शहडोल। पिछले कुछ सालों में मौसम में बहुत ज्यादा बदलाव देखने को मिला है. कभी बारिश होने लग जाती है, तो कभी अचानक से तेज ठंड पड़ने लगती है, कभी ओले गिरने लग जाते हैं, तो कभी कोहरा गिरता है. देखा जाए तो पहले की तरह किसी भी मौसम का कोई फिक्स टाइम अब नहीं रह गया है. बरसात के मौसम में बारिश तो होती है, लेकिन बारिश के दिनों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है. मतलब बारिश होने के नंबर ऑफ डेज घट रहे हैं. ऐसे में इस जलवायु परिवर्तन के बीच किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. (Climate change is big challenge for farmers)
शहडोल के किसानों के लिए यह कितनी बड़ी चुनौती है, साथ ही साथ उनका कितना नुकसान हो रहा है, और कैसे किसान इस परिवर्तन से अपना सामंजस्य बैठा सकते हैं. साथ ही आज हम आपको बताएंगे भविष्य के लिए किस तरह से किसानों को थोड़ी सावधानी बरतनी होगी, और अपने खेत में वक्त के साथ किस तरह का बदलाव करना होगा.
कभी भी बदल जाता है मौसम
पिछले कुछ सालों से देखें तो साल दर साल मौसम में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. वर्तमान समय को ही देखा जाए तो कभी तेज ठंड पड़ती है, कभी बारिश होने लग जाती है. अचानक ही आसमान में बादल छा जाते हैं, तो कभी तेज धूप खिल जाती है. इसकी वजह से तापमान में भी बढ़ोतरी देखने को मिलती है. मौसम का पलभर में बदल जाना, किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है. साल दर साल हो रहे इस जलवायु परिवर्तन से किसानों के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो रही हैं, क्योंकि किसान खेती तो ऋतु के हिसाब से ही करता है. आज का समय ऐसा आ गया है कि किस ऋतु में किस तरह का मौसम हो जाए यह कोई नहीं जानता. ऐसे में इस जलवायु परिवर्तन के बीच किसानों के लिए किसानी करना एक बड़ा जोखिम भरा काम हो गया है. (shahdol farming problem)
जलवायु परिवर्तन किसानों के लिए बड़ी चुनौती
कृषि एक्सपर्ट अखिलेश नामदेव बताते हैं कि जो जलवायु परिवर्तन हो रहा है, इससे किसानों का संकट बढ़ता ही जा रहा है. आलम यह है कि किसानों को इस तरह के मौसम का अंदाजा नहीं होता है, और इससे उनकी फसलों को नुकसान झेलना पड़ता है. अनियमित वर्षा, अनावश्यक बढ़ता तापमान और ओलावृष्टि से किसान परेशान हो रहे हैं. अखिलेश नामदेव का कहना है कि इस जलवायु परिवतर्न से किसानों का उत्पादकता, उत्पादन क्षमता 25 से 30 प्रतिशत तक प्रतिवर्ष प्रभावित हो रहा है. साथ में किसान की लागत भी बढ़ती चली जा रही है. जब मौसम बार-बार चेंज होता है तो कीट व्याधि का भी प्रकोप होता है. इसके बाद उसको नियंत्रण करने के लिए किसान को अनावश्यक खर्च करने पड़ते हैं. साथ ही कभी अतिवृष्टि हुई तो फसल नष्ट हो गई, और यह जलवायु परिवर्तन की वजह से ही हो रहा है.
बारिश में बदलाव, किसानों के लिए चुनौती
कृषि वैज्ञानिक मृगेंद्र सिंह की मानें तो पिछले कुछ सालों में बारिश के क्रम में भी बदलाव देखने को मिला है. आप पिछले कुछ सालों का डाटा उठाकर देखें तो आपको पता लगेगा कि बारिश भले ही उतनी ही हो रही है, जितनी पहले होती थी या उससे थोड़ी बहुत कम हो रही है, लेकिन बारिश के दिनों की संख्या घट गई है. इसका सीधा सा मतलब है कि नंबर ऑफ रेनी डेज कम होना और बारिश उतना ही होना मतलब बारिश जब कभी भी होती है तो बहुत तेज होती है. तेज बारिश का अर्थ है कि जब तेजी से पानी धरती पर गिरता है तो धरती के ऊपरी सतह की मिट्टी का क्षरण होता है, बूंदे जमीन की ऊपरी सतह को उखाड़ देते हैं, और जमीन की ऊपरी सतह की मिट्टी नाली और फिर नाली के माध्यम से वह नदियों में मिल जाता है. इस तरह से वह बह जाती है, जबकि सबको पता है की मिट्टी की ऊपरी सतह काफी उपजाऊ मानी जाती है.
पानी और उपजाऊ मिट्टी का होता है नुकसान
पहले जो हफ्ते भर रिमझिम फुहारों वाली बारिश होती थी अब वह नहीं होती है. अब तेज बारिश होकर मिट्टी निकल जाती है, मतलब की पानी जमीन के अंदर नहीं जा पाता है. इससे दो चीजों का नुकसान होता है एक तो पानी जो जमीन के अंदर नहीं जा पाता, इसके अलावा उपजाऊ जमीन भी पानी के साथ में ही बह जा रही है. इसे पानी और उपजाऊ मिट्टी का नुकसान हो रहा है. जो किसानों के लिए सबसे ज्यादा जरूरत की चीज है. इस माहौल को देखते हुए भू संरक्षण और जल सरंक्षण की बहुत ज्यादा जरूरत है. जो जलवायु परिवर्तन हो रहा है ऐसे में हमें खेती किसानी करने का ट्रेंड भी बदलना होगा हमें ऐसी फसलों की खेती करनी होगी जो कम पानी में ज्यादा पैदावार दें, हमारी जो पुरानी फसलें थी एक बार फिर से उस ओर किसानों को जाना होगा.