शहडोल। चुनाव क्या बीता, किसानों के जख्मों पर मरहम लगाने का दावा करने वाले हुक्मरान ऐसे गायब हो गए, जैसे गधे के सिर से सींग. अब अन्नदाता खोज रहा है सियासतदानों को, पूछ रहा है कहां तुम चले गए, नेताओं के कोरे कागज पर वोट की मुहर लगाकर किसान पछता रहे हैं. आसमानी आफत ने पहले किसानों को बर्बादी का जख्म दिया, फिर सियासतदानों ने उस पर अनदेखी का नमक छिड़का, दर्द से तड़पता किसान अब सरकारी मरहम की राह देख रहा है, लेकिन न पटवारी आता है न कोई सरकारी नुमाइंदा, खरीफ की फसल पहले ही बर्बाद हो चुकी है और रबी की बोवनी साहूकारों के रहमों करम पर निर्भर है.
ये फसलें हो गईं बर्बाद
शहडोल में मानसून ने देरी से दस्तक दी थी, पर जब आई तो आफत के साथ. जिसने खेत-खलिहान को तालाब बना दिया. सोयाबीन, उड़द और तिल जैसी फसलों का एक भी दाना किसानों की दहलीज के अंदर दाखिल न हो सका. ईटीवी भारत ने एक दर्जन से ज्यादा गांवों की पड़ताल की, जहां अन्नदाता बेहाल और कुदरत के कहर के सामने बेबस ही दिखा.
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ईटीवी भारत की मुहिम का असर
ईटीवी भारत 'मिट्टी का लाल' मुहिम के जरिए किसानों की आवाज बना और सरकार को नींद से जगाया, जिसके बाद कृषि मंत्री सचिन यादव ने ईटीवी भारत को भरोसा दिलाया कि जल्द ही प्रदेश के किसानों को मुआवजा दिया जाएगा.
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आश्वासन की रोटी खिला रही कमलनाथ सरकार
देश की आत्मा जिन गांवों में बसती है, उन गांवों के विकास की धुरी है किसान, वही किसान जिसके उगाए अनाज से राजा से रंक तक का पेट भरता है. पर मौसम की मार ने उन्हीं किसानों को भूख से बेहाल कर दिया है, जिसके चलते किसान अब आस भरी नजरों से सरकार की ओर देख रहा है. पर सरकार है कि आश्वासन की रोटी दिखाकर किसानों का पेट भर रही है. ईटीवी भारत मध्यप्रदेश.