रीवा। मध्यप्रदेश के मुखिया शिवराज चौहान ने मऊगंज को जिला बनाने की घोषणा की थी और बीते 15 अगस्त को मऊगंज जिला भी बना गया. लेकिन सीएम शिवराज ने इसी मऊगंज के एक छोटे से कस्बे हरजई मुडहान गांव में रहने वाले दिव्यांग कृष्ण कुमार केवट से किया गया वादा भूल गए. यह वही कृष्ण कुमार है, जिसने बीना हाथों के ही अपने पैरों से उड़ान भरी थी और 12वीं की परीक्षा पैरों से लिख के 82 प्रतिशत अंक हासिल कर सभी को चौंका दिया था. 12वीं उतीर्ण करने बाद कृष्ण कुमार ने IAS बनने की इच्छा जाहिर की थी, सीएम शिवराज ने लैपटॉप वितरण कार्यक्रम में कृष्ण कुमार की हर संभव मदद करने का वादा था, लेकिन 3 साल बीत जानें के बाद भी अब तक उसे कोई सहायता नहीं मिल पाई है. फिलहाल अब कृष्ण कुमार का कहना है कि "मामा शिवराज ने अपने वादे पूरे नहीं किए, इसलिए अब मेरी IAS बनने की इच्छा खत्म हो रही है.
दिव्यांग कृष्ण कुमार ने सीएम शिवराज को लगाई पुकार: मऊगंज स्थित हरजई मुड़हान गांव मे रहने वाले कृष्ण कुमार के बचपन से ही दोनों हाथ नहीं थे, इसके बावजूद भी कृष्ण कुमार ने वर्ष 2020 में 12वीं की परीक्षा पैरों से लिखकर दी और 82 फीसदी अंक हासिल कर सबको चकित कर दिया. कृष्ण कुमार के बुलंद हौसलों के आगे मजदूर पिता की गरीबी भी आड़े नहीं आई, पढ़ाई के लिए हर दिन 10 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल पहुंचने वाले इस होनहार छात्र ने उत्कृष्ट विद्यालय मऊगंज के टॉप टेन छात्रों में जगह बनाई थी. कृष्ण कुमार ने बेहद गरीब होने के बावजूद भी आगे की पढ़ाई कर कलेक्टर बनने की ख्वाहिश रखी थी.
कृष्ण कुमार में बिना हाथों के पैरों से भरी उड़ान: दिव्यांग कृष्ण कुमार के दोनों हाथ मां की कोख में ही गल गए थे, बढ़ती उम्र के साथ कृष्ण कुमार ने अपने पैरों को ही हाथ बना लिया और 12वीं की परीक्षा पैरों से लिखकर 82% अंक अर्जित किए थे. कृष्ण कुमार की इस उपलब्धि से पूरा परिवार गदगद हो उठा था, बचपन से ही बिना हाथों के कृष्ण कुमार ने अपने तीन भाई और चार बहनों के बीच ना केवल पढ़ना सीखा, बल्कि पढ़ाई में भी मन लगाया. बचपन से ही पैरों से सारे काम करने का हुनर खुद ही विकसित किया और मजबूत इरादे और बुलंद हौसले से वह मुकाम हासिल किया जो हाथ वाले भी ना कर पाए. कृष्ण कुमार ने कक्षा 1 से 12वीं तक की परीक्षा पैरों से ही लिखकर उत्तीर्ण की है.
12वीं पास कर जाहिर की थी IAS बनने की इच्छा: कृष्ण कुमार का गांव हरजई मुड़हान मऊगंज शहर से तकरीबन 10 किलोमीटर की दूरी पर है, जहां से वह पैदल चलकर रोजाना विद्यालय पढ़ाई करने जाया करते थे. पढ़ाई के प्रति इतनी लगन थी कि रास्ते में ही बैठकर पैरों से अपना होमवर्क करने लगते थे, इस मेघावी छात्र की उपलब्धि चाहे भले ही किसी पहाड़ की चोटी के बराबर ना हो, पर ख्वाहिशें बड़ी हैं. कृष्ण कुमार केवट पढ़ाई के बाद देश और अपने गरीब परिवार की मदद करना चाहते हैं, जिसके लिए उन्होंने सीएम से मिलकर कलेक्टर बनने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन आज भी परिवार की आर्थिक स्थिति कृष्ण कुमार के आड़े आ रही है.
प्रशासनिक अनदेखी का शिकार हुआ दिव्यांग कृष्ण कुमार: कृष्ण कुमार की उपलब्धि से मऊगंज जिले सहित प्रदेश का नाम रोशन हुआ था. कलेक्ट्रेट कार्यालय में आयोजित लैपटॉप वितरण कार्यक्रम के दौरान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उसके साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संवाद करते हुए उसे कृत्रिम हाथ लगाने का वादा किया था. वहीं सीएम शिवराज ने कमिश्नर रीवा को निर्देशित करते हुए कृष्ण कुमार को प्रशासनिक सुविधाएं दिए जाने का आश्वासन दिया था. मगर मुख्यमंत्री के वादे के बाद जैसे मानों प्रशासन ने इस दिव्यांग बालक को भुला दिया हो और उसकी सफलता को कागज तक समेट कर रख दिया हो. कृष्ण कुमार की मानें तो आज भी वह प्रशासन की सुविधाओं से वंचित है.
सीएम ने नहीं निभाया वादा: कृष्ण कुमार का कहना है कि "12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण किए मुझे 3 वर्ष बीत गए. इसी वर्ष मेरा ग्रेजुएशन का फाइनल हो चुका है, लेकिन मुझे सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं मिली. लैपटॉप वितरण कार्यक्रम में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने मुझसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात करते हुए मुझे रीवा का ही नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश का बेटा बताया था. उन्होंने कहा था कि हम तुम्हारे दोनों हाथ लगवाएंगे और तुम्हें रोजगार की व्यवस्था कराएंगे, कॉलेज की पढ़ाई की पूरी व्यवस्था करेंगे, लेकिन यह वादा अभी भी अधूरा है. सीएम अपना वादा नहीं निभा पाए."
अब भी मदद की आस लगाए बैठा है कृष्ण कुमार: कृष्ण कुमार ने बताया कि "शासन की ओर से मैं अपने परिजनों के साथ कृत्रिम हाथ लगवाने इंदौर के एक हॉस्पिटल में गया था, डाक्टरों ने मुझे बताया कि हाथ तो लग जाएंगे पर वह काम नही करेंगे, इसलिए मैंने कृत्रिम हाथों को लगवाने से इनकार कर दिया था. इसके अलावा शासन की ओर से मुझे मात्र एक लैपटॉप ही मिल पाया, जबकि अन्य सुविधाओं से मैं अभी भी वंचित हूं. मेरे मन में अब भी कलेक्टर बनने की चाह है, मगर खराब आर्थिक स्थिति मेरे आड़े आ रही हैं, इसलिए मैं अब भी मदद की आस लगाए बैठा हूं. देखते हैं मामा शिवराज ने हमसे जो वादा किया था, वह कब पूरा होगा."