रीवा। भारतीय इतिहास में जब भी रियासतों का जिक्र होता है तो सभी के ज़हन में राजपूताना यानी राजस्थान का नाम आता है, लेकिन मध्यप्रदेश की रियासतों की आन-बान और शान भी कम नहीं थी. बघेल साम्राज्य का गढ़ कही जाने वाली बांधवगढ़ रियासत भी ऐसी ही एक रियासत थी, जो बाद में रीवा स्थानांतरित होकर रीवा रियासत के नाम से जानी गई.
रीवा रियासत के वैभव को बयां करता है रीवा का बघेला म्यूजियम जहां इस राजघराने की धरोहरें संजोकर रखी गई हैं. 1912 में महाराज वेंकटरमन के बनवाये हुए इस म्यूजियम में राजपरिवार के अस्त्र-शस्त्र, सिंहासन, बेल्जियम से आया विशेष हार, चांदी के बर्तन और हाथी-घोड़ों के आभूषण सहेजे गए हैं. राजपरिवार की निशानियों में एक खास चीज है यहां रखा 14 किलो का पीतल का ताला, जिसे खोलने के लिए चार चाभियों का इस्तेमाल किया जाता है. यहां रखे राजपरिवार के हथियारों में 8 किलो से लेकर 20 किलो तक की बंदूकें हैं, जबकि एक ऐसा पैन भी यहां है जो वैसे तो लिखने के काम आता था, लेकिन जरूरत के वक्त ये बंदूक की तरह गोली भी दाग सकता था. इसके अलावा हाथी पर रखा जाने वाला चांदी का सिंहासन और सोने से निर्मित हनुमान मूर्ति भी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती है.
इस सबसे अलग जो चीज रीवा राजघराने को खास बनाती है वो है बादशाह अकबर का यहां आकर हार जाना, लेकिन ये जंग हथियारों से नहीं स्वर-लहरियों से लड़ी गई थी. हुआ ये कि गीत-संगीत के शौकीन बादशाह अकबर ने जब रीवा राजघराने के गायक तानसेन की आवाज सुनी तो वे इस आवाज पर अपना दिल हार गए और उन्होंने तत्कालीन बांधवगढ़ रियासत के राजा रामसिंह जूदेव से तानसेन को अपने दरबार की शोभा बढ़ाने के लिए मांग लिया.
तानसेन के एवज में अकबर ने राजा रामसिंह जूदेव को मनसबदार की उपाधि के साथ कई घोड़ों और हथियारों की भेंट दी. इन हथियारों में मुगल सल्तनत की मुहर लगी विशेष तोपें भी शामिल थीं जो आज भी रीवा राजमहल की शोभा बढ़ा रही हैं. आज भले ही राजे-रजवाड़ों का दौर खत्म हो गया हो, लेकिन रीवा के म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहीं ये नायाब चीजें केवल इस राजघराने के लिए ही नहीं बल्कि रीवा सहित पूरे मध्यप्रदेश के लिए गौरव की बात हैं.