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चित्रकूट में लगा 'गधों का मेला', 300 वर्ष पहले औरंगजेब ने की थी शुरुआत, जानिए रोचक जानकारी

चित्रकूट में दीपावली के दूसरे दिन गधों के मेले का आयोजन हुआ. इस मेले में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के गधों के व्यापारी अपने गधों को बेचने आते है. इस मेले का इतिहास 300 साल पुराना है. मुगल शासक औरंगजेब ने इस मेले की शुरुआत की थी.

donkey fair organized
गधों के मेले का आयोजन
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Published : Nov 6, 2021, 6:14 PM IST

Updated : Nov 6, 2021, 6:38 PM IST

चित्रकूट: चित्रकूट में देश का ऐतिहासिक गधा मेला लगाया गया है. इस मेले का आयोजन मध्यप्रदेश की सतना जिला पंचायत करवाती है. ऐतिहासिक गधा मेले की शुरुआत 300 वर्ष पहले मुगल शासक औरंगजेब ने की थी. इस मेले को दीपदान मेला भी कहा जाता है. बताया जाता है कि जब औरंगजेब चित्रकूट के मंदिरों को तोड़ने पहुंचा था और उसके घोड़े और खच्चर बीमार हो गए थे. तब दीपावली के बाद लगातार पांच दिनों तक इस मेले में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कई जिलों से गधों के व्यापारी यहां पहुंचे और व्यापार किया. यहां गधों की कीमत लाखों रुपए होती है.

चित्रकूट में लगा 'गधों का मेला'

फिल्मी सितारों के नाम पर गधों का नाम

चित्रकूट जिले में दीपदान मेले का शनिवार को चौथा दिन था. दीपदान मेले में दिवाली के दूसरे दिन मंदाकिनी नदी के किनारे ऐतिहासिक गधा मेला लगता है. यह मेला औरंगजेब के जमाने से लगता चला आ रहा है. इसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत अलग-अलग प्रांतों के व्यापारी गधों को बेचने और खरीदने आते हैं. गधों का नाम फिल्मी सितारों के नाम पर रखा जाता है. यहां अमिताभ बच्चन, सलमान, शाहरुख आदि के नामों की बोली लगती है. लाखों की संख्या में लोग इस मेले में पहुंचते हैं.

लाखों रुपए होती है गधों की कीमत

धार्मिक नगरी चित्रकूट में गधा मेले के कारण रौनक है. मंदाकिनी नदी के किनारे हजारों की संख्या में गधों और खच्चरों का मेला लगा है. मंदाकिनी नदी के किनारे यह मेला लगता है. इस​ मेले की शुरुआत मुगल बादशाह औरंगजेब ने की थी. औरंगजेब ने चित्रकूट के इसी मेले से अपनी सेना के बेड़े में गधों और खच्चरों को शामिल किया था. इस मेले में करीब एक लाख रुपये तक के गधे बिकते हैं. मुगल काल में शुरू हुआ यह मेला सुविधाओं के अभाव में अब लगभग खत्म होने की कगार पर है.

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मेले में पीने के पानी की नहीं है व्यवस्था

नदी के किनारे भीषण गंदगी में लगने वाले इस मेले में व्यापारियों को न तो पीने का पानी मिल रहा है और न ही छाया. पांच दिन चलने वाले गधा मेले में सुरक्षा के लिए होमगार्ड के जवान भी नहीं रहते हैं. वहीं व्यापारियों के जानवर बिकें या न बिकें ठेकेदार उनसे पैसे वसूल लेते हैं. इन हालात में ऐतिहासिक गधा मेला अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. यहां धीरे-धीरे व्यापारियों का आना कम हो रहा है.

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व्यापारियों ने बताया कि मेले में ठेकेदार उनसे 30 रुपये प्रति खूंटा जानवर के बांधने के लिए लेते हैं. वहीं प्रति जानवर एंट्री फीस 500 रुपये ली जाती है. इसके एवज में व्यापारियों को कोई सुविधा नहीं दी जाती हैं. व्यापारी इसे अवैध वसूली बताते हैं. वहीं यहां पुहंचे व्यापारी ने बताया कि उसके दो खच्चरों की कीमत 1 लाख 20 हजार मिल रही है ओर वो 1 लाख 40 हजार रुपये मांग रहा है.

