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आवारा मवेशियों से किसानों की बढ़ी मुश्किलें, देखें गौशाला में मवेशियों का चौंका देने वाला रियलिटी चेक - Cowshed

एक ओर जहां गोवंश (Cattle) को लेकर देश में राजनीति अक्सर गरमाई रहती है. वहीं आज कल कांग्रेस (Congress) हो या फिर बीजेपी (BJP) सभी गौ वंश को लेकर राजनीति करते रहते हैं, लेकिन धरातल पर उनकी क्या स्थिति है ये जानने के लिए देखें ये रियलिटी चेक...

Gaushala in Shahdol
गौशाला में मवेशियों रियलिटी चेक
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Published : Oct 2, 2021, 10:29 AM IST

Updated : Oct 2, 2021, 11:49 AM IST

शहडोल। एक ओर जहां गोवंश (Cattle) को लेकर देश में राजनीति (Politics) अक्सर गरमाई रहती है, लेकिन धरातल पर मवेशियों की स्थिति काफी दयनीय है. सरकार गोवंश की सुरक्षा के लिए आवारा मवेशियों को आश्रय देने के लिए लाखों रुपए की लागत से जगह-जगह गौशालाओं (Cowshed) के निर्माण तो करा रही है. लेकिन वहां के क्या हालात हैं और गौशालाओं का निर्माण हो जाने से क्या आवारा मवेशियों से लोगों और किसानों को राहत मिली है? क्या उन गौशालाओं में मवेशियों की सही से देखरेख हो रही है? जानने के लिए देखिये ये ग्राउंड रिपोर्ट...

गौशाला में मवेशियों रियलिटी चेक

सरकारें बदलीं पर नियम नहीं
प्रदेश में जब कांग्रेस (Congress) की कमलनाथ सरकार आई तो घोषणा की गई कि, प्रदेशभर में गौशालाओं के निर्माण किए जाएंगे. जिससे आवारा मवेशियों की समस्या सुलझ जाएगी. जहां आवारा मवेशियों का सही से देख रेख किया जाएगा, निर्माण कार्य शुरू हुए और फिर उसके बाद बीजेपी सरकार की एंट्री हो गई, तब भी निर्माण कार्य जारी रहे, लेकिन जिस मकसद के साथ इन सरकारी गौशालाओं का निर्माण कराया जा रहा है. क्या वह व्यवस्थाएं उन गौशालाओं में मिल पा रही हैं. क्या समय-समय पर गोवंश को खाना मिल पा रहा है. उनकी अच्छे से व्यवस्था हो पा रही है.

गिनती के मवेशी, फिर भी व्यवस्था खस्ता हाल
शहडोल जिला मुख्यालय से लगभग 15 से 20 किलोमीटर दूर है पड़मनिया कला का गौशाला. सड़क किनारे ही पड़मनिया कला का यह भव्य गौशाला बनाया गया है, जो दूर से देखने पर बहुत ही खूबसूरत लगता है. दीवारों पर डेंटिंग पेंटिंग भी अच्छी की गई है, लेकिन उसी डेंटिंग पेंटिंग कि तरह अगर इन गोवंशों का ख्याल भी रखा जाता तो शायद यह गौशाला एक आदर्श गौशाला बन जाती.

गौशाला में मवेशियों की बदहाली
जब उस गौशाला के अंदर पहुंचे तो कुछ और ही तस्वीरें देखने को मिली. शुरुआत में तो गेट खुला हुआ था. जैसे ही गौशाला के अंदर प्रवेश किया वहां कोई भी नजर नहीं आया और अंदर जब हम पहुंचे तो वहां महज गिनती के 7 से 8 मवेशी ही नजर आए, उसमें भी कुछ मवेशी घायल थे, तो कुछ के गले में रस्सी बंधी हुई थी. ऐसा लग रहा था मानो कोई बंद करके चला गया हो.

