सागर। जिले की बंडा विधानसभा सीट की बात करें तो एक तरह से कृषि प्रधान इलाका है. यह अंग्रेजों के जमाने में तहसील हुआ करता था. कभी दस्यु समस्या से पीड़ित रहा ये इलाका, जों काले पत्थर की खदानों के लिए पूरे देश और विदेश तक में मशहूर है. इस इलाके में धामोनी का ऐतिहासिक किला है, जो 1857 के संग्राम का गवाह रहा है और इस किले को जीतने में अंग्रेजों को पसीना छूट गया था. बंडा विधानसभा क्षेत्र में अबार माता का प्रसिद्ध मंदिर है. जहां दूर-दूर से लोग दर्शन करने पहुंचते हैं. जहां तक इस इलाके की बात करें तो कृषि प्रधान इलाका सूखे की समस्या से जूझ रहा है. सिंचाई और पीने के पानी का संकट भी बंडा की पहचान बन चुका है. रोजगार एक बड़ी समस्या है और लोग बीड़ी बनाकर अपनी रोजी रोटी चलाते हैं. जहां तक बंडा विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो कभी भाजपा का गढ़ माने जाने वाली बंडा विधानसभा सीट अब धीरे-धीरे भाजपा के हाथ से खिसकती जा रही है. दरअसल लोधी बाहुल्य इस विधानसभा में 2018 में युवा तरवर सिंह लोधी को टिकट देकर कांग्रेस ने भाजपा की इस सीट को छीन लिया. स्थानीय स्तर पर तरवर सिंह लोधी साफ सुथरी छवि और सहज-सरल मुलाकात के लिए जाने जाते हैं.
विधानसभा चुनाव 2008: विधानसभा चुनाव 2008 में चतुष्कोणीय मुकाबले में भाजपा को हार का सामना करना पडा था. 2008 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी नारायण प्रसाद प्रजापति को 32348 वोट हासिल हुए थे, जो कुल मतदान का 29 फीसदी था और भाजपा के रामरक्षपाल सिंह को 30423 सीटें हासिल हुई थी. जो कुल मतदान का 27 फीसदी था. इस तरह चतुष्कोणीय मुकाबले में भाजपा प्रत्याशी रामरक्षपाल सिंह 1925 वोटों से चुनाव हार गए.
विधानसभा चुनाव 2013: विधानसभा चुनाव 2013 में भाजपा ने अपनी हार का बदला ले लिया था. 2013 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हरवंश सिंह राठौर को 66 हजार 203 वोट हासिल हुए थे. जो कुल मतदान का 46% था. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी नारायण प्रजापति को 48 हजार 223 वोट हासिल हुई थी. जो कुल मतदान का 33% था. इस तरह कांग्रेस प्रत्याशी नारायण प्रजापति 17 हजार 880 वोटों से चुनाव हार गए थे.
विधानसभा चुनाव 2018: विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस ने 2013 में हारी सीट फिर वापस छीन ली. इस बार कांग्रेस ने लोधी बाहुल्य सीट पर युवा चेहरे तरवर सिंह लोधी को मैदान में उतारा और तरवर सिंह ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 84 हजार 456 सीटें हासिल की. जो कुल मतदान का 52% था. वहीं भाजपा के प्रत्याशी हरवंश सिंह राठौर को 60 हजार 292 वोटें हासिल हुई, जो कुल मतदान का 37% था. इस तरह भाजपा प्रत्याशी तरवर सिंह लोधी से 24 हजार 164 वोटों से हार गए थे.
कभी बीजेपी का था गढ़, कांग्रेस ने कर दी सेंधमारी: बंडा विधानसभा की बात करें तो ये विधानसभा जातीय समीकरणों के लिए जानी जाती है. यह लोधी जाति बाहुल्य सीट है. यहां लोधी मतदाताओं की संख्या 38 हजार है. इसके अलावा अनुसूचित जाति और यादव समाज के मतदाता भी जातीय समीकरण बनाने और बिगाड़ने का काम करते हैं, क्योंकि अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या 32 हजार और यादव मतदाता की संख्या 28 हजार के करीब है. इसके अलावा ब्राह्मण 18 हजार, अनुसूचित जाति 18 हजार, जैन समाज 12 हजार, पटेल समाज 7 हजार मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 8 हजार है. 2008 तक बंडा विधानसभा एक तरह से भाजपा का गढ़ थी, क्योंकि यहां पर पूर्व मंत्री स्वर्गीय हरनाम सिंह राठौर का दबदबा था और उन्होंने तीन चुनावों में जीत हासिल की थी. उमा भारती के मुख्यमंत्री रहते हुए हरनाम सिंह राठौर गृहमंत्री भी रहे. मौजूदा स्थिति में कांग्रेस ने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के परिवार से जुडे़ युवा नेता तरवर सिंह लोधी को 2018 में प्रत्याशी बनाया और उन्होंने हरनाम सिंह राठौर के बेटे हरवंश सिंह राठौर को करारी शिकस्त दी. कुल मिलाकर बंडा की बात करें तो लोधी, यादव और अनूसूचित जाति के मतदाता यहां हार जीत तय करते हैं.
- MP Seat Scan Gwalior South: यहां बीजेपी के कई दिग्गज नेता चुनाव लड़ने को तैयार, जानिए ग्वालियर दक्षिण सीट का गणित
- MP Seat Scan Chaurai: चौरई सीट पर बीजेपी ने एक ही चेहरे पर तो कांग्रेस ने 1 ही समाज पर जताया विश्वास, क्या होगा 2023 बदलाव
- MP Seat Scan Bhitarwar: भितरवार कांग्रेस का अभेद किला, जानें क्यों BJP नहीं उतार पाती है दमदार प्रत्याशी
जलसंकट और बेरोजगार और पलायन: बंडा विधानसभा की बात करें तो कृषि प्रधान इस इलाके में सिंचाई के पानी का संकट होने के कारण लोग खेती से अपना जीवन यापन बड़ी मुश्किल से कर पाते हैं. रोजगार का कोई साधन ना होने के कारण बंडा की एक चौथाई आबादी पलायन कर चुकी है. सिंचाई के पानी के संकट खेती का उत्पादन भी प्रभावित होता है. वहीं पीने के पानी की समस्या भी बंडा की प्रमुख समस्या है. खासकर ग्रामीण इलाकों में पानी के लिए लोगों को मीलों परेशान होना पड़ता है. वहीं दूसरी तरफ रोजगार का कोई बडा साधन नहीं है. बंडा में एक फर्टिलाइजर कारखाना लगा हुआ है. जिसमें लोग बीमारियों के डर से काम करने नहीं जाते हैं.
कौन-कौन है दावेदार: फिलहाल जातिगत समीकरण और 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी तरवर सिंह लोधी के प्रदर्शन को देखकर माना जा रहा है कि उनका टिकट दोबारा मिलना तय है, क्योंकि पिछले चुनाव में उन्होंने करीब 24 हजार मतों से भाजपा के तत्कालीन विधायक को हराया था. वहीं बंडा सीट लोधी बाहुल्य होने के कारण उनका टिकट जातिगत समीकरणों के आधार पर तय है. हालांकि पूर्व विधायक नारायण प्रजापति और अन्य दावेदारी कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ भाजपा में पूर्व विधायक हरवंश राठौर, सुधीर यादव, जाहर सिंह, रनजोत सिंह ठाकुर और तृप्ति सिंह कानोनी दावेदारी कर रही है.
क्या कहना है विधायक का: विधायक तरवर सिंह लोधी कहते हैं कि मैं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार से हूं और मेरे परिवार की आस्था कांग्रेस की विचारधारा में है. मेरे पर कांग्रेस ने भरोसा जताया था और युवा उम्मीदवार के तौर पर मैं मैदान में था. 2018 चुनाव में मैनें 24 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी. कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में बंडा के विकास की परिकल्पना कमलनाथ के मार्गदर्शन में तैयार हो रही थी, लेकिन भाजपा की सरकार आते ही बंडा की जनता को परेशान किया जा रहा है. किसान खाद, बीज और सिंचाई के लिए परेशान है, युवा रोजगार के लिए भटक रहा है. विधानसभा क्षेत्र में पानी का बड़ा संकट है. आने वाले चुनावों में फिर जीत हासिल कर बंडा के विकास की इबारत लिखना है.