सागर। आज Father's Day है, पिता हमारे जीवन में एक ऐसा व्यक्ति होता है जो खुद हारकर अपने बच्चों को जिताने का प्रयास करता है. बीना तहसील में एक ऐसे ही पिता है, जो अपनी बेटियों को एथलीट बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है. और उनकी तीन बेटियां भी पिता के संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाकर मेहनत कर पिता के प्रयास को कमजोर नहीं पडने दे रही है. इस पिता का सपना है कि उसकी बेटियां देश के लिए मेडल लेकर आए. हम आपको बीना के करोंद गांव के रहने वाले विनोद रजक की कहानी बता रहे है. जिनके पास परिवार के पालन-पोषण के लिए सिर्फ एक एकड़ जमीन और मजदूरी का सहारा है. लेकिन अपनी बेटियों को एक सफल एथलीट बनाकर देश के लिए मेडल लाने का सपना पूरा करने के लिए विनोद दिन रात मेहनत कर रहे हैं. विनोद के परिवार में तीन बेटियां, एक बेटा और उनकी पत्नी है. विनोद परिवार का पालन-पोषण के साथ ही बेटियों को एथेलिट बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे है.
- राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुकी है दो बेटियां
सुविधा विहीन गांव में बिना संसाधनों के एक पिता को अपनी बेटियों को सफल एथलीट बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है. पिता के इस संघर्ष की बदौलत दो बेटियां राष्ट्रीय स्तर तक अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुकी हैं. बेटियों ने राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतियोगिताओं में भाग भी लिया है. एक बेहतर एथलीट के लिए जरूरी संसाधनों से मोहताज एक मजदूर पिता चाहता है कि उनकी बेटियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं वाली खेल अकादमी में प्रशिक्षण मिल जाए, तो वह अपने गांव सहित प्रदेश और देश का नाम रोशन कर सकती हैं.
- गरीबी के कारण खुद नहीं बन पाए एथलीट
बीना के करोंद गांव के रहने वाले विनोद रजक की उम्र 40 साल है. उन्होंने महज 10वीं तक पढ़ाई की है. उनका बचपन से ही खेलकूद में रुझान रहा है और वह चाहते थे कि एक सफल एथलीट बनकर देश का नाम रोशन करें. लेकिन गरीबी और परिवार की जिम्मेदारी के चलते विनोद अपना सपना पूरा नहीं कर सके. अब वह अपनी तीन बेटियों के सहारे अपने सपने को साकार करना चाहते हैं. विनोद रजक महज 1 एकड़ 20 डिसमिल खेती के मालिक हैं और खेती के अलावा अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए मजदूरी भी करते हैं. इसी कमाई के जरिए वह अपनी बेटियों को एथलीट बनाने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं.
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- खेती की जमीन पर बेटियों की प्रैक्टिस के लिए बनाया ट्रैक
विनोद रजक के परिवार के भरण-पोषण का सहारा उनकी 1 एकड़ 20 डिसमिल खेती है, इसलिए उन्हें मजदूरी भी करना पड़ती है. लेकिन जब बेटियों को एथलीट बनाने के लिए गांव में कोई मैदान ना होने की समस्या सामने आई, तो उन्होंने अपने भरण-पोषण के सहारे क्षेत्र के कुछ हिस्से में ही रनिंग ट्रेक बना लिया. सुबह करीब 3 घंटे अपनी तीनों बेटियों के साथ विनोद उसी ट्रैक पर दौड़ की प्रैक्टिस करते हैं. तो शाम 5 बजे से सूरज ढलने तक यही सिलसिला फिर शुरू हो जाता है.
- सूरज उगने के पहले से लेकर ढलने तक कड़ा संघर्ष
विनोद रजक की दिनचर्या सुबह 4 बजे शुरू होती है. सुबह 4 बजे उठने के बाद विनोद अपनी बेटियों पूजा, आस्था और काजल के साथ खेत पर बनाएं रनिंग ट्रैक पर पहुंच जाते हैं. करीब 3 घंटे कड़ी मेहनत करने के बाद विनोद जहां मजदूरी के लिए चले जाते हैं, तो तीनों बेटियां अपनी पढ़ाई में जुट जाती हैं. शाम 5 बजे फिर मजदूरी से लौटकर अपनी बेटियों के साथ विनोद फिर तैयारियों में जुट जाते हैं. सूरज ढलने तक खेत पर बने कामचलाऊ ट्रैक पर तीनों बेटियां अपने पिता के साथ संघर्ष करती नजर आती हैं.
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- बेटियों को मिले किसी खेल अकादमी में प्रशिक्षण
विनोद रजक की तीन बेटियों में से दो बेटियां राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुकी हैं. लेकिन सिंथेटिक ट्रैक पर होने वाली इस दौड़ में प्रैक्टिस के अभाव में पिछड़ जाती हैं. विनोद चाहते हैं कि उनकी बेटियों को किसी खेल अकादमी में प्रशिक्षण का मौका मिले. ताकि उनकी बेटियां अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानदंड पर होने वाली प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन कर सकें.