चित्रकूट: चित्रकूट में देश का ऐतिहासिक गधा मेला लगाया गया है. इस मेले का आयोजन मध्यप्रदेश की सतना जिला पंचायत करवाती है. ऐतिहासिक गधा मेले की शुरुआत 300 वर्ष पहले मुगल शासक औरंगजेब ने की थी. इस मेले को दीपदान मेला भी कहा जाता है. बताया जाता है कि जब औरंगजेब चित्रकूट के मंदिरों को तोड़ने पहुंचा था और उसके घोड़े और खच्चर बीमार हो गए थे. तब दीपावली के बाद लगातार पांच दिनों तक इस मेले में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कई जिलों से गधों के व्यापारी यहां पहुंचे और व्यापार किया. यहां गधों की कीमत लाखों रुपए होती है.

चित्रकूट में लगा 'गधों का मेला'

फिल्मी सितारों के नाम पर गधों का नाम

चित्रकूट जिले में दीपदान मेले का शनिवार को चौथा दिन था. दीपदान मेले में दिवाली के दूसरे दिन मंदाकिनी नदी के किनारे ऐतिहासिक गधा मेला लगता है. यह मेला औरंगजेब के जमाने से लगता चला आ रहा है. इसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत अलग-अलग प्रांतों के व्यापारी गधों को बेचने और खरीदने आते हैं. गधों का नाम फिल्मी सितारों के नाम पर रखा जाता है. यहां अमिताभ बच्चन, सलमान, शाहरुख आदि के नामों की बोली लगती है. लाखों की संख्या में लोग इस मेले में पहुंचते हैं.

लाखों रुपए होती है गधों की कीमत

धार्मिक नगरी चित्रकूट में गधा मेले के कारण रौनक है. मंदाकिनी नदी के किनारे हजारों की संख्या में गधों और खच्चरों का मेला लगा है. मंदाकिनी नदी के किनारे यह मेला लगता है. इस​ मेले की शुरुआत मुगल बादशाह औरंगजेब ने की थी. औरंगजेब ने चित्रकूट के इसी मेले से अपनी सेना के बेड़े में गधों और खच्चरों को शामिल किया था. इस मेले में करीब एक लाख रुपये तक के गधे बिकते हैं. मुगल काल में शुरू हुआ यह मेला सुविधाओं के अभाव में अब लगभग खत्म होने की कगार पर है.

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मेले में पीने के पानी की नहीं है व्यवस्था

नदी के किनारे भीषण गंदगी में लगने वाले इस मेले में व्यापारियों को न तो पीने का पानी मिल रहा है और न ही छाया. पांच दिन चलने वाले गधा मेले में सुरक्षा के लिए होमगार्ड के जवान भी नहीं रहते हैं. वहीं व्यापारियों के जानवर बिकें या न बिकें ठेकेदार उनसे पैसे वसूल लेते हैं. इन हालात में ऐतिहासिक गधा मेला अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. यहां धीरे-धीरे व्यापारियों का आना कम हो रहा है.

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व्यापारियों ने बताया कि मेले में ठेकेदार उनसे 30 रुपये प्रति खूंटा जानवर के बांधने के लिए लेते हैं. वहीं प्रति जानवर एंट्री फीस 500 रुपये ली जाती है. इसके एवज में व्यापारियों को कोई सुविधा नहीं दी जाती हैं. व्यापारी इसे अवैध वसूली बताते हैं. वहीं यहां पुहंचे व्यापारी ने बताया कि उसके दो खच्चरों की कीमत 1 लाख 20 हजार मिल रही है ओर वो 1 लाख 40 हजार रुपये मांग रहा है.

Last Updated : Nov 6, 2021, 6:38 PM IST
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