श्योपुर (PTI): एक नर नामीबियाई चीता जिसे 2 बार भटकने के बाद अनुकूलन बाड़े में रखा गया था, उसे एक बार फिर मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) में जंगल में छोड़ दिया गया है. वन निभाग के DFO ने सोमवार को इसकी जानकारी दी. डीएफओ पीके वर्मा ने बताया कि चीता ओबान, जिसका नाम बदलकर पवन कर दिया गया था उसे पहले बेहोश किया गया और कूनो नेशनल पार्क में वापस लाया गया. 22 अप्रैल को पवन को एक अनुकूलन बाड़े में रखा गया क्योंकि वह वन परिक्षेत्र से बाहर निकल कर पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने वाला था"
भागे हुए चीतो को कूनो के जंगलों में छोड़ा गया: अधिकारियों के मुताबिक, इससे पहले 6 अप्रैल को करीब 750 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले कूनो नेशनल पार्क से चीता भाग गया था और उसे ट्रैंकुलाइज करने के बाद वापस लाया गया था. डीएफओ वर्मा ने कहा, "एक महीने तक उसे अनुकूलन बाड़े में रखने के बाद, हमने उसे रविवार को कूनो के जंगल में छोड़ दिया."
चीता साशा और उदय की हुई ऐसी मौत: डीएफओ पीके वर्मा ने बताया कि "वर्तमान में कूना पार्क में 10 चीते हैं, जबकि 7 अनुकूलन बाड़े में हैं. पिछले 10 महीनों में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से 20 चीतों को कूनो नेशनल पार्क में स्थानांतरित किया गया था. नामीबिया की साढ़े चार साल से अधिक उम्र की मादा चीता साशा की 27 मार्च को किडनी की बीमारी से मृत्यु हो गई, जबकि दक्षिण अफ्रीका से स्थानांतरित छह वर्षीय नर चीता उदय की 23 अप्रैल को कार्डियो फेल्योर के कारण मौत हो गई."
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चीतों को भारत लाने की परियोजना: उन्होंने बताया कि "आखिरी मादा चीता दक्षा, जो दक्षिण अफ्रीका से 12 शिकारियों के एक समूह के साथ आई थी. 9 मई को वर्चस्व को लेकर दो नर के साथ लड़ाई में मर गई. सियाया नाम की एक अन्य चीता ने हाल ही में चार शावकों को जन्म दिया, लेकिन जल्द ही उनमें से तीन की मौत हो गई. भारत में चीतों को फिर से लाने और बसाने की परियोजना पिछले साल सितंबर में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई थी. देश के आखिरी चीते की मृत्यु 1947 में वर्तमान छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में हुई थी. इस प्रजाति को 1952 में विलुप्त घोषित कर दिया गया था."