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शहडोल: अरहर किसानों के लिए अच्छी खबर, 'उषा 16' की फार्मिंग से बदल जाएगी किस्मत !

शहडोल धान की खेती के लिए जाना जाता है साथ ही जिले में बड़ी मात्रा में अरहर की खेती की होती है. शहडोल कृषि विज्ञान केंद्र दिल्ली से अरहर के नई किस्म लेकर आया है, जिसकी खेती एक साल में दो बार की जा सकेंगी. फिलहाल कृषि विज्ञान केंद्र ने इस बीज को ट्रायल पर रखा है.

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Published : Sep 4, 2019, 7:44 PM IST

अरहर दाल पर राय देते कृषि वैज्ञानिक

शहडोल। आदिवासी जिला शहडोल धान की खेती के लिए जाना जाता है. इसके अलावा जिले में बड़ी मात्रा में अरहर की खेती की जाती है. जिले में अरहर की जिन किस्मों की खेती की जाती है, उससे किसान पूरे साल में सिर्फ एक ही बार पैदावार ले पाते हैं. लेकिन शहडोल कृषि विज्ञान केंद्र दिल्ली से अरहर के नई किस्म लेकर आया है, जिसकी खेती एक साल में दो बार की जा सकेंगी. फिलहाल कृषि विज्ञान केंद्र ने इस बीज को ट्रायल पर रखा है.

'उषा 16' बीज से बढ़ेगी किसानों की आय

कृषि वैज्ञनिक डॉ. पीएन त्रिपाठी ने बताया कि शहडोल जिले में खरीफ के सीजन में लगभग 12 से 14 हज़ार हेक्टेयर एरिया में अरहर की फसल लगाई जाती है, लेकिन यहां अरहर की जिन किस्मों की खेली होता है, वो 180 से 200 दिन की हैं. जिसके चलते अरहर की खेती करने वाले किसान अपने खेतों में दूसरी फसल नहीं लगा पाते हैं.

शहडोल कृषि विज्ञान केंद्र दिल्ली से अरहर की एक ऐसी किस्म लेकर आया है, जो महज 120 से 125 दिन में फसल पक कर तैयार हो जाती है.

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि दिल्ली से 'उषा 16' नाम की किस्म है, जिसका बीज दिल्ली से लाया गया है. इस बीज को इस साल ट्रायल के तौर पर लगवाया गया है और कुछ किसानों को भी दी गई है.

शहडोल। आदिवासी जिला शहडोल धान की खेती के लिए जाना जाता है. इसके अलावा जिले में बड़ी मात्रा में अरहर की खेती की जाती है. जिले में अरहर की जिन किस्मों की खेती की जाती है, उससे किसान पूरे साल में सिर्फ एक ही बार पैदावार ले पाते हैं. लेकिन शहडोल कृषि विज्ञान केंद्र दिल्ली से अरहर के नई किस्म लेकर आया है, जिसकी खेती एक साल में दो बार की जा सकेंगी. फिलहाल कृषि विज्ञान केंद्र ने इस बीज को ट्रायल पर रखा है.

'उषा 16' बीज से बढ़ेगी किसानों की आय

कृषि वैज्ञनिक डॉ. पीएन त्रिपाठी ने बताया कि शहडोल जिले में खरीफ के सीजन में लगभग 12 से 14 हज़ार हेक्टेयर एरिया में अरहर की फसल लगाई जाती है, लेकिन यहां अरहर की जिन किस्मों की खेली होता है, वो 180 से 200 दिन की हैं. जिसके चलते अरहर की खेती करने वाले किसान अपने खेतों में दूसरी फसल नहीं लगा पाते हैं.

शहडोल कृषि विज्ञान केंद्र दिल्ली से अरहर की एक ऐसी किस्म लेकर आया है, जो महज 120 से 125 दिन में फसल पक कर तैयार हो जाती है.

