शहडोल। एक दौर था जब गांव में जाते थे तो वहां के तालाब जलमग्न होते थे. पानी से तालाब लबालब भरे रहते थे. तालाबों में पानी की कोई कमी नहीं रहती थी, लेकिन अब साल दर साल गांवों के तालाब भी पानी के लिए तरसने लगते हैं. कई साल पहले तक गांव में कई ऐसे तालाब होते थे, जहां 12 महीने पानी भरा रहता था और उस तालाब से पूरा गांव अपनी दैनिक दिनचर्या के लिए पानी लेता था. पशु -पक्षी व हर तरह के जीवों के लिए ये तालाब पानी के बड़े श्रोत होते हैं. लेकिन अब बदलते वक्त के साथ गांवों के तालाबों की स्थिति भी खराब हो चुकी है.
तालाब सूखे तो कुएं भी सूखने लगे : तालाबों में अब थोड़ी बहुत ही पानी बचा है. वे सूखने की कगार पर हैं. अप्रैल तक पानी चल जाए तो बहुत है. मतलब, गांव में भी इस बार ज्यादातर तालाब सूख जाएंगे. ग्रामीण बताते हैं कि जैसे-जैसे अब गांव में तालाब सूखने लगे हैं, गांव में पानी की कमी होने लगी है. पहले गांव में कुएं नहीं सूखते थे, क्योंकि तालाब में पानी रहता था लेकिन अब गांव के तालाब जब सूखने लग गए तो कुओं से भी पानी गायब हो जा रहा है. इससे लोगों को जल संकट से जूझना पड़ रहा है.
गांवों का शहरीकरण भी एक बड़ी वजह : गांवों के युवा और बुजुर्गों का कहना है कि अब गांव में भी शहर की तरह विकास हो रहा है. शहर की तरह सुख- सुविधाएं आ रही हैं. पहले गांव के लगभग हर घर के लोग तालाब से जुड़े रहते थे. कोई स्नान करने के लिए जाता था, कोई अपने मवेशियों को पानी पिलाने के लिए जाता था. जैसे-जैसे लोगों के घरों में संपन्नता आ रही है, सुख सुविधाएं बढ़ रही हैं. घरों में ही पानी की सुविधाएं बढ़ गई हैं. उसके बाद से तालाबों से लोगों की निर्भरता कम हुई है और जब मानव जाति की निर्भरता तालाबों से कम हो रही है तो लोग उसके मेंटेनेंस पर भी ध्यान नहीं दे रहे हैं. अब लोगों को इन तालाबों से मतलब ही नहीं है.
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सरकार का भी ध्यान नहीं : जिला मुख्यालय से लगभग 35 से 40 किलोमीटर दूर के गांवों में जाकर जब ग्रामीणों से बात की गई तो उन्होंने बताया इसकी एक वजह यह भी है कि तालाबों में मनरेगा के तहत सरकार कार्य तो कराती है लेकिन एक प्लानिंग के तहत कार्य कराया जाना चाहिए. कहां से वाटर लेवल इसका आएगा, कहां से पानी आने की इसकी जगह हैं. इन सारी चीजों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए. मनरेगा के तहत तो काम करवा दिए जाते हैं, लेकिन वह कार्य उस तालाब के लिए किसी काम के नहीं होते हैं. ( ponds started dry in villages)