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इस गांव के हर घर में चलता है चरखा, जहां आज भी साकार हो रहा है बापू के स्वावलंबन का सपना

मध्यप्रदेश के सतना जिले का एक ऐसा गांव जहां आज भी आजादी के बाद से लोग बापू के आदर्श पर चलते चले आ रहे हैं. इस गांव में सौ परिवार पाल समाज के लोग आज भी महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे चरके को अपने घरों में चलाते हैं और महात्मा गांधी के आदर्श पर आज भी लोग अपना पूरा जीवन यापन चरखे की मदद से ही करते हैं.

चरखे वाला गांव
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Published : Oct 2, 2019, 11:32 AM IST

Updated : Oct 11, 2019, 7:11 PM IST

सतना। जिला मुख्यालय से महज 90 किलोमीटर दूर सुलखमा गांव के लोग आज भी चरखा चलाकर अपना जीवन-यापन करते हैं. गांव में रहने वाले पाल समाज के के लोग आज भी महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर ही चल रहे हैं. लेकिन आजादी के बाद से आज तक इस गांव के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित है.

इस गांव में घर के बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक आज भी चरखा के बदौलत रोजी रोटी कमा रहे हैं. दो जून की रोटी के लिए ही सही मगर सुलखामा का पाल समाज आज भी महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन की ज्योति जलाए हुए हैं. बगैर कोई शासकीय मदद के बापू का चरखा हर घर में चलता है. जिसे देश के शोषण के खिलाफ गांधीजी ने एक हथियार के रुप में इस्तेमाल किया था. बापू की धरोहर चरखा जहां देश के संग्रहालय में देखने की विषय वस्तु बन चुका है तो सुलखामा गांव में बापू का चरखा पाल समाज की जीविको पार्जन का साधन बना हुआ है. यहां के लोग आज भी महात्मा गांधी के सिखाए पाठ पर चल रहा है.

चरखे वाला गांव

इस गांव की आबादी 4 हजार की है जहां आज भी दो हजार से ज्यादा घरों में चरखे की आवाज सुनाई देती है. या यूं कह सकते हैं की हर घर में चरखा चलता है. लेकिन बुजुर्गों की परंपरा पर आधारित यह रोजगार या यूं कहें विरासत अब कमजोर होने लगी हैं. कारण यही है कि चरखा काटने और बुनने के बाद भी यहां के लोगों को पूरी मजदूरी तक नहीं मिल पाती. जिला प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधि तक इस गांव की ओर ध्यान नहीं दे रहा है. यही वजह है कि इस गांव के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं.

इन सबके बीच भले ही समस्या हो पर यहां के लोग खुश रहते हैं और गर्व साथ इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. इसलिए नहीं कि इनकी जरूरत है, बल्कि इसलिए क्योंकि इनके बुजुर्गों ने जो पाठ महात्मा गांधी से सीखा था उसका दायित्व इनके कंधे पर है यह इनके लिए धरोहर है.

मामले को जब ईटीवी भारत द्वारा जिला कलेक्टर के संज्ञान में लाया गया. तो सतना कलेक्टर सतेंद्र सिंह ने बताया कि रामनगर ब्लाक के सुलखमा गांव में पाल समाज के 100 परिवारों में महात्मा गांधी के आदर्श पर चरखा चलाया जा रहा है. जिसके लिए जिला प्रशासन स्तर पर ग्रामीणों को प्रशिक्षण केंद्र, कुटीर उद्योग और लघु उद्योग के माध्यम से सुविधा मुहैया कराई जाएगी ताकि गांव के लोगों को परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा.

सतना। जिला मुख्यालय से महज 90 किलोमीटर दूर सुलखमा गांव के लोग आज भी चरखा चलाकर अपना जीवन-यापन करते हैं. गांव में रहने वाले पाल समाज के के लोग आज भी महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर ही चल रहे हैं. लेकिन आजादी के बाद से आज तक इस गांव के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित है.

