शहडोल जिले के छपरा गांव में ईटीवी भारत सैनेटरी पैड के इस्तेमाल को लेकर जमीनी हकीकत टटोलने पहुंचा तो चौंकाने वाले सच्चाई सामने आई. गांव से शहर पहुंच चुकी कुछ लड़कियां सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करने लगी हों, लेकिन गांव में रह रही लड़कियां अभी भी कपड़े का ही इस्तेमाल करती है. लोगों में जागरूकता के अलावा आर्थिक तंगी भी इसकी बड़ी वजह बतायी जा रही है.
सामाजिक कार्यकर्ता अदिति तिवारी जो पिछले कुछ साल में सेनेटरी हाइजिन को लेकर काफी लड़कियों और महिलाओं को जागरूक करते आई हैं. यहां तक उन्होंने बताया कि वो स्कूलों में जाकर भी लड़कियों को जागरुक करती आई है. जहां उन्होंने पाया कि सेनेटरी हाइजीन को लेकर इस आदिवासी अंचल की लड़कियों और महिलाओं में संकोच बहुत बड़ा रोड़ा है. आज भी संकोच के चलते माहवारी को लेकर किसी से बात नहीं कर पाती है. अदिति तिवारी खुद मानती हैं कि आज भी जिले में माहवारी को लेकर जागरूकता की कमी है और अभी इस बात को लेकर काफी काम करने की जरूरत है।
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महिला डॉक्टर पी.थारवानी का कहना है कि महिलाएं जब भी उनके पास आती हैं तो वो या तो अपने माता पिता के साथ आती है, लेकिन अपने पति या भाई के साथ नहीं आती हैं. जिसका एक कारण शर्म है. डॉक्टर का कहना है कि केवल 50 प्रतिशत स्कूल गोइंग लड़कियां और कॉलेज गोइंग लड़कियां सैनेटरी हाइजिन को लेकर जागरूक हैं. डॉक्टर कहती है कपड़ा यूज करने से महिलाओं को थाइस और वेजाइनल रीजन में इन्फेक्शन हो सकता है.हालांकि सैनेटरी हाइजिन को लेकर आज भी जिले में काफी अवेयरनेस की जरूरत है.