शहडोल(Shahdol)। बदलते वक्त के साथ बहुत कुछ बदला है.किसानों के खेती करने का तरीका भी बदला.पहले किसान खेती के लिए बाजारों पर बहुत कम आश्रित था. लेकिन बदलते वक्त के साथ अब बाजार में किसानों की डिपेंडेंसी बढ़ी और वहीं किसानों के लिए बड़ी मुसीबत भी बन गई है.वजह है किसानों पर महंगाई की मार .जिसके चलते किसानों के लिए अब फसल की लागत निकालना भी मुश्किल है और किसानों के लिए खेती में ये आधुनिक बदलाव उनके लिए अब मुसीबत बन गया है. आलम यह है कि अब धीरे-धीरे खेती से किसानों का मोह भंग हो रहा है.
खेती से किसानों का हो रहा मोह भंग शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है और यहां पर खरीफ के सीजन में ज्यादातर किसान खेती करते हैं क्योंकि जिले में अधिकतर किसान अभी भी वर्षा पर निर्भर होकर ही खेती करते हैं.यहां ज्यादातर छोटे किसान हैं जो अपने खाने के लिए फसल उगाते हैं. लेकिन अब उन पर भी महंगाई की मार पड़ रही है और ऐसे किसान और ज्यादा परेशान हैं वजह है जितना उत्पादन नहीं होता उससे ज्यादा उनकी खेती में लागत लग जा रही है.जिसके चलते किसान परेशान हैं और चिंतित भी है की क्या जितनी लागत इस महंगाई के दौर में खेती में उनकी लग गई है क्या उतना उत्पादन हो पायेगा. किसानों पर भी महंगाई की मार देखने को मिल रही है.इसके चलते अब किसानों का खेती से मोहभंग हो रहा है.पहले ही जिले में अधिकतर किसान खेती को अपना जीवन यापन चलाने के लिए दूसरा ऑप्शन बना चुके हैं. तो वही जो कुछ किसान थोड़ी बहुत खेती खुद कर भी रहे हैं, इस महंगाई को देखकर उनका भी खेती से मोह भंग हो रहा है.
खेती अब घाटे का सौदा बन रहा
बदलते वक्त के साथ किसान के खेती करने के तौर तरीको में बदलाव आया है पहले किसान खेतों में हल से खेती करता था.लेकिन अब ट्रेक्टर पर आश्रित है, डीजल जहां 100 के पार है तो पेट्रोल भी करीब 113 रुपये प्रति लीटर बिक रहा.जिले में धान का सबसे ज्यादा रकबा होता है उसकी रोपाई की जाती है मतलब खेतों की जुताई भी कई बार की जाती है. पहले नर्सरी लगाने में खेत को 3 से 4 बार लगभग जुताई की जाती है फिर नर्सरी ट्रांसप्लांट करते समय हर खेत को तीन से चार बार जोता जाता है.
आप अंदाजा लगा सकते हैं किसानों पर किस तरह से महंगाई की मार पड़ रही है. किसान कहते हैं कि बात यहीं पर खत्म हो जाती तो बात अलग थी. खेती में अब परेशानियां भी बहुत हैं. इस आधुनिक जमाने में खेतों में काम करने वाले मजदूरों की संख्या कम हुई है जिससे खेतों में मजदूरों से काम कराना भी महंगा हो गया है और वो भी समय पर मिल जाएं तो किस्मत है क्योंकि उनकी जरूरत तो हर किसान को उसी समय पर है, ऐसे में खेतों में काम करने के लिए मजदूरों के लिए भी किसान को अच्छी खासी मश्कत करनी पड़ रही है.ऐसे में अब किसान का खेती से मोह भंग हो रहा है.
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बरसात की अनियमितता
अब पहले की तरह व्यवस्थित तरीके से बारिश भी नहीं होती है किसान बरसात की अनियमितता से भी बहुत परेशान है, पिछले कुछ सालों में इसमें भी बहुत ज्यादा बदलाव देखने को मिला है कभी बेमौसम बरसात होने लगती है तो कभी बारिश ही बंद हो जाती है तो कभी देरी से शुरू होती है. जिसके चलते इस आधुनिक खेती में किसानों का बहुत नुकसान हो जाता है.
