रीवा। आज करगिल विजय दिवस है. तिरंगे की आन-बान और शान के लिए देश के कई वीर जवानों ने साल 1999 में अपना बलिदान दिया. रीवा की जवा तहसील के अंदवा गांव के निवासी शहीद कालू प्रसाद पांडे ने भी देश के लिए मर मिटने की कसम खाई थी. युद्ध के दौरान शहीद कालू प्रसाद पांडे ने तोप के माध्यम से पाकिस्तानी सेना को नेस्तनाबूत कर दिया. रीवा के इस वीर सपूत ने 5 दिनों तक लगातार लड़ाई लड़ी, दुश्मनों से डटकर मुकाबला किया, और टाइगर हिल पर भारत का परचम लहराने में अपनी अहम भूमिका निभाई. दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद कालू प्रसाद पांडे ने अपने परिजनों को चिट्ठी के माध्यम से युद्ध के बारे जानकारी दी और हंसते-हंसते देश की खातिर कुर्बान हो गए.
करगिल युद्ध के 'महानायक' रहे रीवा के सपूत
1999 के युद्ध में शहीद हुए कालू प्रसाद पांडे ने 1981 में भारतीय सेना ज्वाइन की थी. अपने सर्विस काल में तमाम जगहों पर पोस्टिंग के बाद 1999 में उनकी आखिरी पोस्टिंग सीमा पर हुई. बस उसी दौरान भारत-पाकिस्तान के बीच करगिल युद्ध छिड़ गया. जून महीने में दुश्मन सेना ने छुपकर वार किया, भारतीय सेना भी हर समय युद्ध के लिए तैयार थी. शहीद कालू प्रसाद पांडे को तोप थमाई गई थी. जिससे उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए. भारत-पाकिस्तान के बीच करीब 5 दिनों तक लड़ाई चली. जिसमें 27 जून 1999 को कालू प्रसाद पांडे देश के लिए शहीद हो गए.
करगिल के अलावा भी दो अन्य युद्ध लड़े
परिजन ने बताया कि शहीद कालू प्रसाद पांडे ने 1999 में हुए कारगिल युद्ध के अलावा पूर्व में भी देश के लिए दो अन्य लड़ाई लड़ी थी. इन दोनों युद्ध में भी उन्होंने तोप के माध्यम से दुश्मन सेना को ढेर कर दिया था.
1963 में हुआ था शहीद कालू प्रसाद पांडे का जन्म
शहीद नायक कालू प्रसाद पांडे का जन्म रीवा जिले के जावर तहसील क्षेत्र के अंदवा गांव में 1 अगस्त 1963 को हुआ. गांव में ही प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने भारतीय सेना में भर्ती होने की ठानी. साल 1981 में शहीद कालू प्रसाद पांडे ने जबलपुर में अपने भाई के घर में रहकर दौड़ के माध्यम से सेना में जॉइनिंग ली. परिजन बताते हैं कि शहीद कालू प्रसाद को हमेशा से ही निशानेबाजी पसंद थी. जिसके बाद सेना में भर्ती होने के बाद भी उन्हें तोप चलाने का कार्य सौंपा गया.
1 जुलाई 1999 को आया था शहादत का संदेश
1 जुलाई 1999 का दिन था, जब शहीद कालू प्रसाद पांडे के घर शहादत का संदेशा पहुंचा. कारगिल युद्ध में कालू प्रसाद पांडे शहीद हो गए थे. जिसके बाद परिवार वालों का रो-रो कर बुरा हाल था. मगर देश के जांबाज बेटे की विदाई पर समूचे देश ने खुद को गौरवान्वित महसूस किया. शहादत के बाद कालू प्रसाद पांडे को मेडल से भी नवाजा गया.
युद्ध के तीन माह पहले छुट्टी पर पहुंचे थे घर
शहीद कालू प्रसाद पांडे के परिजन बताते हैं कि कारगिल युद्ध से 3 माह पूर्व वह छुट्टी पर गांव आए थे. जहां पर सीमा से जुड़ी बातों को उन्होंने परिवार वालों के साथ साझा किया. उन्होंने बताया था कि सीमा में हालात बुरे हैं, मगर फिर भी भारतीय सेना डटकर मुकाबला कर रही है. वापस जाते वक्त शहीद कालू प्रसाद ने अपने मां-पिता का आशीर्वाद लिया था. परिजन ने बताया कि वापस जाने से पहले उन्होंने जीत कर लौटने का वादा किया था. ठीक 2 महीने बाद खत के माध्यम युद्ध की सूचन मिली थी.
27 जून 1999 को टाइगर हिल पर शहादत
पाकिस्तानी सेना से युद्ध के दौरान 27 जून 1999 को सुबह करीब 10 बजे कालू प्रसाद पांडे शहीद हो गए थे. जिसके बाद सेना के अफसर उनके पार्थिव शरीर को लेकर अंदवा गांव पहुंचे. जहां गार्ड-आफ-ऑनर के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गई. शहीद की विदाई के वक्त हर किसी की आंखे नम थी. देश के लिए बलिदान देने वाले जवान पर लोगों को गर्व था. उस समय के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी शहीद को अंतिम विदाई देने पहुंचे थे.
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5 दिन तक बिना जूते उतारे युद्ध किया
शहीद कालू प्रसाद पांडे के भतीजे रामसागर पांडे बताते हैं कि उनके चाचा हमेशा देश हित की बातें करते थे, अपने यूनिट में भी वह सबके चहेते थे. युद्ध के दौरान भी उन्होंने अपनी वीरता का परिचय दिया, और दुश्मन सेना को तोप के गोले से उड़ा दिया. रामसागर बताते हैं कि युद्ध के दौरान शहीद कालू प्रसाद पांडे पैरों से जूते उतारे बिना ही 5 दिनों तक लड़ते रहे.