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आजादी के 74 साल बाद भी बिजली, पानी के लिए तरस रहे ग्रामीण, प्रशासन को नहीं है सुध

श्योपुर का ढेंगदा गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जूझ रहा है. इस गांव में ना तो पीने के पानी की सुविधा है और ना ही बिजली की. ग्रामीण आज भी अंधेरे में समय बिताने के लिए मजबूर है. ग्रामीणों का कहना है कि नदी का गंदा पानी पीना पड़ता है. ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि जो भी पैसा सरकार की ओर से आता है वो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है. इस मामले में कलेक्टर का कहना है कि इस मामले में जानकारी अभी लगी है जांच करवाएंगे.

Villagers yearning for facilities
सुविधाओं के लिए तरस रहे ग्रामीण
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Published : Nov 2, 2021, 8:05 PM IST

Updated : Nov 2, 2021, 8:31 PM IST

श्योपुर। देश को आजादी मिले 74 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज भी प्रदेश में ऐसे गांव है जहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. हम बात कर रहे है श्योपुर जिले का ढेंगदा गांव की. इस गांव के निवासी आज भी बिजली, पानी और सड़क जैसी सुविधाओं के लिए जूझ रहे है. आधुनिकता के इस दौर में बिजली ना मिल पाना अपने आप में बढ़ी समस्या है. ऐसा नहीं है कि सरकार इस गांव के लिए योजनाएं नहीं बनाती. सरकार योजनाएं तो बनाती है, लेकिन वह योजना रास्ते में ही भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ जाती है. भ्रष्टाचार के कारण इस गांव की स्थिति वैसी ही है जैसी आजादी के पहले थी.

सुविधाओं के लिए तरस रहे ग्रामीण

अंधेरे में रहने के लिए मजबूर ग्रामीण

ढेंगदा गांव में रहने वाले ग्रामीण बताते है कि इस गांव में बिजली, पानी और सड़क की सुविधाएं नहीं है. कई बार इसे लेकर सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटे, लेकिन हालात जस की तस बने हुए है. गांव में रहने वाले परसु आदिवासी बताते है कि हमें आज भी मूलभूत सुविधाओं से जूझना पड़ रहा है. बिजली के खंभे तो लगे है लेकिन बिजली नहीं आती है. गांव में पीने के पानी की भी समस्या है. पूरे गांव में एक हैंडपंप नहीं है. ग्रामीणों को पानी के लिए मीलों दूर जाना पड़ता है. कभी कभार तो नदी का गंदा पानी भी पीना पड़ता है.

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कीचड़ से सनी रहती है सड़कें

ग्रामीण परसु बताते है कि इस गांव में सड़क के नाम पर कच्ची पगडंडियां है. ये पगडंडियां भी सालभर कीचड़ से सनी होती है. इस गांव में विकास के लिए सरकार जितना भी पैसा खर्चा करती है, वो पैसा विकास के कामों में नहीं बल्कि अधिकारियों की जेब गर्म करने के काम आता है.

शौचालय और आवास की सुविधा भी नहीं

गांव में रहने वाली रसाली बाई आदिवासी का कहना है कि कलेक्ट्रेट और जिला पंचायत कार्यालयों के ठीक सामने के गांव में लोग सिर्फ मूलभूत सुविधाओं से नहीं, बल्कि आवास और शौचालय जैसी कई सुविधाओं से वंचित है. ग्राम पंचायत के रोजगार सहायक पर आरोप लगाते हुए रसाली बाई कहती है कि वह आवास हो या शौचालय हर काम के बदले पैसे की डिमांड कर रहे हैं. इसके अलावा पंचायत के निर्माण कार्य भी मशीनों और अपने भाई के माध्यम से ठेके पर करवाते हैं.

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कलेक्टर को नहीं है मामले की जानकारी

ईटीवी भारत के संवाददाता ने कलेक्टर शुभम वर्मा से बात की, तो उन्होंने बताया कि इस बारे में हमारे पास कोई जानकारी नहीं थी. मीडिया के माध्यम से ही इस बात की जानकारी लगी है. हम मामले की जांच करवाएंगे. अगर इस मामले में कोई दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

श्योपुर। देश को आजादी मिले 74 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज भी प्रदेश में ऐसे गांव है जहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. हम बात कर रहे है श्योपुर जिले का ढेंगदा गांव की. इस गांव के निवासी आज भी बिजली, पानी और सड़क जैसी सुविधाओं के लिए जूझ रहे है. आधुनिकता के इस दौर में बिजली ना मिल पाना अपने आप में बढ़ी समस्या है. ऐसा नहीं है कि सरकार इस गांव के लिए योजनाएं नहीं बनाती. सरकार योजनाएं तो बनाती है, लेकिन वह योजना रास्ते में ही भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ जाती है. भ्रष्टाचार के कारण इस गांव की स्थिति वैसी ही है जैसी आजादी के पहले थी.

सुविधाओं के लिए तरस रहे ग्रामीण

अंधेरे में रहने के लिए मजबूर ग्रामीण

ढेंगदा गांव में रहने वाले ग्रामीण बताते है कि इस गांव में बिजली, पानी और सड़क की सुविधाएं नहीं है. कई बार इसे लेकर सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटे, लेकिन हालात जस की तस बने हुए है. गांव में रहने वाले परसु आदिवासी बताते है कि हमें आज भी मूलभूत सुविधाओं से जूझना पड़ रहा है. बिजली के खंभे तो लगे है लेकिन बिजली नहीं आती है. गांव में पीने के पानी की भी समस्या है. पूरे गांव में एक हैंडपंप नहीं है. ग्रामीणों को पानी के लिए मीलों दूर जाना पड़ता है. कभी कभार तो नदी का गंदा पानी भी पीना पड़ता है.

नतीजों से पहले ही ज्ञानेश्वर पाटिल का बड़ा बयान, कहा- कांग्रेस पार्टी खत्म हो गई है

कीचड़ से सनी रहती है सड़कें

ग्रामीण परसु बताते है कि इस गांव में सड़क के नाम पर कच्ची पगडंडियां है. ये पगडंडियां भी सालभर कीचड़ से सनी होती है. इस गांव में विकास के लिए सरकार जितना भी पैसा खर्चा करती है, वो पैसा विकास के कामों में नहीं बल्कि अधिकारियों की जेब गर्म करने के काम आता है.

शौचालय और आवास की सुविधा भी नहीं

गांव में रहने वाली रसाली बाई आदिवासी का कहना है कि कलेक्ट्रेट और जिला पंचायत कार्यालयों के ठीक सामने के गांव में लोग सिर्फ मूलभूत सुविधाओं से नहीं, बल्कि आवास और शौचालय जैसी कई सुविधाओं से वंचित है. ग्राम पंचायत के रोजगार सहायक पर आरोप लगाते हुए रसाली बाई कहती है कि वह आवास हो या शौचालय हर काम के बदले पैसे की डिमांड कर रहे हैं. इसके अलावा पंचायत के निर्माण कार्य भी मशीनों और अपने भाई के माध्यम से ठेके पर करवाते हैं.

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कलेक्टर को नहीं है मामले की जानकारी

ईटीवी भारत के संवाददाता ने कलेक्टर शुभम वर्मा से बात की, तो उन्होंने बताया कि इस बारे में हमारे पास कोई जानकारी नहीं थी. मीडिया के माध्यम से ही इस बात की जानकारी लगी है. हम मामले की जांच करवाएंगे. अगर इस मामले में कोई दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

Last Updated : Nov 2, 2021, 8:31 PM IST
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