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गैवीनाथ में विराजमान हैं खंडित शिवलिंग, सावन के पहले सोमवार पर ऐसा रहा मंदिर का नजारा

कोरोना काल के चलते सतना के प्रसिद्ध गैवीनाथ मंदिर में शिवभक्तों की संख्या में भारी कमी आई है. ये देश का इकलौता ऐसा खंडित शिवलिंग है जिसकी पूजा की जाती है.

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गैवीनाथ धाम
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Published : Jul 6, 2020, 7:04 PM IST

सतना। मध्यप्रदेश के सतना जिला मुख्यालय से तकरीबन 35 किलोमीटर दूर स्थित बिरसिंहपुर कस्बे में ऐतिहासिक गैवीनाथ मंदिर है. यह मंदिर सैकड़ों सालों से लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र बना हुआ है. लेकिन कोरोना काल के चलते श्रावण मास में इस देव स्थल पर लगनी वाली श्रद्धालुओं की भीड़ इस बार कम हो गई है.

गैवीनाथ धाम

मंदिर में सुरक्षा व्यवस्था के तमाम इंतजाम

कोरोना काल के मद्देनजर मंदिर परिसर में सेनिटाइजर की व्यवस्था की गई है. हाथ सेनिटाइज करने के बाद ही मंदिर में प्रवेश मिलता है. इसके अलावा मंदिर में एक साथ दो-दो श्रद्धालुओं को अंदर भेजा रहा है. साथ ही भगवान शिव को जल चढ़ाने की व्यवस्था में बदलाव किया गया है. शिवलिंग के सामने एक पात्र रखा गया है, जिसमें एक पाइप लगाया है. श्रद्धालु इस पात्र में जल अर्पित करते हैं, जो पाइप के जरिए शिवलिंग तक पहुंच जाता है.

पदम पुराण में मंदिर का वर्णन

ऐसी मान्यता है कि यहां मन्दिर में लोगों की मुरादें पूरी होती हैं. पूरे विश्व में केवल इसी मंदिर में खंडित शिवलिंग की पूजा होती है. इस मंदिर का वर्णन पदम पुराण के पाताल खंड में भी मिलता है.

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेतायुग में यहां राजा वीर सिंह का राज्य हुआ करता था और तब बिरसिंहपुर नगर का नाम देवपुर था. राजा वीर सिंह भगवान महाकाल को जल चढ़ाने घोड़े पर सवार होकर उज्जैन दर्शन करने जाते थे. वर्षों तक यह सिलसिला चलता रहा. इस तरह राजा वृद्ध हो गए और उज्जैन जाने में उन्हें परेशानी होने लगी. बताया जाता है, एक दिन भगवान महाकाल ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिया और देवपुर में दर्शन देने की बात कही.

इसके बाद नगर के गैवी यादव नामक व्यक्ति घर में एक घटना सामने आई. घर के चूल्हे से रात को शिवलिंग रूप निकलता, जिसे यादव की मां मूसल से ठोक कर अंदर कर देती. कई दिनों तक यही क्रम चलता रहा. एक दिन महाकाल फिर से राजा को स्वप्न में आए और कहा कि मैं तुम्हारी पूजा व निष्ठा से प्रसन्न होकर तुम्हारे नगर में निकलना चाहता हूं, लेकिन गैवी यादव मुझे निकलने नहीं देता. इसके बाद राजा ने गैवी यादव को बुलाया और स्वप्न की बात बताई. जिसके बाद जगह को खाली कराया गया, जहां शिवलिंग निकला. फिर राजा ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया, महाकाल के ही कहने पर शिवलिंग का नाम गैवीनाथ रख दिया. तब से भोलेनाथ को गैवीनाथ के नाम से जाना जाता है.

कहा जाता है, जो व्यक्ति महाकाल के दर्शन करने नहीं जा सकता, वे बिरसिंहपुर के गैवीनाथ भगवान का दर्शन कर लें, पुण्य उतना ही मिलेगा. वैसे तो हर सोमवार को हजारों भक्त पहुंचकर गैवीनाथ की पूजाकर मन्नत मांगते है, लेकिन सावन के महीने की बात ही अलग होती है. लेकिन कोरोना वायरस श्रद्धालुओं और भगवान के बीच दीवार बनकर खड़ा है. जिसके चलते सावन के महीने में होने वाली शिवभक्तों की भीड़ में भारी कमी आई है.

