शहडोल। मध्यप्रदेश में कई ऐसी अमूल्य धरोहरें हैं जो प्रदेश ही नहीं बल्कि देश का नाम भी रोशन करती हैं. विंध्य क्षेत्र के शहडोल में भी एक ऐसा ही ऐतिहासिक मंदिर है, जो अपने अंदर कई सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, कलात्मक खूबसूरती बटोरे हुए है. कलचुरी कालीन इस मंदिर को लोग विराट मंदिर के नाम से जानते हैं. इसकी अद्भुत कलाकृतियां देख आप भी हतप्रभ रह जाएंगे.
अद्भुत है विराट शिव मंदिर
शहडोल जिले के इस विराट शिव मंदिर को लेकर पुरातत्वविद रामनाथ सिंह परमार कहते हैं कि शहडोल संभाग का यह अति विशिष्ट शिव मंदिर है. यह विराटेश्वर शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर का निर्माण कलचुरी नरेश युवराज देव प्रथम ने करवाया था. इस मंदिर का निर्माण 10 वीं 11 वीं सदी ईस्वी में कराया गया था. जहां इतने बड़े मंदिर के गर्भगृह में छोटे शिवलिंग हैं. जो अपने आप में अनूठा है.
गर्भगृह में छोटे शिवलिंग स्थापित
ज्योतिषाचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री बताते हैं कि इस शिवलिंग के दर्शन कर लेने मात्र से ही बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का लाभ मिल जाता है. इसलिए छोटी शिवलिंग है और शिवलिंग छोटी होने से 12 ज्योतिर्लिंगों उसमें समाहित ह. इसलिए इसका विशेष महत्व है.
शिव मंदिर की विशेषताएं
पुरातत्वविद रामनाथ सिंह परमार विराट मंदिर की विशेषता बतातें है कि ये पूर्वाभिमुख मंदिर शिव को समर्पित है. इसके गर्भ गृह में शिवलिंग जलहरी प्रतिस्थापित है. इसके गर्भ गृह में जो द्वार शाखाएं हैं वह देवी-देवताओं युक्त हैं. जिसमें मध्य में नटेश शिव बाईं ओर गणेश और दाईं और सरस्वती का अंकन है. जो अति विशिष्ट रूप में है. जिसे देखने आने वाले देखते ही भाव विभोर हो जाते हैं. इसके अलावा भी अंदर अन्य प्रतिमाएं भी रखी हुई है देवी देवताओं की जो अद्भुत हैं.
- मंदिर के बाह्य भाग में मुख्यतः जंघा भाग में जो प्रतिमाएं हैं वह तीन क्रम पर हैं.जिसमें शिव के विभिन्न स्वरूपों जो उनके विभिन्न अवतार हैं और उनका परिवार है.
- दिग्पालों की प्रतिमाएं हैं और विष्णु के भी विभिन्न स्वरुप है. इस मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिदेव का भी अंकन है. इसमें देवी गौरी व नवदुर्गाओं के भी कुछ स्वरूपों का अंकन किया गया है. यह विशिष्ट रूप से विद्यमान हैं.
- अलग-अलग तरह के अप्सराओं का भी मंदिर में शिल्पन देखने को मिलता है. जो विभिन्न प्रकार की अप्सराएं हैं. वो भी शिल्पित कर मंदिर में लगाई गईं हैं.
- मनुष्य जीवन में प्राचीन काल से ही मनुष्य को चार आश्रम में ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास और उसी क्रम में चार पुरुषार्थ अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष का कॉन्बिनेशन करके ही इन प्रतिमाओं को इस मंदिर में लगाया गया है.
खजुराहो की यादें ताजा हो जाएंगी
पुरातत्वविद रामनाथ सिंह परमार बताते हैं कि मंदिर की बनावट ऐसी है. कि अनायास ही खजुराहो की यादें ताजा हो जाएंगी. खजुराहो में चंदेल शासकों ने खजुराहो के मंदिर बनवाए थे. महाकौशल या विंध्य क्षेत्र में कलचुरी नरेशों ने ये मंदिर बनवाए थे. 9वीं सदी से लेकर 12वीं सदी के बीच यहां पर शिल्पन का कार्य काफी मात्रा में हुआ था. जिसमें अति विशिष्ट मंदिर बनाए गए और प्रतिमाएं गढ़ी गईं. यह मंदिर भी 10 वीं 11 वीं सदी ईस्वी के हैं. ये भी खजुराहो के समकालीन ही हैं. जैसी खजुराहो के मंदिरों में प्रतिमा स्थापित कर लगाई गई हैं. ठीक उसी तरह से यहां भी प्रतिमाओं पर शिल्पन कर अंकन किया गया है.
विराट मंदिर का इतिहास
- विराट मंदिर का इतिहास 10वीं,11वीं शताब्दी का है.
- कलचुरी राजा युवराज देव प्रथम ने मंदिर का निर्माण कराया था.
- विराट मंदिर पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित है.
- मंदिर की लंबाई 46 फीट, चौड़ाई 34 फीट और ऊंचाई 72 फीट है.
- मंदिर का तल विन्यास महामंडप, अंतराल वर्गाकार गर्भगृह में विभाजित है.
- ये मंदिर सप्त रची शैली, वास्तु शिल्पन में शिल्पित किया गया है.
- विराट मंदिर में स्थित ये शिवलिंग अति विशिष्ट है. जो आकर्षण का केंद्र हैं.
- शिवलिंग पर पूरे ब्रह्मांड का एक प्रतीक स्वरूप में अंकित है.