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आजादी की लड़ाई में पिंडरा गांव के रणबाकुरों ने छुड़ा दिए थे अंग्रेजों के छक्के, 150 क्रांतिकारियों ने दी थी शहादत - सतना जिले का पिंडरा गांव

पूरा देश आजादी की 73वीं वर्षगाठ मना रहा है और भारत के उन वीर सपूतों को याद कर रहा है. जिनकी शहादत के बदले देश को आजादी मिली. सतना जिले के पिंडरा गांव के लोगों ने भी आजादी की इस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. जहां के 150 क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत देकर देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

पिंडरा गांव के रणबाकुरों ने छुड़ा दिए थे अंग्रेजों के छक्के
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Published : Aug 15, 2019, 8:06 PM IST

सतना। जिले के मझगवां तहसील में आने वाला पिंडरा गांव 1947 में राजा रघुवंश प्रताप की जागीर थी. जहां से क्रांति की ऐसी चिंगारी उठी थी जो पूरे विंध्य में अंग्रेजों के खिलाफ अंग्रेजों के खिलाफ ज्वाला बनकर भड़क उठी. रघुवंश प्रताप के दो भाई कुंवर सिंह और अमर सिंह के नेतृत्व में अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए गांव के लोगों को प्रशिक्षण दिया गया.

पिंडरा गांव के रणबाकुरों ने छुड़ा दिए थे अंग्रेजों के छक्के

देखते ही देखते गांव के लोगों में क्रांति की ज्वाला का ऐसा संचार हुआ कि उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ वगावत का झंडा बुलंद करते हुए युद्ध छेड़ दिया, पिंडरा गांव के रणबाकुरों ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए. इस बात से नाराज अंग्रेजी सैना ने पिंडरा गांव के घेरकर हमला कर दिया. अंग्रेजों के इस हमले में गांव के कई लोग मारे गए.

इस घटना के बाद गांव के क्रांतिकारी दल में आक्रोश फैल गया और गांव के बहादुरों ने हार नहीं मानी. पिंडरा के लोगों ने 12 अलग-अलग मोर्चों में तैनात होकर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध तेज कर दिया. यह युद्ध कई महीनों तक चला जिसमें पिंडरा के 150 से भी ज्यादा सपूतों ने अपनी शहादत देकर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए.

लेकिन अफसोस देश की आजादी में इतना अमूल्य योगदान देने के बाद भी पिंडरा गांव आजादी के इतिहास में गुमनाम होकर रह गया. आज भी यह गांव शासन-प्रशासन की सुविधाएं से वंचित नजर आता है. लेकिन इस गांव के लोग आज भी आजादी की लड़ाई में अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते है.

आपको बता दें कि सतना जिले के मझगवां तहसील के पिंडरा गांव के 150 लोगों ने 1857 के जनयुद्ध में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे .यह गांव शहीदों के रोम-रोम से जाना जाता है. लेकिन आज भी इस गांव में शासन-प्रशासन द्वारा सुविधाएं वंचित है. सरकारी आती जाती रहती है लेकिन इस गांव की ओर किसी की नजर नहीं जाते. यही वजह है कि इस गांव के लोग पलायन करने को मजबूर हैं. यह गांव शहीदों का गांव माना जाता है आज भी लोग इस गांव में अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते है.

सतना। जिले के मझगवां तहसील में आने वाला पिंडरा गांव 1947 में राजा रघुवंश प्रताप की जागीर थी. जहां से क्रांति की ऐसी चिंगारी उठी थी जो पूरे विंध्य में अंग्रेजों के खिलाफ अंग्रेजों के खिलाफ ज्वाला बनकर भड़क उठी. रघुवंश प्रताप के दो भाई कुंवर सिंह और अमर सिंह के नेतृत्व में अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए गांव के लोगों को प्रशिक्षण दिया गया.

