सीहोर। सदियों से चली आ रही उस रूढ़िवादी परंपरा को बेटियों ने तिलांजलि दे दी, जिसमें मुखाग्नि देने का अधिकार सिर्फ बेटे का माना जाता था, लेकिन बदलते समय के साथ मान्यताएं भी बदलने लगी हैं और अब बेटियां भी अर्थी को कंधा देने लगी हैं. सीहोर शहर की मेघा और शिखा जैन ने भी इस परंपरा को तोड़ते हुए पिता की मौत के बाद मुखाग्नि दी और क्रिया कर्म की सभी परंपराएं निभाईं.
चाणक्यपुरी निवासी व्यवसायी अशोक जैन की दो बेटियां हैं. जिनकी शादी हो चुकी है. अशोक जैन का कोई पुत्र नहीं था. जिसके चलते उनकी मृत्यु के बाद ये सवाल उठ रहा था कि अंतिम संस्कार कौन करेगा. जिस पर उनकी दोनों बेटियों ने मिलकर अपने पिता के अंतिम संस्कार करने का फैसला किया और मुक्तिधाम पहुंच कर पिता को मुखाग्नि दी. समाज में विद्यमान पितृसत्तात्मक व्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए दोनों बेटियों ने अपना फर्ज निभाया और नई मिसाल पेश की है.