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एक्सीडेंट में खोया एक पैर, अब निशक्त बच्चों की जिंदगी में ला रहीं खुशियां, मिसाल बनीं मधु श्रीरॉय

शहडोल की रहने वाली मधु श्रीरॉय दिव्यांग हैं. इनकी जिंदगी में कई कठिनाइयां आईं, लेकिन उसे उन्होंने अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. आज वह निशक्त बच्चों के जीवन में खुशियां भर रही हैं. वह विकलांग बच्चों की हर संभव मदद करती हैं. देखिए किस तरह मधु श्रीरॉय कई लोगों की जिंदगी बदल रही हैं.

Madhu Shri Roy, a resident of Shahdol, provides all possible help to children with disabilities.
शहडोल की रहने वाली मधु श्री रॉय विकलांग बच्चों की हर संभव मदद करतीं हैं
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Published : Mar 1, 2020, 3:15 PM IST

शहडोल। अगर दृढ़ इच्छा शक्ति हो, संकल्प मजबूत हो तो कुछ भी संभव है. इसी को सार्थक कर दिखाया है शहडोल जिले की मधु श्री रॉय ने. इनकी जिंदगी में कई कष्टकारी मोड़ आये, लेकिन उसे उन्होंने अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. बल्कि हर बार कुछ नया और समाज को बेहतर देने की कोशिश की. इसीलिये आज समाज में उनकी अपनी अलग ही पहचान है, एक अलग सम्मान है. आज मधु श्रीरॉय दिव्यांग निशक्त बच्चों के जीवन में खुशियां भर रही हैं.

शहडोल की रहने वाली मधु श्री रॉय विकलांग बच्चों की हर संभव मदद करतीं हैं

एक एक्सीडेंट के बाद बदल गई जिंदगी

मधु श्री रॉय शहडोल जिला मुख्यालय के ही मध्यप्रदेश ग्रामीण बैंक में ऑफिसर हैं, बैंक में नौकरी के साथ ही मधु श्री रॉय सामाजिक काम में ही उतनी ही सहभागिता निभाती हैं. मधु श्री रॉय बताती हैं कि 1993 में बैंक में ही नौकरी करते हुए उनका एक्सीडेंट हुआ था, तब उनकी उम्र 27 साल थी. छतवई में उनका ट्रांसफर हुआ था और वो वहां से लौट रही थीं, तभी उनका एक्सीडेंट हुआ, जहां स्पॉट पर ही उनके पैर कट गए थे.

वो बताती हैं एक्सीडेंट के बाद लगभग एक साल वो बिस्तर पर ही रहीं, उसके बाद जब उठीं तो उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई थी. लोग उन्हें काम देने से डरने लगे. लोगों को लगने लगा कि वह अपनी इस परिस्थिति के कारण पहले जैसे काम नहीं कर पाएंगी. इस तरह से उनकी जिंदगी बदलने लगी.

Madhu's Inspiration Foundation Campus helps people with disabilities
मधु का प्रेरणा फाउंडेशन कैंपस लगा करता है विकलांगों की मदद

पति ने दिया हौसला, तो निकल पड़ीं नए रास्ते की तलाश में

मधु श्री रॉय बतातीं हैं कि इस कठिन समय में उनके पति ने उनका बहुत साथ दिया, जिसके बाद उन्होंने फैसला किया कि पैर लगवाना है उसके लिए वो जयपुर गईं. जयपुर में जब गईं तो उन्होंने देखा कि एक तीन-साढ़े तीन साल की बच्ची थी जिसके दोनों पैर कटे हुए थे. हालांकि उसके पैर घुटने के नीचे ही कटे थे, लेकिन वो बच्ची बिंदास खेल रही थी. उसे देखकर ही सब कुछ बदल गया और फिर कुछ नया करने की उम्मीद जागी.

वो कहतीं हैं कि जब उनके साथ यह सब गुजरा तो उन्हें अहसास हो गया कि समाज में विकलांगों के साथ लोगों का बर्ताव बुरा नहीं होता है, लेकिन उनके प्रति उनका बर्ताव जो है वह बेचारगी का होता है. वो अपने साथ उन्हें मिला नहीं पाते हैं, तब से उन्होंने अपना मकसद बना लिया कि विकलांगों के लिए लोग काम तो बहुत कर रहे हैं, लेकिन मैं उन्हें समाज के साथ जोड़ने का काम करूंगी. चाहे वो शिक्षा के माध्यम से हो, शादी ब्याह कराकर हो या फिर उन्हें नौकरी दिलाकर.