पिंडरा गांव के रणबाकुरों ने छुड़ा दिए थे अंग्रेजों के छक्के

देखते ही देखते गांव के लोगों में क्रांति की ज्वाला का ऐसा संचार हुआ कि उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ वगावत का झंडा बुलंद करते हुए युद्ध छेड़ दिया, पिंडरा गांव के रणबाकुरों ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए. इस बात से नाराज अंग्रेजी सैना ने पिंडरा गांव के घेरकर हमला कर दिया. अंग्रेजों के इस हमले में गांव के कई लोग मारे गए.

इस घटना के बाद गांव के क्रांतिकारी दल में आक्रोश फैल गया और गांव के बहादुरों ने हार नहीं मानी. पिंडरा के लोगों ने 12 अलग-अलग मोर्चों में तैनात होकर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध तेज कर दिया. यह युद्ध कई महीनों तक चला जिसमें पिंडरा के 150 से भी ज्यादा सपूतों ने अपनी शहादत देकर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए.

लेकिन अफसोस देश की आजादी में इतना अमूल्य योगदान देने के बाद भी पिंडरा गांव आजादी के इतिहास में गुमनाम होकर रह गया. आज भी यह गांव शासन-प्रशासन की सुविधाएं से वंचित नजर आता है. लेकिन इस गांव के लोग आज भी आजादी की लड़ाई में अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते है.

आपको बता दें कि सतना जिले के मझगवां तहसील के पिंडरा गांव के 150 लोगों ने 1857 के जनयुद्ध में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे .यह गांव शहीदों के रोम-रोम से जाना जाता है. लेकिन आज भी इस गांव में शासन-प्रशासन द्वारा सुविधाएं वंचित है. सरकारी आती जाती रहती है लेकिन इस गांव की ओर किसी की नजर नहीं जाते. यही वजह है कि इस गांव के लोग पलायन करने को मजबूर हैं. यह गांव शहीदों का गांव माना जाता है आज भी लोग इस गांव में अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते है.

Intro:एंकर --
सन 1857 में अंग्रेजो के खिलाफ जो जनयुद्ध लड़ा गया था । उसमें सतना जिले का भी व्यापक योगदान है । सतना जिले के मैहर,नागौद, चित्रकूट, जसो, बरौंधा, कोठी और पिंडरा के हजारों लोगों ने ना केवल अंग्रेजों से मुठभेड़ की बल्कि उन्हें पराजय का स्वाद भी चखाया । इस जन्म में तत्कालीन पिंडरा का योगदान सर्वाधिक गौरवपूर्ण और रोमांचक है ।इस गांव के लोगों की बहादुरी और देशप्रेम अद्वितीय है ।हमारी उदासीनता के चलते पिंडरा के करीब 150 शहीदों की शौर्य गाथा इतिहास में आज तक उचित जगह नहीं मिली । किंतु पिंडरा की धरती में हुए शहीदों के लहू की हर बूंद तन मन में रोमांच का संचार करती है ।


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जी हां हम बात कर रहे हैं, चित्रकूट के प्रवेश द्वार मझगवां से 7 किलोमीटर दूर पयस्वनी नदी के किनारे बसे पिंडरा गांव की आबादी सन 1857 में करीब 4 हजार की थी । जो आज बढ़कर करीब 10 हजार हो गई है। आज यह गांव सतना जिले के मझगवां तहसील में स्थित है । 1947 के पहले यह गांव रघुवंश प्रताप की जागीर थी जो स्वयं अंग्रेजों के विरुद्ध थे 1857 के महा सफर की तैयारी में मनकहरी के ठाकुर रणमत सिंह युद्ध के लिए बिहार से बुलाए गए क्रांतिकारी कुंवर सिंह और उनके छोटे भाई अमर सिंह जो अपने साथियों के साथ पूरी तैयारी से इसी गांव में आए थे । जिसके कारण पिंडरा गांव की जनता में जागृति उत्पन्न हुई ।

