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आपकी फसल हो सकती है खराब, ईटीवी भारत की यह रिपोर्ट में जानें बचाव के उपाय - ईटीवी भारत

मौसम में अनियमितता की वजह से किसानों की चिंता बढ़ गई है. फसलों पर रोग का संकट मंडरा रहा है. ऐसे में इससे कैसे बच सकते हैं, जानने के लिए ये रिपोर्ट पढ़ें.

फसलों में रोग होने का खतरा
फसलों में रोग होने का खतरा
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Published : Sep 11, 2021, 11:09 PM IST

शहडोल। खरीफ सीजन में शहडोल जिले में सबसे ज्यादा रकबे में खेती की जाती है. जिले में धान की फसल प्रमुखता से लगाई जाती है. इसके अलावा दलहन और तिलहन की भी कई तरह की फसलें यहां लगाई जाती हैं. लेकिन मौसम का मिजाज इस बार किसानों के हित में नहीं है. लगातार बदल रहे मौसम की वजह से फसलों को खासा नुकसान पहुंच रहा है. ऐसे में किसानों की फसलें नष्ट होने का खतरा बना हुआ है. कई तरह के रोग भी फसलों में आ सकते हैं. ऐसे में रोग के लक्षण पहचानना और उनसे किसी तरह बचा जा सकते हैं यह जानना काफी जरूरी है. ईटीवी भारत ने कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह से खास बातचीत की, रिपोर्ट पढ़ें.

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह से खास बातचीत

फसलों की हर एक्टिविटी पर बारीकी से रखें नजर

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह कहते हैं कि किसान अपने धान की फसल में पहले तो यूरिया की टॉप ड्रेसिंग करें. फसल के हिसाब से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में जितनी बार यूरिया की टॉप ड्रेसिंग करेंगे उतना ही फायदा होगा. धान की हाल ही में जिले में रोपाई हुई है, जिस वजह से कीड़े-मकोड़ों का प्रकोप फिलहाल नहीं दिख रहा है. लेकिन दलहनी फसलों को थोड़ा नुकसान हो सकता है. उड़द, मूंग और अरहर की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप ज्यादा है. पीला वाला जो रोग आता है उड़द-मूंग दाल में इससे बचाव के लिए पर्याप्त मात्रा में दवा का छिड़काव जरूरी है.

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि सोयाबीन और दलहनी फसलों में गर्डल बीटल या तना छेदक, तने में छेद करता है, जिससे वह सूखने लगते हैं. अगर ऐसी स्थिति दिखती है तो इसके लिए एक दवाई आती है, जिसमें थायोमेथाएक्जाम और लेमडा सायलोथिन रहता है. इसका 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर मतलब करीब ढाई एकड़ में छिड़काव करें. इससे फसल को बचाया जा सकता है.

बारिश बनी बड़ी वजह
बारिश बनी बड़ी वजह

धान की फसल में खरपतवार की समस्या का ऐसे करें निदान

जिले में कई किसान धान की रोपाई कर चुके हैं. अब उन्हें अपनी फसल के खराब होने का डर सता रहा है. इसके लिए भी कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह ने उपाय बताए हैं. उनका कहना है कि धान की रोपाई के बाद सबसे ज्यादा खरपतवार की समस्या आती है. खरपतवार से बचने के लिए अगर रोपाई हाल ही में एक दो दिन में हुई है, तो प्री-इमरजेंस डालें. अगर रोपाई को ज्यादा दिन हो गए हैं, तो किसानों को ध्यान रखना होगा कि अगर उन्हें मैन्युअल बीडिंग नहीं करना है तो 21 दिन के अंदर दवाओं का छिड़काव करें. बाजार में बचाव के लिए कई तरह की दवाईयां उपलब्ध हैं. कृषि वैज्ञानिक ने यह भी कहा कि हैंड बीडिंग से किसानों को नुकसान भी हो सकता है.

दो नदियों के बीच टापू पर फंसे तीन लोग, एक को निकाला, दो ने Rescue Team के साथ जाने के किया मना

मक्के की फसल में इन बातों का रखें ख्याल

ऐसे मौसम में मक्के की फसल को भी नुकसान हो सकता है. मक्के में फॉल ऑफ आर्मी वर्म करके आता है. ये मक्के की फसल के डंठल में अंदर घुसकर छेद करता है. इससे बचने के लिए लोग चावल में थोड़ा गुड़ मिलाकर इंसेक्टिसाइड डालकर उसकी पोंगड़ी में डालें. फ्लूबिंडा माइड का छिड़काव भी फसलों में किया जा सकता है. शहडोल में फिलहाल मक्के की फसलों में कीड़े पड़ने का ज्यादा प्रकोप नहीं है. अगर कहीं दिखाई देता है तो शुरुआत में ही इंसेक्टिसाइड डालने से फसल को कुछ नहीं होगा.