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि दिल्ली से 'उषा 16' नाम की किस्म है, जिसका बीज दिल्ली से लाया गया है. इस बीज को इस साल ट्रायल के तौर पर लगवाया गया है और कुछ किसानों को भी दी गई है.

Intro:Note_ वर्ज़न कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर पीएन त्रिपाठी का है।

दिल्ली से आई अरहर की ये किस्म, यहां के किसानों के लिए साबित हो सकती है वरदान

शहडोल- शहडोल जिला आदिवासी अंचल के अन्तर्गत आता है, यहां ख़रीफ के सीजन में धान की खेती तो प्रमुखता से की ही जाती है इसके अलावा अरहर की खेती का भी यहां बड़ा रकबा है। यहां अरहर के जिन बीजों के किस्म की खेती की जाती है, वो ज्यादा दिन के हैं करीब 180 से 200 दिन के जिसके चलते जो किसान अरहर की खेती करते हैं वो अभी एक ही फसल ले पाते हैं, ऐसे में अब शहडोल कृषि विज्ञान केंद्र इस सीजन में दिल्ली से लाकर एक ऐसे अरहर के किस्म का ट्रायल कर रही है जो महज 120 से 125 दिन की है। इसका कृषि विज्ञान केंद्र खुद ट्रायल के तौर पर अपने देख रेख में लगाकर रखा है साथ ही कुछ किसानों के खेतों में भी लगाया गया है। कृषि वैज्ञनिक डॉक्टर पीएन त्रिपाठी कहते हैं अरहर की ये नई किस्म यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है।


Body:किसानों के लिए वरदान है ये किस्म

शहडोल कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर पीएन त्रिपाठी बताते हैं कि शहडोल जिले में खरीफ के सीजन में लगभग 12 से 14 हज़ार हेक्टेयर एरिया में अरहर की फसल लगाई जाती है, लेकिन यहां अरहर की जिन किस्मों का इस्तेमाल होता है वो 180 से 200 दिन की हैं जिसके चलते अरहर की खेती करने वाले किसान दूसरी फसल नहीं लगा पाते हैं इसे देखते हुए शहडोल कृषि विज्ञान केंद्र ने दिल्ली से अरहर की एक ऐसी किस्म लेकर आया है जो महज 120 से 125 दिन में हो जाता है, इस किस्म का नाम है उषा 16, इस किस्म को अभी कृषि विज्ञान केंद्र ने ट्रायल के तौर पर रखा है, और कुछ किसानों के खेतों में भी लगाकर देख रही है।
शहडोल के मौसम में उषा 16 की ये फसल कैसी होती है, इसका उत्पादन कितना होता है कितने दिन में होती है इसके अलावा रोग व्याधि को लेकर ये कैसा है, कृषि वैज्ञनिकों ने बताया की अबतक तो अरहर की ये किस्म शानदार है।

अबतक इन किस्मों को लगाते आये हैं किसान

शहडोल जिले में अरहर की जिन किस्मों को लगाया जाता है उसमें सबसे ज्यादा एरिया में आशा, राजीव लोचन, और टीजेटी 501 का है।
इतना ही नहीं अभी कुछ किसानों के पास पुराने किस्म की बीज है तो वो किसान उसी को लगा रहे हैं।

आशा करीब 180 से 200 दिन की है, राजीव लोचन 160 दिन, टीजेटी जो मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा चलन में है, जो कि 150 से 155 दिन में पककर तैयार हो जाता है।




Conclusion:गौरतलब है कि अरहर की पुरानी किस्मों को लगाने पर एक साल में किसान एक ही फसल ले पाता है क्योंकि ज्यादा दिन की होती है ऐसे में दिल्ली से लाई गई उषा 16 की ये नई किस्म जो कम दिन की है और इसे लगाने के बाद किसान अरहर के फसल के अलावा एक और फसल ले सकता है, साथ ही अरहर की इस नई किस्म में उत्पादन भी बम्पर होगा, जिससे किसानों को बहुत फायदा होगा, एक तरह से कहा जाए तो अरहर की ये किस्म यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है।
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