खाने के लिए सिर्फ सूखा भूसा
इतना ही नहीं खाने के नाम पर सिर्फ वहां सूखा भूसा पड़ा हुआ था, जिसे मवेशी चाटते नजर आए. मवेशियों की हालत जो नजर आ रही थी. उसे देखकर यही लग रहा था मानो उन्हें भरपेट भोजन ना मिल पा रहा हो, कुछ देर बाद उन मवेशियों की देखरेख करने वाली मुन्नी बैगा वहां पहुंची और जब हमने उनसे पूछा कि आपके गौशाला में कितनी मवेशी है और कितने बजे आप इन्हें खाना देती हैं, तो उस पर उनका कहना था की गौशाला में टोटल 8 मवेशी हैं और इन मवेशियों को पहले सुबह, फिर 12 बजे और फिर इसके बाद 3 बजे भोजन देते हैं.

सरकारी सुविधाओं का नहीं मिल रहा फायदा
जब मवेशियों की देखरेख करने वाली मुन्नी बैगा से पूछा कि यहां मवेशियों की एंट्री कैसे होती है, उस पर मुन्नी बैगा ने बताया कि लोग अपने से ही लाकर अंदर मवेशियों को बंद कर जाते हैं. बहरहाल, उस गौशाला में गिनती के मवेशी थे, लेकिन उनकी हालत जिस तरह की नजर आ रही थी. ऐसा लग रहा था मानों उनका सही से खानपान नहीं हो रहा है. जिस मकसद के साथ सरकार गौशालाओं का निर्माण करा रही है, वो व्यवस्थाएं उन गोवंशों को नहीं मिल पा रही है.

पहले थे ज्यादा मवेशी, अचानक हो गए कम
पड़मनिया कला के गौशाला की जब शुरुआत हुई थी तो अचानक वहां मवेशियों की संख्या काफी ज्यादा थी जिसे सड़क किनारे आते जाते लोग साफ तौर पर देख भी सकते थे, लेकिन पिछले कुछ महीने से अचानक ही उस गौशाला में मवेशियों की संख्या एकदम से कम हो गई है यह भी एक सवाल है कि आखिर मवेशी अचानक कम क्यों हुए इसके बारे में जब हमने वहां के केयरटेकर उन्हें खाना देने वाली मुन्नी बैगा से पूछा तो उनका कहना था कि बहुत सारे मवेशी मर गए हैं.

जानिए जिले में गौशाला की स्थिति
शहडोल जिले में आखिर इस तरह की कितनी गौशालाएं, बन रही हैं, और उनकी क्या स्थिति है इसे जानने के लिए हम पहुंचे मनरेगा के लेखाधिकारी और गौशाला के प्रभारी अधिकारी अशोक शुक्ला के पास जिन्होंने बताया की शहडोल जिले में वर्तमान में 37 गौशाला बनाने के लिए स्वीकृत हुए हैं, जिसमें से 9 गौशालाएं पूर्ण हो चुकी हैं, और 28 जो हैं वो प्रगति पर हैं, इसमें से जो 9 गौशाला हमारी पूर्ण हुई हैं, 8 का संचालन कार्य भी शुरू हो गया है जिसमें 3 में स्थानीय एनजीओ और 6 जो हैं वो स्वसहायता समूह के माध्यम से जिले में संचालित हो रही हैं. इसके संचालन की जिम्मेदारी पशुपालन विभाग की है, जिसके तहत सभी स्वसहायता समूहों को अधिकृत किया गया है, वहां जाने के बाद पशुओं को पहले पंजीकृत किया जाता है. उसके बाद उनकी जिओ टैगिंग होती है और फिर उसके बाद वहां पर उनकी देखरेख की जाती है.