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सर्वप्रथम गांव में क्रांतिकारी दल का गठन किया गया और अमर सिंह के नेतृत्व में उन्हें छापामार युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया । इसके तुरंत बाद अंग्रेजों से युद्ध शुरू हो गया । जिसमें कई लोग मारे गए कुछ को जिंदा पकड़ लिया गया जिन्हें पेड़ में टांग कर यातना देकर मारा गया । इस घटना के बाद अंग्रेजों की इलाहाबाद और बांदा में पड़ी अंग्रेजों ने दबाव बनाने के लिए पिंडरा गांव को घेर लिया । तभी क्रांतिकारी दल ने पयस्वनी नदी को पार कर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया जिसमें कई अंग्रेज सैनिक मारे गए दूसरे दिन अंग्रेजों ने तोप गोले लेकर गांव में हमला बोल दिया था । इस घटना के बाद गांव के क्रांतिकारी दल में आक्रोश फैल गया और उन्होंने छापामार युद्ध और तेज कर दिया इसके बाद अंग्रेजों की सेना ने इलाहाबाद से सेना बुला गांव में भीषण गोलाबारी की जिसमें सैकड़ों स्त्री-पुरुष और बच्चे मारे गए । जिनके नाम आज भी अज्ञात हैं। इस लड़ाई में नाम 135 क्रांतिकारियों की राम खोजे जा सके हैं ।
कुछ दिनों बाद अंग्रेजों ने गांव में फिर से हमला बोल पूरे गांव को आग के हवाले कर दिया इसके बाद भी गांव के बहादुरों ने हार नहीं मानी और 12 अलग-अलग मोर्चे में तैनात होकर अंग्रेजों से मुठभेड़ की तैयारी करते रहे और आज यही 12 मोर्चे 12 टोले कहलाते हैं ।

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क्रांतिकारियों के नेता ठाकुर रणवीर सिंह कुंवर सिंह अमर सिंह जसो होते हुए अजय गढ़ में अंग्रेजी सेना को परास्त करते हुए नौगांव छावनी को तहस-नहस कर दिया इसके बाद चित्रकूट के रास्ते कोठी वापस लौटने की योजना बना रहे थे। तभी अंग्रेजी सेना ने उनका पीछा शुरू कर दिया । ठाकुर रणमत सिंह ने पिंडरा गांव में अपने क्रांतिकारी दल को पयस्वनी नदी के किनारे अंग्रेजी सेना को उलझाने और रोकने के लिए बोल रीवा निकल गए । इधर अंग्रेजी सेना के ठीक निशाने में आते ही क्रांतिकारी दल ने उन पर आक्रमण कर दिया इस लड़ाई में कई अंग्रेज सैनिक मारे गए और घायल हुए । इस लड़ाई में 38 क्रांतिकारी शहीदों के नाम ही प्राप्त कर सकें। इस छापामार युद्ध में पराजय से शर्मिंदा होकर जर्नल लूगार्ड हीन भावना से ग्रस्त होकर इस्तीफा देकर लंदन भाग गया। अपनी क्रांतिकारी परंपरा को ध्यान में रखते हुए यहां के नागरिकों ने 1930 1940 और 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में खुलकर भाग लिया था ।

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आपको बता दें कि सतना जिले के मझगवां तहसील के पिंडरा गांव के 150 लोगों ने 1857 के जनयुद्ध में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे । यह गांव शहीदों के रोम-रोम से जाना जाता है । लेकिन आज भी इस गांव में शासन-प्रशासन द्वारा सुविधाएं वंचित है। सरकारी आती जाती रहती है लेकिन इस गांव की ओर किसी की नजर नहीं जाते । यही वजह है कि इस गांव के लोग पलायन करने को मजबूर हैं। यह गांव शहीदों का गांव माना जाता है आज भी लोग इस गांव में अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते है ।


Conclusion:byte --
रामकुमार प्रजापति -- स्थानीय निवासी पिंडरा।
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अनिल द्विवेदी -- स्थानीय निवासी पिंडरा।
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विमल कुमार -- स्थानीय निवासी पिंडरा।
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बसंत लाल द्विवेदी -- स्थानीय निवासी पिंडरा।
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शिवकुमार -- स्थानीय निवासी पिंडरा।
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