सतना। मध्यप्रदेश के सतना जिला मुख्यालय से तकरीबन 35 किलोमीटर दूर स्थित बिरसिंहपुर कस्बे में ऐतिहासिक गैवीनाथ मंदिर है. यह मंदिर सैकड़ों सालों से लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र बना हुआ है. लेकिन कोरोना काल के चलते श्रावण मास में इस देव स्थल पर लगनी वाली श्रद्धालुओं की भीड़ इस बार कम हो गई है.

गैवीनाथ धाम

मंदिर में सुरक्षा व्यवस्था के तमाम इंतजाम

कोरोना काल के मद्देनजर मंदिर परिसर में सेनिटाइजर की व्यवस्था की गई है. हाथ सेनिटाइज करने के बाद ही मंदिर में प्रवेश मिलता है. इसके अलावा मंदिर में एक साथ दो-दो श्रद्धालुओं को अंदर भेजा रहा है. साथ ही भगवान शिव को जल चढ़ाने की व्यवस्था में बदलाव किया गया है. शिवलिंग के सामने एक पात्र रखा गया है, जिसमें एक पाइप लगाया है. श्रद्धालु इस पात्र में जल अर्पित करते हैं, जो पाइप के जरिए शिवलिंग तक पहुंच जाता है.

पदम पुराण में मंदिर का वर्णन

ऐसी मान्यता है कि यहां मन्दिर में लोगों की मुरादें पूरी होती हैं. पूरे विश्व में केवल इसी मंदिर में खंडित शिवलिंग की पूजा होती है. इस मंदिर का वर्णन पदम पुराण के पाताल खंड में भी मिलता है.

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेतायुग में यहां राजा वीर सिंह का राज्य हुआ करता था और तब बिरसिंहपुर नगर का नाम देवपुर था. राजा वीर सिंह भगवान महाकाल को जल चढ़ाने घोड़े पर सवार होकर उज्जैन दर्शन करने जाते थे. वर्षों तक यह सिलसिला चलता रहा. इस तरह राजा वृद्ध हो गए और उज्जैन जाने में उन्हें परेशानी होने लगी. बताया जाता है, एक दिन भगवान महाकाल ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिया और देवपुर में दर्शन देने की बात कही.

इसके बाद नगर के गैवी यादव नामक व्यक्ति घर में एक घटना सामने आई. घर के चूल्हे से रात को शिवलिंग रूप निकलता, जिसे यादव की मां मूसल से ठोक कर अंदर कर देती. कई दिनों तक यही क्रम चलता रहा. एक दिन महाकाल फिर से राजा को स्वप्न में आए और कहा कि मैं तुम्हारी पूजा व निष्ठा से प्रसन्न होकर तुम्हारे नगर में निकलना चाहता हूं, लेकिन गैवी यादव मुझे निकलने नहीं देता. इसके बाद राजा ने गैवी यादव को बुलाया और स्वप्न की बात बताई. जिसके बाद जगह को खाली कराया गया, जहां शिवलिंग निकला. फिर राजा ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया, महाकाल के ही कहने पर शिवलिंग का नाम गैवीनाथ रख दिया. तब से भोलेनाथ को गैवीनाथ के नाम से जाना जाता है.

कहा जाता है, जो व्यक्ति महाकाल के दर्शन करने नहीं जा सकता, वे बिरसिंहपुर के गैवीनाथ भगवान का दर्शन कर लें, पुण्य उतना ही मिलेगा. वैसे तो हर सोमवार को हजारों भक्त पहुंचकर गैवीनाथ की पूजाकर मन्नत मांगते है, लेकिन सावन के महीने की बात ही अलग होती है. लेकिन कोरोना वायरस श्रद्धालुओं और भगवान के बीच दीवार बनकर खड़ा है. जिसके चलते सावन के महीने में होने वाली शिवभक्तों की भीड़ में भारी कमी आई है.

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