क्या गौशाला का ग्रामीण क्षेत्रों में दिखा कोई फायदा ?
गौशाला निर्माण हो जाने के बाद क्या ग्रामीण क्षेत्रों में आवारा मवेशियों से किसानों को कोई राहत मिली इसे जानने के लिए हमने पड़मनिया कला के ही आसपास के ग्रामीणों से बात की और उनसे जाना कि जो पहले आवारा मवेशियों की समस्याएं उनके खेतों पर होती थी क्या वह समस्या खत्म हो गई कुछ कम हुई है इस पर ग्रामीण भैया लाल सिंह जो खुद एक किसान भी हैं वह बताते हैं की गौशाला के बाजू से ही एक जंगल है जहां करीब 40 आवारा मवेशी निवास करते हैं और आसपास के गांवों में फसलों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं लेकिन गौशाला तो शुरू हो चुका है, और उस समस्या से निजात अब तक नहीं मिली है गौशाला खोलने का कोई फायदा नहीं मिला है समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं.

इन कारणों से घरों की छत से गायब हुए कौवे, श्राद्ध खिलाने जंगल पहुंच रहे लोग

आज भी उतने ही मवेशी हो रहे घायल
शहरी क्षेत्रों पर सड़कों पर हाईवेज में जो आवारा मवेशी बैठे रहते हैं और दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं गौशालाओं के शुरू हो जाने के बाद क्या गौवंश के एक्सीडेंटल केस आने कम हुए हैं इसे जानने के लिए हमने बात की गौ सेवा संस्थान के एक गौ सेवक से जिनकी टीम दिन-रात पिछले कई सालों से ऐसे घायल आवारा लावारिस बीमार मवेशियों का रेस्क्यू करते हैं जिस पर गौ सेवक गौरव मिश्रा बताते हैं कि सरकार की गौशाला तो धीरे-धीरे अब शुरू हो रही हैं लेकिन जितना रेस्क्यू वह पहले आवारा मवेशियों का करते थे उससे ज्यादा अभी भी आ रहे हैं उस पर कोई कमी नहीं हुई है गौशाला खोलने का कोई विशेष फायदा नहीं मिला है।

मवेशियों की व्यवस्था पर बड़ा सवाल
गौरतलब है कि गोवंश को लेकर राजनीति तो हर पार्टी कर रही है, लेकिन क्या उस गोवंश को सही तरीके से सुरक्षा मिल पा रही है क्या आवारा मवेशियों से किसानों को राहत मिल पा रही है सड़कों पर बैठने वाले आवारा मवेशियों की समस्या क्या सुलझ पा रही है और जो सरकार की गौशालाये शुरू भी हो गई हैं, उन गौशालाओं में क्या उन मवेशियों को सही व्यवस्थाएं मिल पा रही हैं यह भी एक बड़ा सवाल है.

शहडोल। एक ओर जहां गोवंश (Cattle) को लेकर देश में राजनीति (Politics) अक्सर गरमाई रहती है, लेकिन धरातल पर मवेशियों की स्थिति काफी दयनीय है. सरकार गोवंश की सुरक्षा के लिए आवारा मवेशियों को आश्रय देने के लिए लाखों रुपए की लागत से जगह-जगह गौशालाओं (Cowshed) के निर्माण तो करा रही है. लेकिन वहां के क्या हालात हैं और गौशालाओं का निर्माण हो जाने से क्या आवारा मवेशियों से लोगों और किसानों को राहत मिली है? क्या उन गौशालाओं में मवेशियों की सही से देखरेख हो रही है? जानने के लिए देखिये ये ग्राउंड रिपोर्ट...

गौशाला में मवेशियों रियलिटी चेक

सरकारें बदलीं पर नियम नहीं
प्रदेश में जब कांग्रेस (Congress) की कमलनाथ सरकार आई तो घोषणा की गई कि, प्रदेशभर में गौशालाओं के निर्माण किए जाएंगे. जिससे आवारा मवेशियों की समस्या सुलझ जाएगी. जहां आवारा मवेशियों का सही से देख रेख किया जाएगा, निर्माण कार्य शुरू हुए और फिर उसके बाद बीजेपी सरकार की एंट्री हो गई, तब भी निर्माण कार्य जारी रहे, लेकिन जिस मकसद के साथ इन सरकारी गौशालाओं का निर्माण कराया जा रहा है. क्या वह व्यवस्थाएं उन गौशालाओं में मिल पा रही हैं. क्या समय-समय पर गोवंश को खाना मिल पा रहा है. उनकी अच्छे से व्यवस्था हो पा रही है.

