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नवरात्रि स्पेशल: जानें विश्व प्रसिद्ध मैहर स्थित मां शारदा देवी का इतिहास

मध्यप्रदेश के सतना जिले में स्थित मैहर धाम विश्व प्रसिद्ध है. यह मां भवानी के 51 शक्तिपीठों में से एक है. आदि शक्ति मां शारदा देवी का मंदिर, मैहर नगर के पास विंध्य पर्वत श्रेणियों के मध्य त्रिकूट पर्वत पर स्थित है.मान्यता है कि मां शारदा की पहली पूजा आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी.

Maa Sharada Devi
मां शारदा देवी का मंदिर
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Published : Oct 20, 2020, 12:30 AM IST

सतना। आदि शक्ति मां शारदा देवी का मंदिर, मैहर नगर के समीप विंध्य पर्वत श्रेणियों के मध्य त्रिकूट पर्वत पर स्थित है. यह मां भवानी के 51 शक्तिपीठों में से एक है. ऐसी मान्यता है कि मां शारदा की प्रथम पूजा आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी. मैहर पर्वत का नाम प्राचीन धर्म ग्रंथों में मिलता है. इसका उल्लेख भारत के अन्य पर्वतों के साथ पुराणों में भी आया है. मां शारदा देवी के दर्शन के लिए 1063 सीढ़िया चढ़कर माता के भक्तों मां के दर्शन करने जाते हैं. यहां पर प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी दर्शन करने आते हैं .

मैहर की मां शारदा देवी

मैहर नाम कैसे पड़ा

मैहर स्थित मां शारदा देवी का भव्य मंदिर है जो 52 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माना जाता है, ऐसा माना जाता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी, लेकिन उनकी इच्छा राजा दक्ष को मंजूर नहीं थी, फिर भी माता सती अपनी जीद पर भगवान शिव से विवाह कर लिया, एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया उस यज्ञ में ब्रह्मा विष्णु ईंद्र और अन्य देवी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन यज्ञ में भगवान शंकर को नहीं बुलाया, यज्ञ स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित ना करने का कारण पूछा, इस पर राजा दक्ष ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे, अपमान से दुखी होकर माता सती ने यज्ञ अग्नि कुंड में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी, भगवान शंकर को जब इस बारे में पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया, ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया, जहां भी सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ, ऐसा माना जाता है कि यहां पर भी माता सती का हार गिरा था, जिसकी वजह से मैहर का नाम पहले मां का हार अर्थात माई का हार गिरने से माईहार हो गया जो अप्रभंश होकर मैहर नाम पड़ गया, इसीलिए 52 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ मैहर माँ शारदा देवी के मंदिर को माना गया है .

Maa Sharada Devi
आदि शक्ति

आल्हा को दिया अमर होने का वरदान

ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर आल्हखंड के नायक आल्हा उदल दो सगे भाई मां शारदा के अनन्य उपासक थे. आल्हा उदल ने ही सबसे पहले जंगल के बीच मां शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी, इसके बाद आल्हा में इस मंदिर में 12 साल तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था, माता ने उन्हें प्रसन्न होकर अमर होने का आशीर्वाद दिया था. मां शारदा मंदिर प्रांगण में स्थित फूलमती माता का मंदिर आल्हा की कुल देवी का है, जहां विश्वास किया जाता है कि प्रतिदिवस ब्रम्ह मुहूर्त में स्वयं आल्हा द्वारा मां की पूजा अर्चना की जाती है.

मां की नगरी में आल्हा देव की ख्याति

काला देव के मंदिर परिक्षेत्र में आलापुर ध्यान बना हुआ है. जहां विभिन्न प्रकार के औषधियों के वृक्ष लगाए गए हैं, वहीं पर आल्हा का अखाड़ा भी बना हुआ है. जहां औलादे व्यायाम किया करते थे, जहां आज भी भक्तों को उनकी अनुभूति होती हैं. आल्हा माता के परम भक्त माने जाते हैं, मैहर मां शारदा के मंदिर जो भी बात पूजा करने आते हैं तो वह आल्हा की पूजा-अर्चना अवश्य करते हैं. आल्हा देव के दर्शन के बिना मां शारदा के दर्शन अधूरे माने जाते हैं, विश्व प्रसिद्ध मैहर मां शारदा की नगरी में आल्हा देव की ख्याति अपने आप में एक प्रसिद्ध मंदिर मानी जाती है.

