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MP में भी है एक जलियांवाला बाग, जहां आज के ही दिन अंग्रेजों ने एक साथ गोलियों से भून दिए थे 356 क्रांतिकारी

एमपी के सीहोर में 14 जनवरी का दिन 356 शहीदों की शहादत के लिए याद किया जाता है. (356 revolutionaries gave martyrdom) 14 जनवरी 1858 को अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के जुर्म में 356 क्रांतिकारियों को ब्रिटिश हुकूमत ने एक लाइन से खड़ा कर गोलियों से भून दिया था.

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Published : Jan 14, 2023, 8:55 AM IST

सीहोर। 14 जनवरी को यूं तो मकर संक्रांति के तौर पर मनाया जाता है, लेकिन 65 साल पहले आज के ही दिन सीहोर में 356 क्रांतिकारियों ने शहादत दी थी. गाय की चर्बी लगी कारतूस का विरोध कर रहे सैनिकों पर अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग की तरह बरबर्तापूर्ण कार्रवाई की थी, ब्रिटिश हुकूमत ने सीहोर के सीवन नदी किनारे सैकड़ाखेड़ी चांदमारी मैदान में विद्रोह की बिगूल फूंक रहे 356 क्रांतिकारियों को एकसाथ खड़ा कर गोलियों से भून दिया था.

Jallianwala Bagh In Sehore
14 जनवरी को 356 क्रांतिकारियों ने दी थी शहादत

विद्रोह दबाने के लिए की कार्रवाई: ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ 1857 की क्रांति को भारतीय इतिहास में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में देखा जाता है. मेरठ से 10 मई 1857 को सैनिक विद्रोह के रूप में शुरू हुई, इस क्रांति ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका. ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों में असंतोष फैलता गया और धीरे-धीरे इस आन्दोलन ने उग्र रूप ले लिया. पूरे देश के साथ ही मध्य भारत में भी अंग्रेजी हुकूमत ने इस विद्रोह को दबाने के लिए अनेक क्रांतिकारियों को गोली से भून दिया.

1857 में क्रांतिकारियों का गढ़ रहा ग्वालियर चंबल अंचल, यही से हुई थी काकोरी कांड में प्रयोग हुए बम की सप्लाई

इसलिए उग्र हुए थे लोग: अंग्रेजों का झंडा अंग्रेजी शासन के खिलाफ मध्य भारत में चल रहे विद्रोह में सीहोर की बरबर्तापूर्ण घटना को जलियांवालाबाग हत्याकांड की तरह माना जाता है. 10 मई 1857 को मेरठ की क्रांति से पहले ही सीहोर में क्रांति की ज्वाला सुलग गईं थी, मेवाड़, उत्तर भारत से होती हुई क्रांतिकारी चपातियां 13 जून 1857 को सीहोर और ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच गयी थी. एक अगस्त 1857 को छावनी के सैनिकों को नए कारतूस दिए गए. इन कारतूसों में सूअर और गाय की चर्बी लगी हुई थी. जांच में सुअर और गाय की चर्बी के उपयोग की बात सामने आने पर सैनिकों में आक्रोश और बढ़ गया. सीहोर छावनी के सैनिकों ने सीहोर कॉन्टिनेंट पर लगा अंग्रेजों का झंडा उतार कर जला दिया और महावीर कोठ और वलीशाह के संयुक्त नेतृत्व में स्वतंत्र सिपाही बहादुर सरकार का ऐलान किया. जनरल ह्यूरोज को जब सीहोर की क्रांतिकारी गतिविधियों के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने इसे बलपूर्वक कुचलने के आदेश दिए.

गोलियों से भूनकर पेड़ों से लटकाया: सीहोर में जनरल ह्यूरोज के आदेश पर 14 जनवरी 1858 को सभी 356 क्रांतिकारियों को जेल से निकालकर सीवन नदी किनारे सैकड़ाखेड़ी चांदमारी मैदान में लाया गया, इन सभी क्रांतिकारियों को एक साथ गोलियों से भून दिया गया था. जनरल ह्यूरोज इन क्रांतिकारियों के शव पेड़ों पर लटकाने के आदेश दिए और शवों को पेड़ों पर लटकाकर छोड़ दिया गया था. 2 दिन बाद आसपास के ग्रामवासियों ने इन क्रांतिकारियों के शवों को पेड़ से उतारकर इसी मैदान में दफनाया था. (MP Jallianwala Bagh In Sehore) मकर संक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी को बड़ी संख्या में नागरिक सैकड़ाखेड़ी मार्ग पर स्थित शहीदों के समाधि स्थल पहुंचकर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं.

