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सतना: कचरे के ढ़ेंर में पड़े हैं उज्ज्वला योजना के सिलेंडर, चूल्हा फूंकने को मजबूर हुईं महिलाएं

सतना जिले में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना अंधेरे में है. हितग्राहियों का कहना है कि महंगाई की मार और गैस सिलेंडर के बढ़े दाम ने चूल्हे फूंकने को मजबूर कर दिया है.

कचरे में पड़े उज्ज्वला योजना के सिलेंडर
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Published : May 13, 2019, 6:25 PM IST

सतना| देश में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सहयोग से प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना चलाई जा रही है. ये योजना कमजोर वर्ग के लिए शुरू की गई थी, योजना के तहत सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को घरेलू रसोई गैस का कनेक्शन दिया था. लेकिन केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना अंधेरे में है. हितग्राहियों का कहना है कि महंगाई की मार और गैस सिलेंडर के बढ़े दाम ने चूल्हे फूंकने को मजबूर कर दिया है.

कचरे में पड़े उज्ज्वला योजना के सिलेंडर

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना महिलाओं को राहत पहुंचाने की मंशा से शुरू की गई थी पर आज भी मैहर तहसील में महिलाएं चूल्हे के धुएं में खाना बनाने को मजबूर हैं. गैस सिलेंडर और चूल्हे कचरे के ढेर में पड़े नजर आ रहे हैं. जब हितग्राही महिलाओं से बात कि तो उनका साफ तौर से ये कहना था कि महंगाई इतनी है कि दो टाइम का भोजन नसीब से मिलता है. गैस सिलेंडर के दाम हजार रुपए हो गये हैं. योजना के समय जो सिलेंडर भरा मिला था उसे उपयोग कर घर के एक कोने में रख दिया है.

पार्षद रमेश प्रजापति ने बताया कि उज्जवला योजना के तहत जो भरे हुए सिलेंडर लोगों को मिले थे वह एक बार से दूसरी बार भरवा ही नहीं पाए. सिलेंडर इतना महंगा हो चुका है कि वह अपना घर नही चला पा रहे तो सिलेंडर कहा से भरवाएंगे.

सतना| देश में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सहयोग से प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना चलाई जा रही है. ये योजना कमजोर वर्ग के लिए शुरू की गई थी, योजना के तहत सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को घरेलू रसोई गैस का कनेक्शन दिया था. लेकिन केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना अंधेरे में है. हितग्राहियों का कहना है कि महंगाई की मार और गैस सिलेंडर के बढ़े दाम ने चूल्हे फूंकने को मजबूर कर दिया है.

कचरे में पड़े उज्ज्वला योजना के सिलेंडर

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना महिलाओं को राहत पहुंचाने की मंशा से शुरू की गई थी पर आज भी मैहर तहसील में महिलाएं चूल्हे के धुएं में खाना बनाने को मजबूर हैं. गैस सिलेंडर और चूल्हे कचरे के ढेर में पड़े नजर आ रहे हैं. जब हितग्राही महिलाओं से बात कि तो उनका साफ तौर से ये कहना था कि महंगाई इतनी है कि दो टाइम का भोजन नसीब से मिलता है. गैस सिलेंडर के दाम हजार रुपए हो गये हैं. योजना के समय जो सिलेंडर भरा मिला था उसे उपयोग कर घर के एक कोने में रख दिया है.

पार्षद रमेश प्रजापति ने बताया कि उज्जवला योजना के तहत जो भरे हुए सिलेंडर लोगों को मिले थे वह एक बार से दूसरी बार भरवा ही नहीं पाए. सिलेंडर इतना महंगा हो चुका है कि वह अपना घर नही चला पा रहे तो सिलेंडर कहा से भरवाएंगे.