सोयाबीन में गर्डल बीटल की आ सकती है समस्या

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह कहते हैं कि सोयाबीन की बुवाई अगर किसानों ने समय पर कर दी है तो अभी तक सोयाबीन के लिए बहुत अच्छी बारिश हुई है. सोयाबीन में कहीं से भी अभी तक नुकसान की शिकायत नहीं मिली है. गर्डल बीटल और पत्ती कटुआ जिसको कहते हैं, उसकी समस्या देखने को जरूर मिली है.

शहडोल। खरीफ सीजन में शहडोल जिले में सबसे ज्यादा रकबे में खेती की जाती है. जिले में धान की फसल प्रमुखता से लगाई जाती है. इसके अलावा दलहन और तिलहन की भी कई तरह की फसलें यहां लगाई जाती हैं. लेकिन मौसम का मिजाज इस बार किसानों के हित में नहीं है. लगातार बदल रहे मौसम की वजह से फसलों को खासा नुकसान पहुंच रहा है. ऐसे में किसानों की फसलें नष्ट होने का खतरा बना हुआ है. कई तरह के रोग भी फसलों में आ सकते हैं. ऐसे में रोग के लक्षण पहचानना और उनसे किसी तरह बचा जा सकते हैं यह जानना काफी जरूरी है. ईटीवी भारत ने कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह से खास बातचीत की, रिपोर्ट पढ़ें.

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह से खास बातचीत

फसलों की हर एक्टिविटी पर बारीकी से रखें नजर

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह कहते हैं कि किसान अपने धान की फसल में पहले तो यूरिया की टॉप ड्रेसिंग करें. फसल के हिसाब से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में जितनी बार यूरिया की टॉप ड्रेसिंग करेंगे उतना ही फायदा होगा. धान की हाल ही में जिले में रोपाई हुई है, जिस वजह से कीड़े-मकोड़ों का प्रकोप फिलहाल नहीं दिख रहा है. लेकिन दलहनी फसलों को थोड़ा नुकसान हो सकता है. उड़द, मूंग और अरहर की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप ज्यादा है. पीला वाला जो रोग आता है उड़द-मूंग दाल में इससे बचाव के लिए पर्याप्त मात्रा में दवा का छिड़काव जरूरी है.

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह बताते हैं कि सोयाबीन और दलहनी फसलों में गर्डल बीटल या तना छेदक, तने में छेद करता है, जिससे वह सूखने लगते हैं. अगर ऐसी स्थिति दिखती है तो इसके लिए एक दवाई आती है, जिसमें थायोमेथाएक्जाम और लेमडा सायलोथिन रहता है. इसका 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर मतलब करीब ढाई एकड़ में छिड़काव करें. इससे फसल को बचाया जा सकता है.

बारिश बनी बड़ी वजह
बारिश बनी बड़ी वजह

धान की फसल में खरपतवार की समस्या का ऐसे करें निदान

जिले में कई किसान धान की रोपाई कर चुके हैं. अब उन्हें अपनी फसल के खराब होने का डर सता रहा है. इसके लिए भी कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह ने उपाय बताए हैं. उनका कहना है कि धान की रोपाई के बाद सबसे ज्यादा खरपतवार की समस्या आती है. खरपतवार से बचने के लिए अगर रोपाई हाल ही में एक दो दिन में हुई है, तो प्री-इमरजेंस डालें. अगर रोपाई को ज्यादा दिन हो गए हैं, तो किसानों को ध्यान रखना होगा कि अगर उन्हें मैन्युअल बीडिंग नहीं करना है तो 21 दिन के अंदर दवाओं का छिड़काव करें. बाजार में बचाव के लिए कई तरह की दवाईयां उपलब्ध हैं. कृषि वैज्ञानिक ने यह भी कहा कि हैंड बीडिंग से किसानों को नुकसान भी हो सकता है.

दो नदियों के बीच टापू पर फंसे तीन लोग, एक को निकाला, दो ने Rescue Team के साथ जाने के किया मना

मक्के की फसल में इन बातों का रखें ख्याल

ऐसे मौसम में मक्के की फसल को भी नुकसान हो सकता है. मक्के में फॉल ऑफ आर्मी वर्म करके आता है. ये मक्के की फसल के डंठल में अंदर घुसकर छेद करता है. इससे बचने के लिए लोग चावल में थोड़ा गुड़ मिलाकर इंसेक्टिसाइड डालकर उसकी पोंगड़ी में डालें. फ्लूबिंडा माइड का छिड़काव भी फसलों में किया जा सकता है. शहडोल में फिलहाल मक्के की फसलों में कीड़े पड़ने का ज्यादा प्रकोप नहीं है. अगर कहीं दिखाई देता है तो शुरुआत में ही इंसेक्टिसाइड डालने से फसल को कुछ नहीं होगा.

सोयाबीन में गर्डल बीटल की आ सकती है समस्या

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद्र सिंह कहते हैं कि सोयाबीन की बुवाई अगर किसानों ने समय पर कर दी है तो अभी तक सोयाबीन के लिए बहुत अच्छी बारिश हुई है. सोयाबीन में कहीं से भी अभी तक नुकसान की शिकायत नहीं मिली है. गर्डल बीटल और पत्ती कटुआ जिसको कहते हैं, उसकी समस्या देखने को जरूर मिली है.

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