सतना। जिले के मझगवां तहसील में आने वाला पिंडरा गांव 1947 में राजा रघुवंश प्रताप की जागीर थी. जहां से क्रांति की ऐसी चिंगारी उठी थी जो पूरे विंध्य में अंग्रेजों के खिलाफ अंग्रेजों के खिलाफ ज्वाला बनकर भड़क उठी. रघुवंश प्रताप के दो भाई कुंवर सिंह और अमर सिंह के नेतृत्व में अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए गांव के लोगों को प्रशिक्षण दिया गया.
देखते ही देखते गांव के लोगों में क्रांति की ज्वाला का ऐसा संचार हुआ कि उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ वगावत का झंडा बुलंद करते हुए युद्ध छेड़ दिया, पिंडरा गांव के रणबाकुरों ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए. इस बात से नाराज अंग्रेजी सैना ने पिंडरा गांव के घेरकर हमला कर दिया. अंग्रेजों के इस हमले में गांव के कई लोग मारे गए.
इस घटना के बाद गांव के क्रांतिकारी दल में आक्रोश फैल गया और गांव के बहादुरों ने हार नहीं मानी. पिंडरा के लोगों ने 12 अलग-अलग मोर्चों में तैनात होकर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध तेज कर दिया. यह युद्ध कई महीनों तक चला जिसमें पिंडरा के 150 से भी ज्यादा सपूतों ने अपनी शहादत देकर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए.
लेकिन अफसोस देश की आजादी में इतना अमूल्य योगदान देने के बाद भी पिंडरा गांव आजादी के इतिहास में गुमनाम होकर रह गया. आज भी यह गांव शासन-प्रशासन की सुविधाएं से वंचित नजर आता है. लेकिन इस गांव के लोग आज भी आजादी की लड़ाई में अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते है.
आपको बता दें कि सतना जिले के मझगवां तहसील के पिंडरा गांव के 150 लोगों ने 1857 के जनयुद्ध में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे .यह गांव शहीदों के रोम-रोम से जाना जाता है. लेकिन आज भी इस गांव में शासन-प्रशासन द्वारा सुविधाएं वंचित है. सरकारी आती जाती रहती है लेकिन इस गांव की ओर किसी की नजर नहीं जाते. यही वजह है कि इस गांव के लोग पलायन करने को मजबूर हैं. यह गांव शहीदों का गांव माना जाता है आज भी लोग इस गांव में अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते है.