सागर। मोहन यादव मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण के बाद बहस छिड़ गई है कि आखिर किसको मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली और कौन कैसे जगह बनाने में कामयाब हुआ. मंत्रिमंडल की तस्वीर सामने आते ही बुंदेलखंड में कई इलाकों में निराशा देखने मिल रही है. खासकर सागर जिले में कई दिग्गजों की मंत्री पद की दावेदारी के बीच सिर्फ एक मंत्री पद हासिल हुआ. गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, गोविंद सिंह राजपूत, शैलेंद्र जैन और प्रदीप लारिया के बीच मंत्री पद को लेकर कड़ा मुकाबला था, लेकिन गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह जैसे दिग्गज और नए चेहरे के साथ जातीय आधार पर मंत्री पद का दावा कर रहे शैलेंद्र जैन और प्रदीप लारिया को पीछे करते गोविंद सिंह राजपूत बुंदेलखंड से इकलौते कैबिनेट मंत्री बने हैं.
फिलहाल बुंदेलखंड में दिग्गजों को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने और गोविंद सिंह राजपूत कैसे मंत्रिमंडल में जगह पाने में कामयाब हो गए. यही बहस छिड़ी है. जबकि लगातार नवमीं बार चुनाव जीते गोपाल भार्गव को सबसे वरिष्ठ विधायक होने के बाद भी मंत्री क्यों नहीं बनाया गया. वहीं शिवराज सिंह के करीबी भूपेंद्र सिंह भी मंत्री पद हासिल नहीं कर पाए. जबकि माना यह जा रहा था कि अगर शिवराज समर्थकों को स्थान दिया जाएगा, तो सबसे पहला नाम भूपेंद्र सिंह का होगा. इन सब के बीच गोविंद सिंह राजपूत के सितारे बुलंदी पर थे और मंत्री पद हासिल करने में कामयाब रहे. गोविंद सिंह की सफलता के पीछे सबसे बड़ी वजह केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं. दरअसल सिंधिया के करीबी सिर्फ छह विधायक चुनाव जीते हैं. इसलिए सिंधिया के कोटे से गोविंद सिंह राजपूत को मंत्रिमंडल में जगह बनाना आसान रहा.
लगातार 9 चुनाव जीतने के बाद भी नहीं मिली जगह: मोहन यादव मंत्रिमंडल में बुंदेलखंड से गोपाल भार्गव को जगह ना मिलने की चर्चा सबसे ज्यादा जोरों पर है. जबकि वह मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे थे. रहली विधायक गोपाल भार्गव की बात करें, तो मौजूदा विधानसभा के सबसे वरिष्ठ विधायक हैं. उन्होंने 2023 विधानसभा चुनाव में लगातार 9वां चुनाव जीता है. गोपाल भार्गव 1985 से रहली विधानसभा से चुनाव लड़ते और जीतते आ रहे हैं. 2003 में पहली बार उमा भारती मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बने थे.
इसके बाद बाबूलाल गौर के मंत्रिमंडल और शिवराज सिंह जब तक मुख्यमंत्री रहे. तब तक गोपाल भार्गव मंत्री रहे हैं. 2018 में जब कमलनाथ सरकार बनी थी, तब वरिष्ठता के चलते गोपाल भार्गव को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया. गोपाल भार्गव 2023 विधानसभा चुनाव में सागर संभाग में सर्वाधिक मतों से जीते हैं. उन्होंने अपनी निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस की ज्योति पटेल को 72 हजार 800 मतों से हराया है. मुख्यमंत्री पद के साथ-साथ मंत्री पद पर उनका दावा मजबूत माना जा रहा था, लेकिन पार्टी ने उनकी वरिष्ठता का सम्मान प्रोटेम स्पीकर बनाकर किया और मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी है.
क्या शिवराज सिंह के करीबियों को भी नहीं मिली जगह: गोपाल भार्गव को मंत्रिमंडल में जगह नहीं दिए जाने से राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं, लेकिन सागर जिले से एक और दिग्गज नेता को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई. वह नाम पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह का है. भूपेंद्र सिंह पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सबसे करीबी हैं. जिस तरह पिछले दिनों शिवराज सिंह को दिल्ली बुलाया गया और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात हुई. तो माना जा रहा था कि मोहन यादव मंत्रिमंडल में शिवराज समर्थकों को स्थान मिलेगा, लेकिन आज मोहन यादव के मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण के बाद साफ हो गया कि शिवराज सिंह अपने सबसे करीबी को भी मंत्री नहीं बना पाए.
जबकि भूपेंद्र सिंह गृह एवं परिवहन और नगरीय प्रशासन जैसे विभागों की जिम्मेदारी संभालते रहे हैं. साल 2020 में कमलनाथ सरकार के पतन में मुख्य भूमिका थी. माना जा रहा है कि शिवराज सिंह के करीबी होने के कारण ही उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है.
सिंधिया के कारण गोविंद सिंह राजपूत मर गए बाजी: सागर जिले ही नहीं बल्कि पूरे बुंदेलखंड से सिर्फ एक कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह राजपूत को बनाया गया है. जबकि गोविंद सिंह राजपूत बमुश्किल चुनाव जीत पाए हैं. मतगणना के दिन तो गोविंद सिंह राजपूत और उनके समर्थकों की सांस अटक गई थी. जब 18 वें राउंड तक गोविंद सिंह राजपूत लगातार पीछे रहे और आखिरी दो राउंड में चुनाव जीत पाए. मोहन यादव मंत्रिमंडल में गोविंद सिंह राजपूत को शामिल किए जाने की सिर्फ एक वजह है कि वो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे करीबियों में एक हैं.
सागर जिले से 5-5 दावेदार होने के बावजूद गोविंद सिंह राजपूत मंत्रिमंडल में जगह बनाने में कामयाब हुए, तो सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी होने के कारण हुए. बड़ी वजह ये भी है कि विधानसभा चुनाव में भले ही भाजपा ने 163 सीटों पर जीत हासिल की हो, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के सिर्फ 6 विधायक ही चुनाव जीतकर आए हैं. गोविंद सिंह राजपूत को भी सिंधिया परिवार का विश्वासपात्र होना फायदेमंद रहा. गोविंद सिंह राजपूत केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता स्व. माधव राव सिंधिया के करीबी थे और तब से सिंधिया परिवार के भरोसेमंद हैं.
यहां पढ़ें... |
चार-चार बार चुनाव जीते विधायकों को भी लगी निराशा हाथ: इन दिग्गजों के अलावा सागर जिले से दो बड़े और दावेदार मंत्री पद के थे. जिनमें सागर विधानसभा से लगातार चौथी बार चुनाव जीते अल्पसंख्यक वर्ग के जैन समुदाय से आने वाले शैलेंद्र जैन मंत्री पद के दावेदार थे, तो वही नरयावली विधानसभा से चौथी बार चुनाव जीते अनुसूचित जाति वर्ग के प्रदीप लारिया भी मंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन इन दोनों दावेदारों को निराशा हाथ लगी.