शहडोल। कोरना ने जहां एक तरफ दुनिया भर में तबाही मचाई, वहीं इस संकट ने लोगों को जीविका जुटाने के नए आयामों के बारे में भी सोचने को मजबूर किया. संक्रमण के दौर में जो मजदूर घर से बाहर काम करता था, वह अब स्थानीय स्तर पर काम तलाश रहा है. इसके अलावा वह स्वरोजगार की ओर ज्यादा ध्यान दे रहा है. आदिवासी बाहुल्य शहडोल में भी आदिवासी वर्ग के अधिकतर लोगों में ऐसे कामों को लेकर रुझान बढ़ रहा है. इन्हीं में से एक है बकरी पालन, जिसके जरिए आदिवासी पूरी मेहनत से कर आत्मनिर्भर भारत के लिए अपना योगदान दे रहा है.
बकरी पालन की ओर बढ़ा रुझान
आदिवासी वर्ग के अधिकतर लोग इन दिनों बकरी पालन की ओर अपना ध्यान लगा रहे हैं. ज्यादा से ज्यादा लोग बकरी पालन कर रहे हैं. वजह है इससे उनका साल भर का गुजारा हो जाता है और कोई दूसरा काम भी नहीं करना पड़ता. एक तरह से यह लोग भी आत्म निर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं.
क्यों बढ़ रहा रुझान ?
बकरी पालन कुछ अभी-अभी शुरू किया है तो कई लोग ये काम सालों से करते आ रहे हैं. बकरी पालन कर ये लोग साल भर का खर्च निकाल लेते हैं और अगर अच्छे नस्ल की बकरियां मिल गई तो दूध बेच कर अतिरिक्त कमाई भी हो जाती है. वहीं बकरी पालन कम लागत में शुरू होने वाला रोजगार का साधन है इसलिए इसमें इस वर्ग का रुझान बढ़ रहा है.
सरकारी योजना का नहीं मिल रहा फायदा
जिले में ज्यादातर बकरी पालक खुद की लागत से बकरी पालन शुरू किया और धीरे-धीरे करके बकरियों की संख्या बढ़ाई. पालको की माने तो उन्हें सरकार की ओर से किसी भी योजना का कोई फायदा नहीं मिला न ही उन्हें इस बारे में जानकारी है. बकरी पालको का कहना है कि अगर सरकार कुछ ऐसी योजना बना दे जो सरल तरीके से आदिवासी वर्ग मिल जाए तो यह आदिवासी वर्ग के लिए आय का एक अच्छा साधन हो सकता है.
क्षेत्र में काफी कीमती हैं बकरियां
बकरी पालक माला बैगा बताते हैं कि बकरियों का क्रेज ज्यादा हो गया है, वहीं पालक अच्छे से ध्यान ना दो तो बकरी की चोरी भी हो जाती है उनकी ही कई बकरी चोरी हो चुकी है. क्यों की बकरी की कीमत किसी रत्न के तरह हो गई है.
सरकारी योजनाओं के फायदे को लेकर बकरी पालक भैया लाल सिंह ने बताया की लोग फॉर्म डालते रहते हैं, लेकिन योजना का फायदा नहीं मिलता. योजनाओं के फायदे के लिए सरल और सहज तरीका बनाना चाहिए, जिससे आदिवासी वर्ग का व्यक्ति उसका फायदा उठा सके.
आत्मनिर्भर भारत में अहम रोल
भैया लाल सिंह कहते हैं कि आत्मनिर्भर भारत बनाने में बकरी पालन एक अहम रोल अदा कर सकता है. बस जरूरत है सरकार की ओर से थोड़ी मदद मिलने की, वो भी सरल और सहज तरीके से. अगर ऐसा हो जाए तो बकरी पालन रोजगार का बड़ा माध्यम बन सकता है.
बकरी पालन की योजनाओं के बारे में पशुपालन विभाग के उप संचालक डॉ बीबीएस चौहान ने बताया कि विभाग बकरी पालन के लिए योजनाएं चलाता है, जिसका फायदा बकरी पालक उठा सकते हैं.
10 प्लस 1 मतलब 10 बकरी और एक बकरा की योजना, जिसमें सामान्य वर्ग को 40% और एसटी-एससी वर्ग को 60 पतिशत अनुदान मिलता है. यानी इसमें आनी वाली करीब 77 हजार की लागत में विभाग 40 और 60 प्रतिशत का अनुदान देता है, शेष बैंक से लोन के जरिए मिलता है.
कम लागत का रोजगार
डॉक्टर बीबीएस चौहान ने बताया कि बकरी पालन कम लागत का रोजगार है. बकरियां वैसे भी गरीबों की गाय कहलाती हैं. अच्छे नस्ल की बकरियां पालने से बाजार में दूध और मांस आदि की मांग भी पूरी की जाती है. इसका बहुत ही शॉर्ट पीरियड में फायदा होता है.
ऐसे योजना का उठा सकते हैं फायदा
पशुपालन विभाग के उपसंचालक डॉक्टर बीबीएस चौहान ने बताया कि अनुदान लिए कमाम पशु चिकित्सालय और ब्लॉक लेवल पर क्षेत्रीय अधिकारी से साधारण फॉर्म भरकर मांगे गए कागजात के साथ कार्यालय में जमा करना होता है, उसके बाद विभाग की स्वीकृति मिलती है, जिसके बाद संबंधित के बैंक अकाउंट में पैसे भेज दिए जाते हैं.
वास्तव में अगर शहडोल जैसे आदिवासी बाहुल्य इलाके में सरकार की योजनाओं का सही से फायदा मिल पाए तो यह आत्मनिर्भर भारत बनाने में एक अच्छी भूमिका निभा सकता है. बस जरूरत है कि इस दिशा में सही और सरल तरीके से सरकारी मदद और सलाह लोगों को मुहैया कराी जाए.