इस गांव में घर के बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक आज भी चरखा के बदौलत रोजी रोटी कमा रहे हैं. दो जून की रोटी के लिए ही सही मगर सुलखामा का पाल समाज आज भी महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन की ज्योति जलाए हुए हैं. बगैर कोई शासकीय मदद के बापू का चरखा हर घर में चलता है. जिसे देश के शोषण के खिलाफ गांधीजी ने एक हथियार के रुप में इस्तेमाल किया था. बापू की धरोहर चरखा जहां देश के संग्रहालय में देखने की विषय वस्तु बन चुका है तो सुलखामा गांव में बापू का चरखा पाल समाज की जीविको पार्जन का साधन बना हुआ है. यहां के लोग आज भी महात्मा गांधी के सिखाए पाठ पर चल रहा है.

चरखे वाला गांव

इस गांव की आबादी 4 हजार की है जहां आज भी दो हजार से ज्यादा घरों में चरखे की आवाज सुनाई देती है. या यूं कह सकते हैं की हर घर में चरखा चलता है. लेकिन बुजुर्गों की परंपरा पर आधारित यह रोजगार या यूं कहें विरासत अब कमजोर होने लगी हैं. कारण यही है कि चरखा काटने और बुनने के बाद भी यहां के लोगों को पूरी मजदूरी तक नहीं मिल पाती. जिला प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधि तक इस गांव की ओर ध्यान नहीं दे रहा है. यही वजह है कि इस गांव के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं.

इन सबके बीच भले ही समस्या हो पर यहां के लोग खुश रहते हैं और गर्व साथ इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. इसलिए नहीं कि इनकी जरूरत है, बल्कि इसलिए क्योंकि इनके बुजुर्गों ने जो पाठ महात्मा गांधी से सीखा था उसका दायित्व इनके कंधे पर है यह इनके लिए धरोहर है.

मामले को जब ईटीवी भारत द्वारा जिला कलेक्टर के संज्ञान में लाया गया. तो सतना कलेक्टर सतेंद्र सिंह ने बताया कि रामनगर ब्लाक के सुलखमा गांव में पाल समाज के 100 परिवारों में महात्मा गांधी के आदर्श पर चरखा चलाया जा रहा है. जिसके लिए जिला प्रशासन स्तर पर ग्रामीणों को प्रशिक्षण केंद्र, कुटीर उद्योग और लघु उद्योग के माध्यम से सुविधा मुहैया कराई जाएगी ताकि गांव के लोगों को परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा.

Intro:"गांधी जयंती पर सतना ईटीवी भारत की विशेष स्टोरी"

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मध्य प्रदेश के सतना जिले का एक ऐसा गांव जहां आज भी आजादी के बाद से लोग बापू के आदर्श पर चलते चले आ रहे हैं. इस गांव में सौ परिवार पाल समाज के लोग आज भी महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे चरके को अपने घरों में चलाते हैं और महात्मा गांधी के आदर्श पर आज भी लोग अपना पूरा जीवन यापन चरखे की मदद से ही करते हैं. लेकिन आजादी के बाद से आज तक इस गांव के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. चुनावी समर आता है तो सांसद विधायक द्वारा वादे तो किए जाते हैं लेकिन उन वादों पर कभी अमल नहीं किया जाता. आज भी लोग इस गांव में मूलभूत सुविधा ना होने का दंश झेल रहे हैं. यही वजह है कि इस गांव के बच्चे चरखे की कमाई ज्यादा ना होने की वजह से अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं. और अपने पुरखों के काम पर चरखा चलाने लगते हैं ।


