सागर। सनातन धर्म में कल्पवृक्ष (tree of heaven) का विशेष महत्व है. कल्पवृक्ष बहुत कम ही देखने को मिलते हैं लेकिन सागर के कलेक्टर कार्यालय परिसर में दो कल्पवृक्ष मौजूद हैं. जो समाज में आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है. कहा जाता है कि ये दोनों वृक्ष करीब 700 साल पुराने हैं.
जब कलेक्टर कार्यालय (collector office) के नवीन भवन का निर्माण हो रहा था. तो इन दोनों वृक्षों को काटा जाना प्रस्तावित था लेकिन अपने शहर की आस्था के प्रतीक दोनों कल्प वृक्षों को बचाने के लिए शहर की जनता ने मोर्चा खोल दिया और आखिरकार कलेक्टर कार्यालय का डिजाइन को बदलना पड़ा. फिलहाल एक कल्पवृक्ष कलेक्टर कार्यालय में बीचों-बीच स्थित है तो दूसरा कलेक्टर कार्यालय परिसर में खुले में स्थित है. अफ्रीका (Africa), ऑस्ट्रेलिया (Australia) और भारतीय उपमहाद्वीप (Indian subcontinent) में पाए जाने वाले इस वृक्ष को लेकर कई तरह की कहानियां हैं. इस वृक्ष का समुद्र मंथन और गीता में भी उल्लेख है. कल्पवृक्ष के औषधीय गुण की बात करें तो कई बीमारियों का इलाज इस वृक्ष से होता है. सागर स्थित कल्पवृक्ष के दर्शन कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती भी कर चुके हैं. खास बात यह है कि दुनिया के 13 देशों में पाए जाने वाला यह वृक्ष हर देश में किसी न किसी तरह से आस्था और श्रद्धा का विषय है.
कल्पवृक्ष की उत्पत्ति और वैज्ञानिक तथ्य
कल्पवृक्ष की उत्पत्ति को लेकर सागर सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर अजय शंकर मिश्रा बताते हैं कि "पृथ्वी की उत्पत्ति के समय बहुत बड़ा हिस्सा गोंडवाना लैंड के नाम से जाना जाता था. कल्पवृक्ष गोंडवाना लैंड में पाया जाता था. द्वीपों के विस्थापन के समय गोंडवाना लैंड अफ्रीका,ऑस्ट्रेलिया और भारतीय उपमहाद्वीप में बंट गया. इस तरह ये वृक्ष तीनों जगह पहुंच गया. इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम 'एंडेनसोनिया डिजिटेटा' है. वैज्ञानिक एंडरसन ने इसकी खोज की थी और इसकी पत्तियां पांच हिस्सों में होती हैं, इसलिए इसे डिजिटेटा कहते हैं. कल्प वृक्ष की आयु साढ़े चार हजार से लेकर 5 हजार साल तक होती है. इसकी अलग-अलग प्रजातियां 13 देशों में पाई जाती हैं और यह हर देश में पूजनीय हैं.
कल्पवृक्ष को लेकर तरह-तरह की कहानियां
कल्पवृक्ष में जब पत्तियां झड़ जाती हैं तो उल्टे वृक्ष के समान प्रतीत होता है. ऐसा लगता है कि जड़ें आसमान में और शाखाएं जमीन की ओर है. इसके बारे में तरह-तरह की कहानियां हैं.
उलटा क्यों दिखता है कल्प वृक्ष
कहा जाता है कि अफ्रीका में यह वृक्ष समुद्र किनारे था. जब वहां से ब्रह्मा गुजरे, तो कल्पवृक्ष रोने लगा. उन्होंने रोने की वजह पूछी, तो कहा कि मुझे यहां पर अच्छा नहीं लग रहा है तो उन्होंने कल्पवृक्ष को पहाड़ पर लगा दिया. कुछ दिनों बाद फिर ब्रह्मा गुजरे तो कल्पवृक्ष रोता हुआ मिला. उन्होंने फिर वजह पूछी तो फिर से वही बात कही. तो गुस्से में ब्रह्मा ने उसे उखाड़कर उल्टा कर दिया. कल्पवृक्ष के उल्टे प्रतीत होने के पीछे यही कहानी है.
समुद्र मंथन और गीता में भी उल्लेख
पिछले 40 सालों से सागर में स्थित कल्पवृक्ष की सेवा कर रहे पंडित राधेश्याम दुबे बताते हैं कि "कल्पवृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी. कल्पवृक्ष को भी लेकर देवताओं और राक्षसों में युद्ध हुआ था और यह वृक्ष देवताओं को हासिल हुआ था. कल्पवृक्ष को लेकर गीता में भी उल्लेख है. प्रोफेसर अजय शंकर मिश्रा बताते हैं कि गीता में कहा गया है कि " उर्ध्व मूलम् अधो शाखम् ", इसका मतलब है कि इसकी जड़े ऊपर की तरफ और शाखाएं नीचे की तरफ होती हैं. इसके अलावा अजंता की गुफाओं के भित्ति चित्र में कल्पवृक्ष के भित्ति चित्र mural painting के साथ बंदर भी बना हुआ है. बंदर कल्पवृक्ष के फल को बड़े चाव से खाते हैं. अंग्रेज भी कल्पवृक्ष को " मंकी ब्रेड ट्री " के नाम से पुकारते हैं."
सागर कलेक्टर परिसर में स्थित कल्पवृक्ष का इतिहास
वर्तमान में सागर कलेक्टर कार्यालय का नवीन परिसर है. पहले यहां खुला मैदान हुआ करता था. तब दोनों कल्पवृक्ष खुले में स्थित थे और स्थानीय लोग उनकी पूजा-अर्चना करते थे. करीब 40 साल से पंडित राधेश्याम दुबे कल्पवृक्ष की पूजा अर्चना नियमित तौर पर करते रहे हैं. जब कलेक्टर परिसर का निर्माण नहीं हुआ था तो पंडित राधेश्याम दुबे वही झोपड़ी बनाकर अपने परिवार के साथ रहते थे और कल्पवृक्ष का पूजन करते थे. जो लोग कल्पवृक्ष में आस्था रखते थे, वह पूजा-अर्चना के लिए आते थे और दान दक्षिणा भी करते थे.
1996 में कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने भी किए थे दर्शन
नेपाल राज परिवार में शादी में आमंत्रित कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती 1996 में अपने शिष्य बृजेंद्र सरस्वती के साथ सागर से होकर गुजरे थे. उन्होंने सागर में एक दिन विश्राम किया था और सागर विश्वविद्यालय के बॉटनिकल गार्डन का भ्रमण किया था. जहां चर्चा के दौरान उनको कल्पवृक्ष के बारे में जानकारी हुई, तो उन्होंने दर्शन की इच्छा जताई थी. शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती अपने शिष्य के साथ कल्पवृक्ष के दर्शन करने पहुंचे थे और उन्होंने तीन परिक्रमा करने के बाद कहा था कि " कल्पवृक्ष सबका उद्धार करता है, लेकिन आज मेरे आने से कल्पवृक्ष का उद्धार हो गया". इसके बाद उन्होंने कल्पवृक्ष की एक फल को भी अपने साथ रखा. शंकराचार्य के दर्शन के बाद स्थानीय लोगों में कल्पवृक्ष को लेकर आस्था और ज्यादा बढ़ गई.