Madhu in a religious program with children
बच्चों के साथ एक धार्मिक कार्यक्रम में मधु

सीडब्ल्यूएसएन छात्रावास के जरिये कर रहीं मदद

जिले में एक सीडब्ल्यूएसएन छात्रावास है जो प्रेरणा फाउंडेशन और जिला शिक्षा केन्द्र के सहयोग से चल रहा है. यह 50 सीटर है, जिसे धरता मधु श्री रॉय ही चलाती हैं. दिव्यांग बच्चों को यहां कक्षा 8वीं तक रखा जाता है और विशेष व्यवस्थाएं दी जाती हैं. इन दिव्यांग बच्चों के प्रति मधु श्रीरॉय का लगाव और प्रेम देखते ही बनता है. मधु श्री रॉय इस छात्रावास के हर दिव्यांग बच्चे से बहुत प्रेम करती हैं और ये बच्चे भी उनसे उतना ही लगाव रखते हैं.

मधु श्री रॉय बताती हैं की 2003 में तीन चार लोगों ने दिव्यांगों के लिए कुछ करने के लिए एक संस्था बनाई, जिसके बाद दिव्यांगों के लिए कई कैंप किये. प्रेरणा स्कूल के नाम से मानसिक विक्षिप्त बच्चों के लिए एक स्कूल भी शुरू किया, लेकिन इसे पैसे के अभाव में बन्द करना पड़ा.

आज भी मधु श्री रॉय इन दिव्यांग बच्चों को समाज से जोड़ने के लिए समय समय पर अलग अलग एक्टिविटी करती रहती हैं, उन्हें रोजगार दिलाने के लिए कुछ करना हो, उनके इलाज के लिए कैम्प हो या फिर कुछ और एक्टिविटी हो वो समय समय पर दिव्यांग बच्चों के लिये कराती रहती हैं.

Madhu gives gifts to poor families
गरीब परिवारों को उपहार देतीं मधु

मधु श्री रॉय के जिंदगी में एक्सीडेंट के बाद जिस तरह का मोड़ आया, उसका सामना तो उन्होंने बहादुरी से किया ही. साथ ही अपने इस कष्ट को समझने के बाद दूसरे दिव्यांगों, निशक्तों की मदद करने का बीड़ा उठाया और समाज के लिए एक मिसाल बनी.

शहडोल। अगर दृढ़ इच्छा शक्ति हो, संकल्प मजबूत हो तो कुछ भी संभव है. इसी को सार्थक कर दिखाया है शहडोल जिले की मधु श्री रॉय ने. इनकी जिंदगी में कई कष्टकारी मोड़ आये, लेकिन उसे उन्होंने अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. बल्कि हर बार कुछ नया और समाज को बेहतर देने की कोशिश की. इसीलिये आज समाज में उनकी अपनी अलग ही पहचान है, एक अलग सम्मान है. आज मधु श्रीरॉय दिव्यांग निशक्त बच्चों के जीवन में खुशियां भर रही हैं.

शहडोल की रहने वाली मधु श्री रॉय विकलांग बच्चों की हर संभव मदद करतीं हैं

एक एक्सीडेंट के बाद बदल गई जिंदगी

मधु श्री रॉय शहडोल जिला मुख्यालय के ही मध्यप्रदेश ग्रामीण बैंक में ऑफिसर हैं, बैंक में नौकरी के साथ ही मधु श्री रॉय सामाजिक काम में ही उतनी ही सहभागिता निभाती हैं. मधु श्री रॉय बताती हैं कि 1993 में बैंक में ही नौकरी करते हुए उनका एक्सीडेंट हुआ था, तब उनकी उम्र 27 साल थी. छतवई में उनका ट्रांसफर हुआ था और वो वहां से लौट रही थीं, तभी उनका एक्सीडेंट हुआ, जहां स्पॉट पर ही उनके पैर कट गए थे.