बाजार पर किसान की डिपेंडेंसी
किसानों की मानें तो पहले जब किसान खेती करता था तो घर में ही बीज बना लेता था, खाद के लिए घर में गाय बैल रखता था और खेतो में गोबर खाद का इस्तेमाल करता था इतना ही नहीं खेतों की जुताई बैलों से होती थी जिससे बहुत सारा खर्च किसानों का बच जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं है बाज़ार पर किसानों की डिपेंडेंसी बढ़ गई है अब किसान इस आधुनिक खेती में बीज बाजार से खरीद रहा खाद बाजार से ले रहा, खेतों की जुताई ट्रेक्टर से हो रही ऐसे में किसानों के लिए बाजार में बढ़ती उनकी डिपेंडेंसी बड़ी मुसीबत बन गया है.
संकट के दौर से गुजर रहा किसानपूर्व कृषि विस्तार अधिकारी और सालों से किसानों के बीच रहने वाले आज भी उतना ही किसानों से जुड़े हुए और उनके साथ काम करने वाले कृषि एक्सपर्ट अखिलेश नामदेव का मानना है कि इन दिनों किसान काफी संकट के दौर से गुजर रहा है.वर्तमान में अगर स्थितियां देखी जाएं तो अनियमित वर्षा और कृषि अदानों की बढ़ती कीमत जैसे खाद बीज दवा, इनकी कीमतें निरंतर बढ़ती जा रही हैं.
अनियमित वर्षा जैसे कहीं बाढ़ कहीं सूखा, कहीं बेमौसम बरसात ऐसी परिस्थितयों के चलते किसान कृषि जो समय से कर सकता था वो नहीं हो पा रही है. बढ़ती कीमतों के चलते कृषि की लागत बढ़ती चली जा रही है और कृषि की लागत बढ़ना तो ठीक है लेकिन उसके कृषि उत्पादन का सही लाभ उसे मिल नहीं पा रहा है. वर्तमान में चाहे डीजल हो या बिजली हो इतनी महंगी हो गई है कि रोपाई का काम करना भी कठिन हो रहा है.
लेबर भी नहीं मिलते मज़दूरो की भी समस्या आ रही है, जो वर्तमान समय है उसमें किसान बड़े संकट के दौर से गुजर रहा है और यहां तक कि किसान की मानसिकता बनती जा रही है कि कृषि अब लाभ का धंधा नहीं अब नुकसान का धंधा हो गया है, इससे अच्छा होगा कि हम कृषि कार्य को छोड़कर कोई और कार्य अपना लें क्योंकि वर्तमान में इस समय भी देखने को मिलता है कि कृषि का बहुत बड़ा एरिया छूटा हुआ है इसके लिए बड़ी बात ये है कि बढ़ती महंगाई कृषि अदानों की बढ़ती कीमत किसानों के लिए बड़ी मुसीबत बन चुके हैं.
जिले में अबतक बारिश
अधीक्षक भू-अभिलेख ने जो जानकारी दी है उसके मुताबिक जिले में 3 अगस्त तक 565.8 मिलीमीटर औसत वर्षा दर्ज की गई है जिसमें सोहागपुर में 597 बुढार में 454, गोहपारू में 644, जैतपुर में 574 और ब्यौहारी में 626 जयसिंह नगर में 553 मिलीमीटर औसत वर्षा दर्ज की गई है.
जिले में खरीफ सीजन के फसल का रकबा
इस बार खरीफ फसलों का रकबा लगभग 2 लाख 10 हजार हेक्टेयर का टारगेट रखा गया है, जिसमें 1 लाख 63 हजार 8 सौ हेक्टेयर धान के रकबे का टारगेट रखा गया है, इसी तरह मक्के का 9 हजार हेक्टेयर का है. कोदो कुटकी का साढ़े सात हजार हेक्टेयर का है. उड़द साढ़े 6 हजार हेक्टेयर का है, अरहर 10 हजार हेक्टेयर का है, तिल 9 हजार हेक्टेयर का है,और सोयाबीन साढ़े तीन हजार हेक्टेयर है.