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सतना जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर सुलखामा गांव में आजादी के बाद से आज भी इस गांव के वाशिंदो ने विकास का मुंह तक नहीं देखा. सुलखामा गांव के लोग आज भी मूलभूत सुविधाएं ना होने का दंश झेल रहे हैं. इस गांव मे पाल समाज के सौ परिवार के लोग आज भी चरखा चलाकर अपना परिवार पालते हैं और जीवन यापन करते हैं. इस गांव में घर के बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक आज भी चरखा के बदौलत रोजी रोटी कमा रहे हैं. दो जून की रोटी के लिए ही सही मगर सुलखामा का पाल समाज आज भी महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन की ज्योति जलाए हुए हैं. बगैर कोई शासकीय मदद के बापू का चरखा हर घर में चलता है. देश के शोषण के खिलाफ गांधीजी इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था. बापू की धरोहर चरखा जहाँ देश के संग्रहालय में देखने की विषय वस्तु बन चुका है तो वही सुलखामा गांव में बापू का चरखा पाल समाज की जीविकोपार्जन का साधन बना हुआ है. यहां के लोग आज भी महात्मा गांधी के शिकायत पाठ पर चल रहे हैं. स्वाभलंबन की प्रथा को बनाए रखने वाले इस गांव के लगभग हर घर में चरखा चलता है. इस गांव की आबादी 4 हजार की है जहां आज भी दो हजार से ज्यादा घरों में चरखे की आवाज सुनाई देती है. या यूं कह सकते हैं की हर घर में चरखा चलता है. पाल जाति के राहुल इस गांव की यह परंपरा महात्मा गांधी के सिखाए गए पाठ की वजह से है. असल में महात्मा गांधी जी ने जिस स्वालंबी भारत का सपना संध्या था उसका पालन आज भी इस गांव में हो रहा है और चरके से कपड़े और कंबल बनाकर यहां के लोग बेचते हैं और अपनी आजीविका चलाते हैं. चरखा चलाकर सूत कसने का काम घर की महिलाएं करती हैं. बुजुर्गों की परंपरा पर आधारित यह रोजगार या यूं कहें विरासत अब कमजोर होने लगी हैं. कारण यही है कि चरखा काटने और बुनने के बाद भी यहां के लोगों को पूरी मजदूरी तक नहीं मिल पाती. जिला प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधि तक इस गांव की ओर ध्यान नहीं दे रहा है. यही वजह है कि इस गांव के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. चुनावी समर आते ही नेताओं द्वारा बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं लेकिन वह वादे सिर्फ और सिर्फ उनके भाषण तक ही सीमित रह जाते हैं. आज भी लोग शासन प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों से गुहार लगा रहे हैं की हमारी मदद करें. इन सबके बीच भले ही समस्या हो पर यहां के लोग खुश रहते हैं और गर्व साथ इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. इसलिए नहीं कि इनकी जरूरत है बल्कि इसलिए क्योंकि इनके बुजुर्गों ने जो पाठ महात्मा गांधी से सीखा था उसका दायित्व इनके कंधे पर है यह इनके लिए धरोहर है. यहां के ग्रामीणों का कहना है कि एक कंबल बनाने में 8 से 10 दिन लग जाते हैं जिन्हें बेचने पर ₹400 की आमदनी हो जाती है. इस आमदनी से उनका परिवार चल नहीं पाता है किसी तरीके से दो जून की रोटी इन्हें नसीब हो जाती है. इस गांव में एक प्रशिक्षण केंद्र भी बनाया गया है जो अब खंडार में तब्दील हो चुका है लोग आज भी मशीन या प्रशासनिक सुविधाओं के इंतजार में बैठे हुए हैं ।

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इस मामले को सतना ईटीवी भारत द्वारा जिला कलेक्टर के संज्ञान में लाया गया जिसमें सतना जिला कलेक्टर ने बताया कि रामनगर ब्लाक के सुलखमा गांव में पाल समाज के 100 परिवारों में महात्मा गांधी के आदर्श पर चरखा चलाया जा रहा है जिसके लिए जिला प्रशासन स्तर पर ग्रामीणों को प्रशिक्षण केंद्र, कुटीर उद्योग और लघु उद्योग के माध्यम से सुविधा मुहैया कराई जाएगी ताकि गांव के लोगों को परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा ।



Conclusion:byte --
रामप्रसाद पाल -- स्थानीय निवासी सुलखमा गांव सतना ।
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शिवप्रसाद पाल -- स्थानीय निवासी सुलखमा गांव सतना ।
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रामरहिश पाल -- स्थानीय निवासी सुलखमा गांव सतना ।
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डॉ सतेंद्र सिंह -- कलेक्टर जिला सतना ।
Last Updated : Oct 11, 2019, 7:11 PM IST
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