वो बताती हैं एक्सीडेंट के बाद लगभग एक साल वो बिस्तर पर ही रहीं, उसके बाद जब उठीं तो उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई थी. लोग उन्हें काम देने से डरने लगे. लोगों को लगने लगा कि वह अपनी इस परिस्थिति के कारण पहले जैसे काम नहीं कर पाएंगी. इस तरह से उनकी जिंदगी बदलने लगी.

Madhu's Inspiration Foundation Campus helps people with disabilities
मधु का प्रेरणा फाउंडेशन कैंपस लगा करता है विकलांगों की मदद

पति ने दिया हौसला, तो निकल पड़ीं नए रास्ते की तलाश में

मधु श्री रॉय बतातीं हैं कि इस कठिन समय में उनके पति ने उनका बहुत साथ दिया, जिसके बाद उन्होंने फैसला किया कि पैर लगवाना है उसके लिए वो जयपुर गईं. जयपुर में जब गईं तो उन्होंने देखा कि एक तीन-साढ़े तीन साल की बच्ची थी जिसके दोनों पैर कटे हुए थे. हालांकि उसके पैर घुटने के नीचे ही कटे थे, लेकिन वो बच्ची बिंदास खेल रही थी. उसे देखकर ही सब कुछ बदल गया और फिर कुछ नया करने की उम्मीद जागी.

वो कहतीं हैं कि जब उनके साथ यह सब गुजरा तो उन्हें अहसास हो गया कि समाज में विकलांगों के साथ लोगों का बर्ताव बुरा नहीं होता है, लेकिन उनके प्रति उनका बर्ताव जो है वह बेचारगी का होता है. वो अपने साथ उन्हें मिला नहीं पाते हैं, तब से उन्होंने अपना मकसद बना लिया कि विकलांगों के लिए लोग काम तो बहुत कर रहे हैं, लेकिन मैं उन्हें समाज के साथ जोड़ने का काम करूंगी. चाहे वो शिक्षा के माध्यम से हो, शादी ब्याह कराकर हो या फिर उन्हें नौकरी दिलाकर.

Madhu in a religious program with children
बच्चों के साथ एक धार्मिक कार्यक्रम में मधु

सीडब्ल्यूएसएन छात्रावास के जरिये कर रहीं मदद

जिले में एक सीडब्ल्यूएसएन छात्रावास है जो प्रेरणा फाउंडेशन और जिला शिक्षा केन्द्र के सहयोग से चल रहा है. यह 50 सीटर है, जिसे धरता मधु श्री रॉय ही चलाती हैं. दिव्यांग बच्चों को यहां कक्षा 8वीं तक रखा जाता है और विशेष व्यवस्थाएं दी जाती हैं. इन दिव्यांग बच्चों के प्रति मधु श्रीरॉय का लगाव और प्रेम देखते ही बनता है. मधु श्री रॉय इस छात्रावास के हर दिव्यांग बच्चे से बहुत प्रेम करती हैं और ये बच्चे भी उनसे उतना ही लगाव रखते हैं.

मधु श्री रॉय बताती हैं की 2003 में तीन चार लोगों ने दिव्यांगों के लिए कुछ करने के लिए एक संस्था बनाई, जिसके बाद दिव्यांगों के लिए कई कैंप किये. प्रेरणा स्कूल के नाम से मानसिक विक्षिप्त बच्चों के लिए एक स्कूल भी शुरू किया, लेकिन इसे पैसे के अभाव में बन्द करना पड़ा.

आज भी मधु श्री रॉय इन दिव्यांग बच्चों को समाज से जोड़ने के लिए समय समय पर अलग अलग एक्टिविटी करती रहती हैं, उन्हें रोजगार दिलाने के लिए कुछ करना हो, उनके इलाज के लिए कैम्प हो या फिर कुछ और एक्टिविटी हो वो समय समय पर दिव्यांग बच्चों के लिये कराती रहती हैं.

Madhu gives gifts to poor families
गरीब परिवारों को उपहार देतीं मधु

मधु श्री रॉय के जिंदगी में एक्सीडेंट के बाद जिस तरह का मोड़ आया, उसका सामना तो उन्होंने बहादुरी से किया ही. साथ ही अपने इस कष्ट को समझने के बाद दूसरे दिव्यांगों, निशक्तों की मदद करने का बीड़ा उठाया और समाज के लिए एक मिसाल बनी.

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