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लॉकडाउन से बांस के कारीगरों पर पड़ी दोहरी मार, गहराया रोजी-रोटी का संकट

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Published : Jun 4, 2020, 2:12 PM IST

Updated : Jun 4, 2020, 2:55 PM IST

बांस की कारीगरी करके अपना गुजारा चलाने वाले वंशकार समाज के लोगों को इन दिनों परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. कोरोनाकाल ने इनकी रोजी- रोटी पर ही ग्रहण लगा दिया. पहले लॉकडाउन के चलते बांस का सामान नहीं बिका और अब बांस के सामान ही मांग भी बाजार में कम हो गई है. जिससे उनके सामने परेशानियां बढ़ गई हैं.

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शहडोल न्यूज

शहडोल। कोरोना के चलते देशभर में किए गए लॉकडाउन ने तमाम लोगों का रोजगार छीन लिया. लोग बेरोजगार हो गए. काम-धंधे ठप पड़े हैं. कारीगर खाली बैठे हैं. छोटे-छोटे काम करके अपना गुजारा चलाने वाले मजदूरों के सामने रोजगार सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है. कुछ ऐसा ही हाल बांस से बने बर्तन बेचने वाले वंशकार समाज का भी. जिनकी रोजी रोटी पर कोरोना ने ग्रहण लगा दिया.

लॉकडाउन की वजह से नहीं बांस कारीगरों की बढ़ी मुसीबत

कोरोना से लगा धंधे पर ग्रहण

बांस से टोकरी, सूप जैसे अलग- अलग तरह के सामान बनाने वाले कारीगर कहते हैं. कोरोना के चलते उनका धंधा चौपट हो गया. बदलते वक्त में पहले से ही बांस के सामान की डिमांड कम हो रही थी. लॉकडाउन से परेशानियां और बढ़ गयी.

सामान का नहीं मिलता अच्छा दाम
सामान का नहीं मिलता अच्छा दाम

शादी के सीजन में ही अच्छी कमाई होती थी, बांस से बने टोकनी, सूपा, छिटवा, झांपी की जमकर बिक्री होती थी, लेकिन इस बार इस कोरोनाकाल में सब बंद रहा. ऐसे में इस साल भी बांस के बने बर्तन ज्यादा नहीं बिकने वाले.

लॉकडाउन में बंद रहा बांस का धंधा
लॉकडाउन में बंद रहा बांस का धंधा

बांस के बर्तनों की घट रही हैं मांग

कमलेश वंशकार कहते हैं कि, वे पिछले 40 साल से बांस के बर्तन बना रहे हैं. लेकिन अब बांस से बने बर्तनों का क्रेज नहीं रहा. लॉकडाउन और कोरोनाकाल नें बांस पर कारीगरी करने वाले लोगों की कमर तोड़ कर रख दी है. कमलेश कहते हैं कि, वो बिल्कुल नहीं चाहते कि अब इस पेशे में उनकी अगली पीढ़ी आये. क्योंकि इस काम से गुजारा नहीं होता. बांस से बने बर्तनों के घटते क्रेज से इन लोगों पर पहले से ही आफत थी. रही-सही कसर लॉकडाउन के बाद से ही खराब है. ऐसे में बांस की कारीगरी कर बर्तन लगाने वालों की कमर टूट गई हैं

बांस के सामान की घटी मांग
बांस के सामान की घटी मांग

शहडोल। कोरोना के चलते देशभर में किए गए लॉकडाउन ने तमाम लोगों का रोजगार छीन लिया. लोग बेरोजगार हो गए. काम-धंधे ठप पड़े हैं. कारीगर खाली बैठे हैं. छोटे-छोटे काम करके अपना गुजारा चलाने वाले मजदूरों के सामने रोजगार सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है. कुछ ऐसा ही हाल बांस से बने बर्तन बेचने वाले वंशकार समाज का भी. जिनकी रोजी रोटी पर कोरोना ने ग्रहण लगा दिया.

लॉकडाउन की वजह से नहीं बांस कारीगरों की बढ़ी मुसीबत

कोरोना से लगा धंधे पर ग्रहण

बांस से टोकरी, सूप जैसे अलग- अलग तरह के सामान बनाने वाले कारीगर कहते हैं. कोरोना के चलते उनका धंधा चौपट हो गया. बदलते वक्त में पहले से ही बांस के सामान की डिमांड कम हो रही थी. लॉकडाउन से परेशानियां और बढ़ गयी.

सामान का नहीं मिलता अच्छा दाम
सामान का नहीं मिलता अच्छा दाम

शादी के सीजन में ही अच्छी कमाई होती थी, बांस से बने टोकनी, सूपा, छिटवा, झांपी की जमकर बिक्री होती थी, लेकिन इस बार इस कोरोनाकाल में सब बंद रहा. ऐसे में इस साल भी बांस के बने बर्तन ज्यादा नहीं बिकने वाले.

लॉकडाउन में बंद रहा बांस का धंधा
लॉकडाउन में बंद रहा बांस का धंधा

बांस के बर्तनों की घट रही हैं मांग

कमलेश वंशकार कहते हैं कि, वे पिछले 40 साल से बांस के बर्तन बना रहे हैं. लेकिन अब बांस से बने बर्तनों का क्रेज नहीं रहा. लॉकडाउन और कोरोनाकाल नें बांस पर कारीगरी करने वाले लोगों की कमर तोड़ कर रख दी है. कमलेश कहते हैं कि, वो बिल्कुल नहीं चाहते कि अब इस पेशे में उनकी अगली पीढ़ी आये. क्योंकि इस काम से गुजारा नहीं होता. बांस से बने बर्तनों के घटते क्रेज से इन लोगों पर पहले से ही आफत थी. रही-सही कसर लॉकडाउन के बाद से ही खराब है. ऐसे में बांस की कारीगरी कर बर्तन लगाने वालों की कमर टूट गई हैं

बांस के सामान की घटी मांग
बांस के सामान की घटी मांग
Last Updated : Jun 4, 2020, 2:55 PM IST
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