सतना। आदि शक्ति मां शारदा देवी का मंदिर, मैहर नगर के समीप विंध्य पर्वत श्रेणियों के मध्य त्रिकूट पर्वत पर स्थित है. यह मां भवानी के 51 शक्तिपीठों में से एक है. ऐसी मान्यता है कि मां शारदा की प्रथम पूजा आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी. मैहर पर्वत का नाम प्राचीन धर्म ग्रंथों में मिलता है. इसका उल्लेख भारत के अन्य पर्वतों के साथ पुराणों में भी आया है. मां शारदा देवी के दर्शन के लिए 1063 सीढ़िया चढ़कर माता के भक्तों मां के दर्शन करने जाते हैं. यहां पर प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी दर्शन करने आते हैं .

मैहर की मां शारदा देवी

मैहर नाम कैसे पड़ा

मैहर स्थित मां शारदा देवी का भव्य मंदिर है जो 52 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माना जाता है, ऐसा माना जाता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी, लेकिन उनकी इच्छा राजा दक्ष को मंजूर नहीं थी, फिर भी माता सती अपनी जीद पर भगवान शिव से विवाह कर लिया, एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया उस यज्ञ में ब्रह्मा विष्णु ईंद्र और अन्य देवी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन यज्ञ में भगवान शंकर को नहीं बुलाया, यज्ञ स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित ना करने का कारण पूछा, इस पर राजा दक्ष ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे, अपमान से दुखी होकर माता सती ने यज्ञ अग्नि कुंड में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी, भगवान शंकर को जब इस बारे में पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया, ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया, जहां भी सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ, ऐसा माना जाता है कि यहां पर भी माता सती का हार गिरा था, जिसकी वजह से मैहर का नाम पहले मां का हार अर्थात माई का हार गिरने से माईहार हो गया जो अप्रभंश होकर मैहर नाम पड़ गया, इसीलिए 52 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ मैहर माँ शारदा देवी के मंदिर को माना गया है .

Maa Sharada Devi
आदि शक्ति

आल्हा को दिया अमर होने का वरदान

ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर आल्हखंड के नायक आल्हा उदल दो सगे भाई मां शारदा के अनन्य उपासक थे. आल्हा उदल ने ही सबसे पहले जंगल के बीच मां शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी, इसके बाद आल्हा में इस मंदिर में 12 साल तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था, माता ने उन्हें प्रसन्न होकर अमर होने का आशीर्वाद दिया था. मां शारदा मंदिर प्रांगण में स्थित फूलमती माता का मंदिर आल्हा की कुल देवी का है, जहां विश्वास किया जाता है कि प्रतिदिवस ब्रम्ह मुहूर्त में स्वयं आल्हा द्वारा मां की पूजा अर्चना की जाती है.

मां की नगरी में आल्हा देव की ख्याति

काला देव के मंदिर परिक्षेत्र में आलापुर ध्यान बना हुआ है. जहां विभिन्न प्रकार के औषधियों के वृक्ष लगाए गए हैं, वहीं पर आल्हा का अखाड़ा भी बना हुआ है. जहां औलादे व्यायाम किया करते थे, जहां आज भी भक्तों को उनकी अनुभूति होती हैं. आल्हा माता के परम भक्त माने जाते हैं, मैहर मां शारदा के मंदिर जो भी बात पूजा करने आते हैं तो वह आल्हा की पूजा-अर्चना अवश्य करते हैं. आल्हा देव के दर्शन के बिना मां शारदा के दर्शन अधूरे माने जाते हैं, विश्व प्रसिद्ध मैहर मां शारदा की नगरी में आल्हा देव की ख्याति अपने आप में एक प्रसिद्ध मंदिर मानी जाती है.

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