सीहोर। 14 जनवरी को यूं तो मकर संक्रांति के तौर पर मनाया जाता है, लेकिन 65 साल पहले आज के ही दिन सीहोर में 356 क्रांतिकारियों ने शहादत दी थी. गाय की चर्बी लगी कारतूस का विरोध कर रहे सैनिकों पर अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग की तरह बरबर्तापूर्ण कार्रवाई की थी, ब्रिटिश हुकूमत ने सीहोर के सीवन नदी किनारे सैकड़ाखेड़ी चांदमारी मैदान में विद्रोह की बिगूल फूंक रहे 356 क्रांतिकारियों को एकसाथ खड़ा कर गोलियों से भून दिया था.

Jallianwala Bagh In Sehore
14 जनवरी को 356 क्रांतिकारियों ने दी थी शहादत

विद्रोह दबाने के लिए की कार्रवाई: ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ 1857 की क्रांति को भारतीय इतिहास में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में देखा जाता है. मेरठ से 10 मई 1857 को सैनिक विद्रोह के रूप में शुरू हुई, इस क्रांति ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका. ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों में असंतोष फैलता गया और धीरे-धीरे इस आन्दोलन ने उग्र रूप ले लिया. पूरे देश के साथ ही मध्य भारत में भी अंग्रेजी हुकूमत ने इस विद्रोह को दबाने के लिए अनेक क्रांतिकारियों को गोली से भून दिया.

1857 में क्रांतिकारियों का गढ़ रहा ग्वालियर चंबल अंचल, यही से हुई थी काकोरी कांड में प्रयोग हुए बम की सप्लाई

इसलिए उग्र हुए थे लोग: अंग्रेजों का झंडा अंग्रेजी शासन के खिलाफ मध्य भारत में चल रहे विद्रोह में सीहोर की बरबर्तापूर्ण घटना को जलियांवालाबाग हत्याकांड की तरह माना जाता है. 10 मई 1857 को मेरठ की क्रांति से पहले ही सीहोर में क्रांति की ज्वाला सुलग गईं थी, मेवाड़, उत्तर भारत से होती हुई क्रांतिकारी चपातियां 13 जून 1857 को सीहोर और ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच गयी थी. एक अगस्त 1857 को छावनी के सैनिकों को नए कारतूस दिए गए. इन कारतूसों में सूअर और गाय की चर्बी लगी हुई थी. जांच में सुअर और गाय की चर्बी के उपयोग की बात सामने आने पर सैनिकों में आक्रोश और बढ़ गया. सीहोर छावनी के सैनिकों ने सीहोर कॉन्टिनेंट पर लगा अंग्रेजों का झंडा उतार कर जला दिया और महावीर कोठ और वलीशाह के संयुक्त नेतृत्व में स्वतंत्र सिपाही बहादुर सरकार का ऐलान किया. जनरल ह्यूरोज को जब सीहोर की क्रांतिकारी गतिविधियों के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने इसे बलपूर्वक कुचलने के आदेश दिए.

गोलियों से भूनकर पेड़ों से लटकाया: सीहोर में जनरल ह्यूरोज के आदेश पर 14 जनवरी 1858 को सभी 356 क्रांतिकारियों को जेल से निकालकर सीवन नदी किनारे सैकड़ाखेड़ी चांदमारी मैदान में लाया गया, इन सभी क्रांतिकारियों को एक साथ गोलियों से भून दिया गया था. जनरल ह्यूरोज इन क्रांतिकारियों के शव पेड़ों पर लटकाने के आदेश दिए और शवों को पेड़ों पर लटकाकर छोड़ दिया गया था. 2 दिन बाद आसपास के ग्रामवासियों ने इन क्रांतिकारियों के शवों को पेड़ से उतारकर इसी मैदान में दफनाया था. (MP Jallianwala Bagh In Sehore) मकर संक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी को बड़ी संख्या में नागरिक सैकड़ाखेड़ी मार्ग पर स्थित शहीदों के समाधि स्थल पहुंचकर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं.

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