सागर। बुंदेलखंड का बरेदी नृत्य विश्व प्रसिद्ध है. अहीर यानि ग्वाले जाति के लोग दिवाली के दूसरे दिन पारंपरिक वेशभूषा में लोकगीत गाकर लोगों को त्योहार की शुभकामनाएं देते हैं. कहा जाता है कि इस नृत्य की परंपरा द्वापर युग में शुरू हुई, जब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया और गोकुल-वृंदावन के लोगों की रक्षा की. इसी दौरान वहां ग्वालों ने इस खुशी में नृत्य किया और तब से बदस्तूर बरेदी नृत्य की परंपरा चली आ रही है.
बुंदेलखंड में ग्वाले उन घरों में जाते हैं, जहां के पशुओं को वह दुहने या चराने ले जाते हैं. इस दौरान वह नृत्य करते हुए बुंदेलखंडी भाषा में दिवारी गाकर सबको शुभकामनाएं देते हैं और जिन घरों में भी जाते हैं, वहां से उन्हें उपहार और मिठाईयां दी जाती हैं.
बुंदेलखंड का लोकनृत्य बरेदी प्राचीन परंपरा के रूप में जीवित है, हालांकि समय के साथ इस नृत्य को करने वाले धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं.