सतना। कुपोषण यानी एक ऐसा कंलक, जो देश के दिल यानी मध्यप्रदेश पर इस तरह लगा है कि, तमाम सरकारी प्रयास विफल साबित हो रहे हैं. राज्य का कोई भी अंचल कुपोषण के कहर से बच नहीं पाया. बात अगर विंध्य की करें, तो यहां कुपोषण के गाल में हजारों नौनिहाल समा चुके हैं. सतना जिले में कुपोषण को दूर करने वाली सरकारी योजनाएं धूल फांकती नजर आती हैं. यहां के बाशिंदे बताते हैं कि, उन्हें पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं मिलता, लिहाजा बच्चों को बीमारियां घेर लेती हैं. सड़क नहीं होने से एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंचती. ग्रामीणों का दर्द न तो सरकारी नुमाइंदों को दिखता है और न ही सिसासत के हुक्मरानों को.
सरकार बदली, लेकिन हालात नहीं
सूबे में चाहे बीजेपी की सत्ता रही हो या फिर कांग्रेस की, कुपोषण को दूर करने के लिए किसी ने अब तक ठोस कदम नहीं उठाए, जिसके परिणाम सार्थक आए हों. यही वजह है कि, कुपोषण घटने की बजाए उल्टा बढ़ता गया. शासन- प्रशासन की उदासीनता के चलते हालात बदतर हो चुके हैं. सतना जिले में अकेले करीब 2 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण की जद में है, जिनमें से करीब 4 हजार नौनिहाल अति कुपोषण का शिकार हैं.
बाल अधिकार के लिए रैली से क्या होगा
अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस के अवसर पर सतना चाइल्ड लाइन ने जागरूकता रैली का आयोजन किया. इस रैली का मुख्य उद्देश्य है कि, 1 से 18 वर्ष तक के बच्चों की मदद को लेकर हेल्पलाइन नंबर- 1098 का प्रचार और बाल अधिकारों के प्रति जागरुकता फैलाना था, इसमें जिले के आला अधिकारी शामिल हुए, लेकिन क्या मात्र रैली और बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता से प्रशासन की नाकामयाबी छिप जाएगी.
मुलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
जिले के चित्रकूट विधानसभा का मझगवां क्षेत्र, नागौद विधानसभा का उचेहरा परसमानिया क्षेत्र और मैहर विधानसभा का भदनपुर क्षेत्र, सड़क, पानी, एंबुलेंस की सुविधा तक नहीं पहुंच पाती हैं. यही वजह है कि, सतना जिले के ये क्षेत्र अति कुपोषित माने जाते हैं, जिन्हें रेड जोन में रखा गया है.
रेड जोन में शामिल है मझगवां
ये आंकड़े स्वास्थ्य विभाग और महिला बाल विकास के साझा अभियान की पोल खोल रहे हैं. मध्यप्रदेश शासन ने कुपोषण के मामले में मझगवां क्षेत्र को रेड जोन में रखा है. यहां के हर घर में एक बच्चा कुपोषित है. हालात ये हैं कि, हर साल 400 बच्चों को एनआरसी में भर्ती किया जाता है. इसके बाद भी हालत सुधरने की बजाय उल्टे बदतर होते जा रहे हैं.
अधिकारियों के अलाप
जिले में जगह-जगह एनआरसी केंद्र भी खोले गए हैं, इसके बावजूद हालात सुधारने की वजह बद से बदतर होते जा रहे हैं. कुपोषण की मुख्य वजह आंचलिक क्षेत्रों में ग्रामीणों तक पोषण आहार नहीं पहुंच पाना है. शुद्ध पानी और मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है. ये सारी सुविधाएं यहां पहुंचते-पहुंचते ही दम तोड़ देती हैं. लेकिन अधिकारी है, जो कागजी दांवों की पूर्ती करने में ही जुटे हुए हैं.
सरकारी आंकड़े बता रहे हकीकत
एक तरफ सरकारी आंकड़े कुपोषण के मामले में सतना जिले की हकीकत उजागर कर रहे हैं, तो वहीं अधिकारी अपना-अपना राग अलापने से नहीं चूक रहे. अधिकारियों का दावा है कि, कुपोषण को दूर करने के लिए पूरी कोशिश की जा रही है. लेकिन ये जमीन पर नजर नहीं आ रहा.
कब मिटेगा कुपोषण का कलंक?
अधिकारी भले ही कुछ भी कहें, लेकिन सरकार के तमाम दावे फीके पड़ चुके हैं. अब शासन-प्रशासन को चाहिए की, कुपोषित से सुपोषित बनाने के ऐसे ठोस कदम उठाए जाएं, जिससे कुपोषण के कलंक से मासूम बच्चों को राहत मिल सके.