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यहां मौजूद सूर्य मंदिर खोता जा रहा है अपना अस्तित्व, सरकार नहीं दे रही ध्यान

छठ पूजा के अवसर पर सूर्य की उपासना की जाती है. वहीं सागर जिले के रहली विधानसभा में स्थित सूर्य मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में अपना अस्तित्व खोता नजर आ रहा है.

रहली विधानसभा में स्थित सूर्य मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में
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Published : Nov 1, 2019, 8:03 PM IST

सागर। भारतवर्ष में आदिकाल से सूर्य उपासना की जाती रही है. वर्तमान में चल रहे छठ पूजा में भी सूर्य की उपासना की जाती है, लेकिन देशभर में सूर्य मंदिर विरले और कोणार्क सूर्य मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं. वहीं सागर जिले के रहली विधानसभा में स्थित सूर्य मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में अपना अस्तित्व खो रहा है.

रहली विधानसभा में स्थित सूर्य मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में


रहली विधानसभा क्षेत्र के सुनार नदी के किनारे बने सूर्य मंदिर का वैसे तो कोई प्रमाणिक इतिहास नहीं है, लेकिन जानकारों के मुताबिक ये 9वीं से 10वीं शताब्दी के बीच बनाया गया है. इतिहास के पन्नों के अनुसार इस दौरान बुंदेलखंड क्षेत्र और रहली के आसपास गुप्त शासकों के अधीन था. इस दौरान 8वीं सदी से 11वीं सदी तक क्षेत्र में स्थापत्य कला और मूर्तिकला का समुचित विकास हुआ. यही कारण है कि इस क्षेत्र में आज भी बड़ी मात्रा में प्राचीन काल की मूर्तियां खंडित और क्षतिग्रस्त अवस्था में बहुतायत पाई जाती है.

सागर। भारतवर्ष में आदिकाल से सूर्य उपासना की जाती रही है. वर्तमान में चल रहे छठ पूजा में भी सूर्य की उपासना की जाती है, लेकिन देशभर में सूर्य मंदिर विरले और कोणार्क सूर्य मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं. वहीं सागर जिले के रहली विधानसभा में स्थित सूर्य मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में अपना अस्तित्व खो रहा है.

रहली विधानसभा में स्थित सूर्य मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में


रहली विधानसभा क्षेत्र के सुनार नदी के किनारे बने सूर्य मंदिर का वैसे तो कोई प्रमाणिक इतिहास नहीं है, लेकिन जानकारों के मुताबिक ये 9वीं से 10वीं शताब्दी के बीच बनाया गया है. इतिहास के पन्नों के अनुसार इस दौरान बुंदेलखंड क्षेत्र और रहली के आसपास गुप्त शासकों के अधीन था. इस दौरान 8वीं सदी से 11वीं सदी तक क्षेत्र में स्थापत्य कला और मूर्तिकला का समुचित विकास हुआ. यही कारण है कि इस क्षेत्र में आज भी बड़ी मात्रा में प्राचीन काल की मूर्तियां खंडित और क्षतिग्रस्त अवस्था में बहुतायत पाई जाती है.

Intro:सागर भारतवर्ष में आदिकाल से सूर्य उपासना की जाती रही है वर्तमान में चल रहे छठ पूजा में भी सूर्य की ही उपासना की जाती है हालांकि देशभर में विशेषकर सूर्य मंदिर विरले ही है जहां एक ओर कोर्णाक सूर्य मंदिर विश्व प्रसिद्ध है वही सागर जिले के रहली विधानसभा में स्थित सूर्य मंदिर जीर्ण शीर्ण अवस्था में अपना अस्तित्व खो रहा है|

रहली विधानसभा क्षेत्र के सुनार नदी के किनारे बने सूर्य मंदिर का वैसे तो कोई प्रमाणिक इतिहास नहीं है लेकिन जानकारों के मुताबिक यह 9वी से दसवीं शताब्दी के बीच बनाया गया इतिहास के पन्नों के अनुसार इस दौरान बुंदेलखंड क्षेत्र और रहली के आसपास गुप्त शासकों के अधीन था इस दौरान आठवीं सदी से 11 वीं सदी तक क्षेत्र में स्थापत्य कला और मूर्तिकला का समुचित विकास हुआ यही वजह है कि इस क्षेत्र में आज भी बड़ी मात्रा में प्राचीन काल की मूर्तियां खंडित और क्षतिग्रस्त अवस्था में बहुतायत पाई जाती है

बाइट पुरातत्व विभाग कर्मचारी

बाइट मुकेश अग्निहोत्री स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार




Body:रहली का सूर्य मंदिर स्थानीय तौर पर उतना महत्व नहीं रखता जितना इसका होना चाहिए इससे बात के समय में बना खजुराहो का मंदिर आज विश्व प्रसिद्ध है जबकि रहली का सूर्य मंदिर धीरे-धीरे अपनी पहचान और अवस्था को खोता जा रहा है कुछ वक्त पहले इस मंदिर से मुख्य मूर्ति सूर्य नारायण की चोरी कर तस्कर इसे बेचने की फिराक में ले गए थे हालांकि स्थानीय दबाव के बाद पुलिस की सक्रियता से उत्तर प्रदेश के मथुरा से मूर्ति बरामद कर ली गई कहा जाता है कि चोर इस मूर्ति को करीब सात करोड़ में बेच रहे थे

इस मूर्ति के आसपास चारों तरफ अद्भुत मूर्ति कला का प्रदर्शन करती अन्य मूर्तियां भी स्थापित है जहां शिव पार्वती सहित नाग नागिन की मूर्ति भी विशेष आकर्षण का केंद्र है सूर्य मंदिर के आसपास वैसे तो कई नवनिर्मित मंदिर बन चुके हैं लेकिन यह मंदिर अपने आप में अनूठा है इस मंदिर के साथ नवग्रह की मूर्तियां भी यह कभी स्थापित हुआ करती थी जिसे यहां से सागर विश्वविद्यालय के संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिया गया


Conclusion:वैसे तो साल भर में सूर्य मंदिर में दर्शन और पूजा करने वाले कम ही दर्शन आरती आते हैं और प्रचार-प्रसार के अभाव में इस ऐतिहासिक स्थल का महत्व क्षेत्र तक ही सिमटकर रह गया है हालांकि छठ पूजा के समय यह बहुत से दर्शन आरती दर्शन करने के लिए विशेष तौर पर आते हैं स्थानीय लोगों की मानें तो यदि शासन स्तर पर इस अति प्राचीन महत्व की मूर्ति का प्रचार-प्रसार किया जाए ऑल इसे व्यवस्थित और सुरक्षित किया जाए तो यह खजुराहो की तरह ही विश्व स्तरीय पर्यटन केंद्र बन सकता है
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