गिनती के मवेशी, फिर भी व्यवस्था खस्ता हाल
शहडोल जिला मुख्यालय से लगभग 15 से 20 किलोमीटर दूर है पड़मनिया कला का गौशाला. सड़क किनारे ही पड़मनिया कला का यह भव्य गौशाला बनाया गया है, जो दूर से देखने पर बहुत ही खूबसूरत लगता है. दीवारों पर डेंटिंग पेंटिंग भी अच्छी की गई है, लेकिन उसी डेंटिंग पेंटिंग कि तरह अगर इन गोवंशों का ख्याल भी रखा जाता तो शायद यह गौशाला एक आदर्श गौशाला बन जाती.

गौशाला में मवेशियों की बदहाली
जब उस गौशाला के अंदर पहुंचे तो कुछ और ही तस्वीरें देखने को मिली. शुरुआत में तो गेट खुला हुआ था. जैसे ही गौशाला के अंदर प्रवेश किया वहां कोई भी नजर नहीं आया और अंदर जब हम पहुंचे तो वहां महज गिनती के 7 से 8 मवेशी ही नजर आए, उसमें भी कुछ मवेशी घायल थे, तो कुछ के गले में रस्सी बंधी हुई थी. ऐसा लग रहा था मानो कोई बंद करके चला गया हो.

खाने के लिए सिर्फ सूखा भूसा
इतना ही नहीं खाने के नाम पर सिर्फ वहां सूखा भूसा पड़ा हुआ था, जिसे मवेशी चाटते नजर आए. मवेशियों की हालत जो नजर आ रही थी. उसे देखकर यही लग रहा था मानो उन्हें भरपेट भोजन ना मिल पा रहा हो, कुछ देर बाद उन मवेशियों की देखरेख करने वाली मुन्नी बैगा वहां पहुंची और जब हमने उनसे पूछा कि आपके गौशाला में कितनी मवेशी है और कितने बजे आप इन्हें खाना देती हैं, तो उस पर उनका कहना था की गौशाला में टोटल 8 मवेशी हैं और इन मवेशियों को पहले सुबह, फिर 12 बजे और फिर इसके बाद 3 बजे भोजन देते हैं.

सरकारी सुविधाओं का नहीं मिल रहा फायदा
जब मवेशियों की देखरेख करने वाली मुन्नी बैगा से पूछा कि यहां मवेशियों की एंट्री कैसे होती है, उस पर मुन्नी बैगा ने बताया कि लोग अपने से ही लाकर अंदर मवेशियों को बंद कर जाते हैं. बहरहाल, उस गौशाला में गिनती के मवेशी थे, लेकिन उनकी हालत जिस तरह की नजर आ रही थी. ऐसा लग रहा था मानों उनका सही से खानपान नहीं हो रहा है. जिस मकसद के साथ सरकार गौशालाओं का निर्माण करा रही है, वो व्यवस्थाएं उन गोवंशों को नहीं मिल पा रही है.

पहले थे ज्यादा मवेशी, अचानक हो गए कम
पड़मनिया कला के गौशाला की जब शुरुआत हुई थी तो अचानक वहां मवेशियों की संख्या काफी ज्यादा थी जिसे सड़क किनारे आते जाते लोग साफ तौर पर देख भी सकते थे, लेकिन पिछले कुछ महीने से अचानक ही उस गौशाला में मवेशियों की संख्या एकदम से कम हो गई है यह भी एक सवाल है कि आखिर मवेशी अचानक कम क्यों हुए इसके बारे में जब हमने वहां के केयरटेकर उन्हें खाना देने वाली मुन्नी बैगा से पूछा तो उनका कहना था कि बहुत सारे मवेशी मर गए हैं.

