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बुंदेलखंड का प्रसिद्ध 'बरेदी नृत्य', पारंपरिक वेशभूषा पहनकर दी जाती हैं शुभकामनाएं

बुंदेलखंड अपनी परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर के लिए विश्व प्रसिद्ध है. इन्हीं में से एक है बुंदेलखंड का बरेदी नृत्य. इस पारंपरिक लोकनृत्य में ग्वाले दीपावली के दूसरे दिन पारंपरिक वेशभूषा पहनकर और लोक गीत गाकर लोगों को शुभकामनाएं देते हैं.

बुंदेलखंड का प्रसिद्ध लोक नृत्य 'बरेदी नृत्य'
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Published : Nov 5, 2019, 3:36 PM IST

सागर। बुंदेलखंड का बरेदी नृत्य विश्व प्रसिद्ध है. अहीर यानि ग्वाले जाति के लोग दिवाली के दूसरे दिन पारंपरिक वेशभूषा में लोकगीत गाकर लोगों को त्योहार की शुभकामनाएं देते हैं. कहा जाता है कि इस नृत्य की परंपरा द्वापर युग में शुरू हुई, जब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया और गोकुल-वृंदावन के लोगों की रक्षा की. इसी दौरान वहां ग्वालों ने इस खुशी में नृत्य किया और तब से बदस्तूर बरेदी नृत्य की परंपरा चली आ रही है.

बुंदेलखंड का प्रसिद्ध लोक नृत्य 'बरेदी नृत्य'

बुंदेलखंड में ग्वाले उन घरों में जाते हैं, जहां के पशुओं को वह दुहने या चराने ले जाते हैं. इस दौरान वह नृत्य करते हुए बुंदेलखंडी भाषा में दिवारी गाकर सबको शुभकामनाएं देते हैं और जिन घरों में भी जाते हैं, वहां से उन्हें उपहार और मिठाईयां दी जाती हैं.

बुंदेलखंड का लोकनृत्य बरेदी प्राचीन परंपरा के रूप में जीवित है, हालांकि समय के साथ इस नृत्य को करने वाले धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं.

सागर। बुंदेलखंड का बरेदी नृत्य विश्व प्रसिद्ध है. अहीर यानि ग्वाले जाति के लोग दिवाली के दूसरे दिन पारंपरिक वेशभूषा में लोकगीत गाकर लोगों को त्योहार की शुभकामनाएं देते हैं. कहा जाता है कि इस नृत्य की परंपरा द्वापर युग में शुरू हुई, जब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया और गोकुल-वृंदावन के लोगों की रक्षा की. इसी दौरान वहां ग्वालों ने इस खुशी में नृत्य किया और तब से बदस्तूर बरेदी नृत्य की परंपरा चली आ रही है.

बुंदेलखंड का प्रसिद्ध लोक नृत्य 'बरेदी नृत्य'

बुंदेलखंड में ग्वाले उन घरों में जाते हैं, जहां के पशुओं को वह दुहने या चराने ले जाते हैं. इस दौरान वह नृत्य करते हुए बुंदेलखंडी भाषा में दिवारी गाकर सबको शुभकामनाएं देते हैं और जिन घरों में भी जाते हैं, वहां से उन्हें उपहार और मिठाईयां दी जाती हैं.

बुंदेलखंड का लोकनृत्य बरेदी प्राचीन परंपरा के रूप में जीवित है, हालांकि समय के साथ इस नृत्य को करने वाले धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं.

Intro:सागर बुंदेलखंड अंचल अपनी परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर के लिए विश्व प्रसिद्ध है इन्हीं में से एक है बुंदेलखंड का बरेदी नृत्य। इस पारंपरिक लोकनृत्य में अहीर यानी कि ग्वाले दीपावली के दूसरे दिन से पूर्णमासी तक कृष्ण का रूप धर मोर मुकुट लगाकर पारंपरिक वेशभूषा पहनकर घर घर जाकर इस नृत्य को करते हैं और लोक गीत के रूप में लोगों को शुभकामनाएं देते हैं

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Body:कहा जाता है कि इस नृत्य की परंपरा द्वापर युग से शुरू हुई जब द्वापर में भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया और सब की रक्षा की इसी दौरान वहां ग्वालो ने इस खुशी में नृत्य किया और तब से बदस्तूर बरेदी नृत्य की परंपरा चली आ रही है।
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बुंदेलखंड में ग्वाले उन घरों में जाते हैं जहां के पशुओं को वह दुहने या चराने ले जाते हैं इस दौरान वह नृत्य करते हुए बुंदेलखंडी भाषा में दिवारी गाकर सबको शुभकामनाएं देते हैं और जिन घरों में भी जाते हैं वहां से उन्हें उपहार और मिठाइयां दी जाती हैं

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Conclusion:बुंदेलखंड काहे का सांस्कृतिक लोक नृत्य बहुत प्राचीन परंपरा के रूप में जीवित है हालांकि समय के साथ साथ इस नृत्य को करने वाले धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं
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