Intro:केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना अँधेरे मे है, यह योजना कमजोर वर्ग के परिवारों खासकर महिलाओं को राहत पहुँचाने की मंशा से शुरू की गई थी पर आज भी मैहर तहसील की महिलाये चूल्हे के धुँए फाँक रही है।गैस सिलेंडर व चूल्हे कचड़े की ढेड़ पर पढे नजर आ रहे है, हितग्राहियो की माने तो महंगाई की मार व गैस सिलेंडर के बढ़े दाम ने चूल्हे फूकने को मजबूर कर दिया है।माली हालत खराब होने के चलते गैस चूल्हा में खाना पकाने का सोचना खुली आँखो से सपना देखने जैसा है।Body:दरअसल देश मे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सहयोग से प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना चलाई जा रही है यह योजना कमजोर वर्ग के लिए शुरू की गई थी,योजना के तहत सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को घरेलू रसोई गैस (एलपीजी (LPG) गैस) का कनेक्शन दिया,इसके पीछे मंशा थी की चूल्हे से निकलने वाले जहरीले धुँए से महिलाओ को निजात दिलाया जाय,सरकार का ऐसा मानना है कि ग्रामीण क्षेत्र मे खाना पकाने के लिए लकड़ी और गोबर के उपले का इस्तेमाल किया जाता है. इससे निकलने वाले धुएं का खराब असर महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ता है,ऐसे मे प्रधानमंत्री उज्जवला योजना (PMUY) से ऐसी महिलाओं को राहत मिलती है. साथ ही इससे ग्रामीण इलाके को स्वच्छ रखने में मदद मिलती है पर जमीनी हकीकत में यह अदद एक कोरा सपना साबित हुआ है। उज्जवला योजना की जमीनी हकीकत जानने जब हम जिले के मैहर कस्बे के वार्ड नं-9 मे हितग्राहियों के घर पहुँचे तो योजना दम तोड़ती कैमरो मे कैद हुई।घरो पर आज भी बच्चियां,महिलाये चूल्हे पर खाना पकाती नजर आई, गरीबी का दंश झेल रही महिलाये चूल्हे से निकल रहे इस जहरीले धुँए का खुद तो शिकार हो रही है साथ ही नन्हे मासूम को भी गोद पर लिये है जो अपनी आँखों से अभी दुनिया को देखा भी नही है कि यह जहरीला धुँआ इन आँखों को अपने शिकंजे पर ले रहा है।उज्जवला योजना के हितग्राहियो के एक नही ऐसे कई घर हम पहुँचे पर हालत जस की तस नजर आई।योजना के तहत मीले गैस सिलेंडर व चूल्हे धूल के फाँक छान रहे है, चूल्हा और सिलेंडर मे धूल की परत जम चुकी है।दम तोड़ती योजना के बारे में जब हमने हितग्राही महिलाओ से बात कि तो उनका साफ तौर से यह कहना था कि महंगाई इतनी है कि दो टाइम का भोजन नसीब से मिलता है, गैस सिलेंडर के दाम हजार रुपये हो गये है ऐसे मे योजना के समय जो सिलेंडर भरा मिला था उसे उपयोग कर इसे हमने घर के एक कोने पर रख दिया है।घर की माली हालत खराब है इतनी आमदनी नही की हम गैस सिलेंडर भरा सके इसलिये जंगलो से लकड़ी बीन कर लाते है और उन्ही लकड़ी व कंडो के सहारे दो जून के भोजन पका अपना व परिवार का पेट भरते है।


बाइट:-- सुकबरिया, उज्जवला योजना की हितग्राही-मैहर,
बाइट:-- सावित्री,उज्जवला योजना की हितग्राही-मैहर,
बाइट:-- यसोदा,उज्जवला योजना की हितग्राही-मैहर,
बाइट:-- माही,उज्जवला योजना की हितग्राही-मैहर,
बाइट:-- शशि,उज्जवला योजना की हितग्राही-मैहर,
बाइट:-- रीतू,उज्जवला योजना की हितग्राही-मैहर,
बाइट:-- रवीना,उज्जवला योजना की हितग्राही-मैहर,

दम तोड़ रही योजना के बारे में जब जनप्रतिनिधि से बात की गई तो वार्ड-9 के पार्षद रमेश प्रजापति ने बताया कि उज्जवला योजना के तहत जो भरे हुए सिलेंडर लोगो को मिले थे वह एक बार से दूसरी बार भरवा ही नही पाये,सिलेंडर इतना महंगा हो चुका है कि वह अपना घर नही चला पा रहे तो सिलेंडर कहा से भरवाएंगे,महिलाये जंगलो में समूह बनाकर जाती है और लकड़ी लाकर भोजन पकाती है मोदी जी ने महिलाओं को बड़े बड़े सपने दिखाये थे जिसकी वजह से सिलेंडर सभी ने ले लिया पर दोबारा नही भरवा पाये हमारे वार्ड में 80 से 85%गैस चूल्हे ऐसे ही पड़े हुये है।

बाइट:-- रमेश प्रजापति, वार्ड-9 पार्षद मैहरConclusion:बहरहाल प्रधानमंत्री की उज्ववला योजना सतना जिले मे चार दिवारी के अंदर अँधेले में कैद हो कर रह गई है। धरातल पर यह महिलाओ के लिए किसी सुंदर सपनो के सिवा कुछ नही है।हितग्राहियो की पहले ही माली हालत खराब होना उस पर भी यह महंगाई का बोझ,उज्जवला योजना पर ग्रहण लगा दी है।
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