शहडोल। शहडोल आदिवासी बाहुल्य जिला है, और बदलते वक्त के साथ यहां भी बहुत कुछ बदलाव देखने को मिला है. ऐसे में जिले में लिंग निर्धारण परीक्षण और भ्रूण हत्या को लेकर क्या हालात हैं, इसे जानने के लिए ईटीवी भारत ने पड़ताल की. उनसे संबंधित अलग अलग जगहों पर अलग अलग लोगों से बात की. ये जानने की कोशिश की आखिर इस 21वीं सदी में भी क्या लोगों की सोच बदली है या फिर आज भी लिंग निर्धारण परीक्षण और भ्रूण हत्या जैसे गंभीर मामले यहां देखने को मिलते हैं. क्या आज भी इनसे संबंधित लोगों से लोग इन बातों के लिए संपर्क करते हैं, जिले में मेल और फीमेल का रेशियो क्या है ?
समय-समय पर होती है निगरानी
शहडोल जिले के सीएमएचओ डॉ एमएस सागर के पास जब हम इस बारे में जानने के लिए पहुंचे तो उन्होंने बताया कि लिंग निर्धारण परीक्षण और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए उचित सतर्कता बरती जा रही है. इस मुद्दे पर जिले में समय-समय पर निगरानी चलती रहती है और अब तक ऐसा कोई बड़ा हमारे पास तथ्य नहीं मिला या की कोई सेंटर नहीं मिला, जिसमें कोई बड़ी कार्रवाई की जा सके. इस मामले को लेकर यहां हालात सामान्य हैं और इस तरह के केस नहीं है. सीएमएचओ कहते हैं कि निश्चित तौर पर समय-समय पर टीम बनी हुई है, जो टीम बनी हुई है वो निगरानी भी करती है और निरीक्षण के दौरान अगर कोई कमी होती है तो जो भी वैधानिक कार्रवाई उस समय होती है. वो की जाती है. कन्या भ्रूण हत्या और लिंग निर्धारण परीक्षण को लेकर जिले में स्थिति सामान्य है.
जिले में इतने सेंटर्स पर होते हैं प्रसव
सीएमएचओ डॉक्टर एमएस सागर ने बताया कि जिले में प्रसव कराने के लिए दो तरीके के सेंटर चलते हैं. एक प्राइवेट सेंटर हैं, जहां प्रसव कराए जाते हैं और एक गवर्नमेंट सेंटर होते हैं. जो गवर्नमेंट सेंटर हैं, वहां जिले में ऐसे 33 डिलीवरी प्वाइंट हैं, जहां पर हम डिलीवरी कराते हैं और एक सेंट्रल का सेंट्रल हॉस्पिटल है. एसईसीएल का उसमें भी डिलीवरी कराई जाती है और प्राइवेट में जिले में ऐसे 7 सेंटर हैं. जहां प्रसव कराने की अनुमति दी गई है, जहां पर डिलीवरी कराई जाती है.
आंकड़ों पर नजर डालें तो शहडोल जिले में अलग-अलग जगहों पर 33 सरकारी डिलीवरी पॉइंट जो हैं, जहां प्रसव कराए जाते हैं. वहां पर एक अप्रैल 2020 से फरवरी 2020 तक 19,423 डिलीवरी कराई गई है.
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लड़के और लड़कियों के जन्म के आंकड़े
- सीएमएचओ कार्यालय से बच्चों के जन्म के जो आंकड़े मिले हैं. उसके मुताबिक जिले में साल 2020- 21 में लगभग 21,731 टोटल बच्चों का जन्म हुआ. जिसमें 11,196 मेल बच्चों का जन्म हुआ तो 10,535 बच्चियों का जन्म हुआ. मतलब यहां भी पुरुष और महिला बच्चों के जन्म के रेशियो में अंतर देखने को मिला.
- साल 2019-20 के आंकड़ों पर नजर डालें तो 23,261 बच्चों का जन्म हुआ. जिसमें 12,011 मेल बच्चों का जन्म हुआ, तो वहीं 11,250 फीमेल बच्चियां पैदा हुईं.
- साल 2018-19 के आंकड़ों पर नजर डालें तो लगभग 21,591 बच्चों का जन्म हुआ. जिसमें 11,255 मेल बच्चे पैदा हुए तो वहीं 10,336 फीमेल बच्चों का जन्म हुआ.