जानिए जिले में गौशाला की स्थिति
शहडोल जिले में आखिर इस तरह की कितनी गौशालाएं, बन रही हैं, और उनकी क्या स्थिति है इसे जानने के लिए हम पहुंचे मनरेगा के लेखाधिकारी और गौशाला के प्रभारी अधिकारी अशोक शुक्ला के पास जिन्होंने बताया की शहडोल जिले में वर्तमान में 37 गौशाला बनाने के लिए स्वीकृत हुए हैं, जिसमें से 9 गौशालाएं पूर्ण हो चुकी हैं, और 28 जो हैं वो प्रगति पर हैं, इसमें से जो 9 गौशाला हमारी पूर्ण हुई हैं, 8 का संचालन कार्य भी शुरू हो गया है जिसमें 3 में स्थानीय एनजीओ और 6 जो हैं वो स्वसहायता समूह के माध्यम से जिले में संचालित हो रही हैं. इसके संचालन की जिम्मेदारी पशुपालन विभाग की है, जिसके तहत सभी स्वसहायता समूहों को अधिकृत किया गया है, वहां जाने के बाद पशुओं को पहले पंजीकृत किया जाता है. उसके बाद उनकी जिओ टैगिंग होती है और फिर उसके बाद वहां पर उनकी देखरेख की जाती है.

क्या गौशाला का ग्रामीण क्षेत्रों में दिखा कोई फायदा ?
गौशाला निर्माण हो जाने के बाद क्या ग्रामीण क्षेत्रों में आवारा मवेशियों से किसानों को कोई राहत मिली इसे जानने के लिए हमने पड़मनिया कला के ही आसपास के ग्रामीणों से बात की और उनसे जाना कि जो पहले आवारा मवेशियों की समस्याएं उनके खेतों पर होती थी क्या वह समस्या खत्म हो गई कुछ कम हुई है इस पर ग्रामीण भैया लाल सिंह जो खुद एक किसान भी हैं वह बताते हैं की गौशाला के बाजू से ही एक जंगल है जहां करीब 40 आवारा मवेशी निवास करते हैं और आसपास के गांवों में फसलों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं लेकिन गौशाला तो शुरू हो चुका है, और उस समस्या से निजात अब तक नहीं मिली है गौशाला खोलने का कोई फायदा नहीं मिला है समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं.

इन कारणों से घरों की छत से गायब हुए कौवे, श्राद्ध खिलाने जंगल पहुंच रहे लोग

आज भी उतने ही मवेशी हो रहे घायल
शहरी क्षेत्रों पर सड़कों पर हाईवेज में जो आवारा मवेशी बैठे रहते हैं और दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं गौशालाओं के शुरू हो जाने के बाद क्या गौवंश के एक्सीडेंटल केस आने कम हुए हैं इसे जानने के लिए हमने बात की गौ सेवा संस्थान के एक गौ सेवक से जिनकी टीम दिन-रात पिछले कई सालों से ऐसे घायल आवारा लावारिस बीमार मवेशियों का रेस्क्यू करते हैं जिस पर गौ सेवक गौरव मिश्रा बताते हैं कि सरकार की गौशाला तो धीरे-धीरे अब शुरू हो रही हैं लेकिन जितना रेस्क्यू वह पहले आवारा मवेशियों का करते थे उससे ज्यादा अभी भी आ रहे हैं उस पर कोई कमी नहीं हुई है गौशाला खोलने का कोई विशेष फायदा नहीं मिला है।

मवेशियों की व्यवस्था पर बड़ा सवाल
गौरतलब है कि गोवंश को लेकर राजनीति तो हर पार्टी कर रही है, लेकिन क्या उस गोवंश को सही तरीके से सुरक्षा मिल पा रही है क्या आवारा मवेशियों से किसानों को राहत मिल पा रही है सड़कों पर बैठने वाले आवारा मवेशियों की समस्या क्या सुलझ पा रही है और जो सरकार की गौशालाये शुरू भी हो गई हैं, उन गौशालाओं में क्या उन मवेशियों को सही व्यवस्थाएं मिल पा रही हैं यह भी एक बड़ा सवाल है.

Last Updated : Oct 2, 2021, 11:49 AM IST
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