- साल 2017-18 में बच्चों के जन्म के आंकड़ों पर नज़र डालें तो इस दौरान लगभग 20,643 बच्चों के जन्म हुए जिसमें 10,902 मेल बच्चे पैदा हुए 9,741 फीमेल बच्चे जन्म लिए.
- चारों सालों के आंकड़ों पर नजर डाला जाए तो इस दौरान मेल और फीमेल बच्चों के जन्म के रेशियो पर अंतर देखने को मिला है, हर वर्ष मेल बच्चे पैदा होने वालों की संख्या ज़्यादा है. मेल और फीमेल बच्चों के जन्म के रेशियो में अंतर है.
कभी कभी कुछ लोग पूछने की कोशिश करते हैं
इस दौरान हमने कई ऐसे सोनोग्राफी वाले सेंटर्स पर भी संपर्क किया जो पिछले कई सालों से जिले में सोनोग्राफी कर रहे हैं. जब उनसे हमने पूछा कि क्या आज के दौर में भी आपके पास ऐसे लोग आते हैं, जो लिंग परीक्षण की बात करते हों लड़के का जन्म होगा या लड़की का जन्म होगा. इसके बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि गरीब तबका तो उनसे नहीं पूछता और ना ही उनके पास पहुंचते हैं और ना ही उनमें यह समस्या देखने को मिलती है. उन्होंने हैरानी भरा जवाब देते हुए कहा कि आज भी ज्यादा तो नहीं बहुत ही कम कभी-कभी अपवाद स्वरूप कह लीजिए कुछ लोग पहुंचते हैं. यह पूछने की कोशिश करते हैं कि जिसका जन्म होगा लड़की या लड़का क्या है, लेकिन उन्हें हम समझा कर वापस भेज देते हैं. ऐसे सवाल लेकर पढ़ा लिखा वर्ग ही पहुंचता है, पैसे वाले लोग ही होते हैं. गरीब तबके में ये समस्या देखने को नहीं मिलती. हालांकि उन्होंने ये भी कहा की शहडोल जिले में कन्या भ्रूण हत्या और लिंग निर्धारण परीक्षण जैसी समस्याएं नहीं है. ऐसे मामले यहां बहुत ही कम ना के बराबर ही मिलते हैं. ऐसे सवाल लेकर भी विरले ही लोग पहुंचते हैं. जिन्हें समझाइश देते हैं और वापस भेज देते हैं.
जिले की स्थिति बेहतर
समाजसेवी मेघा पवार जो अक्सर ही बच्चियों और महिलाओं के बीच रहकर काम करते रहती हैं, वो बताती हैं कि इस मामले में जो उनका अनुभव रहा है. उसमें कन्या भ्रूण हत्या, लिंग परीक्षण जैसी समस्याएं देखने को नहीं मिली हैं. मेघा पवार कहती हैं कि जो आर्थिक तौर पर कमजोर होते हैं, आदिवासी बाहुल्य इलाके में उनके पास ना तो इतने साधन होते हैं और ना ही उनके पास इतने पैसे होते हैं कि वह लिंग परीक्षण के बारे में सोच भी सकें. मुझे लगता है कि शायद उनका इसमें विश्वास भी नहीं होता है. यह बात जरूर है कि कहीं कहीं ये देखने को मिलता है कि लड़के की चाह में उनके यहां बच्चों की संख्या जरूर ज्यादा हो जाती है, लेकिन कन्या भ्रूण हत्या और लिंग परीक्षण की समस्या आदिवासी बहुल इलाके में आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों के बीच में देखने को बिल्कुल नहीं मिलती है. यह समस्या वैसे तो हमारे जिले में देखने को नहीं मिलती है, लेकिन जहां थोड़ी बहुत कहीं सुनने में आ भी जाती है, तो पढ़ा-लिखा समाज में ही ये बातें सामने आती हैं. उनकी मानसिकता रहती है कि एक बच्ची हो जाने के बाद, दूसरे प्रेगनेंसी में टेस्ट करवाने की सोचते हैं, वो सोचते हैं कि दूसरी बच्ची ना हो जाए, वो इसे आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते हैं कि दो बच्चियां हों. समाजसेवी मेघा पवार कहती हैं कि समाज में ये बहुत जरूरी है कि महिलाएं इस बात को लेकर जागरूक हों, युवाओं में जागरूकता हो, साथ ही महिलाओं के प्रति लोगों में सम्मान हो तभी ये समस्या दूर हो सकती है. हालांकि इस मामले में अपने जिले की स्थिति बेहतर है.