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लक्ष्मण बाग: रीवा में स्थित ऐसा मंदिर, जहां मौजूद हैं चारों धाम

रीवा में एक ऐसा मंदिर है, जिसमें चारों धाम एक ही जगह मौजूद हैं. माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से चारों धाम की यात्रा का फल मिलता है

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Published : Mar 7, 2019, 11:58 PM IST

लक्ष्मणबाग

रीवा। शहर में एक ऐसा मंदिर है, जिसमें चारों धाम एक ही जगह मौजूद हैं. माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से चारों धाम की यात्रा का फल मिलता है. विंध्य क्षेत्र की गरीब जनता की सुविधाओं को ध्यान मे रखते हुए तत्कालीन महाराजा विश्वनाथ सिंह ने 1850 में लक्ष्मणबाग ट्रस्ट की स्थापना की थी.


इसमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, वैद्यनाथ और पुरी से भगवान को लाकर लक्ष्मणबाग में स्थापित किया गया है. देश की चारों दिशाओं में मौजूद चारों धाम के अलावा यहां पर हरिद्वार, बद्रीनारायण, तिरुपति बालाजी, जगदीश स्वामी, रंगनाथ लक्ष्मीनारायण, कस्तूरीनाथ दीनानाथ भगवान को विराजमन किया गया है. महाराज विश्वनाथ की सोच थी कि विंध्य की गरीब जनता चारों धाम की यात्रा नहीं कर सकती और इनके मन में हमेशा यात्रा न करने का मलाल रहेगा. लिहाजा महाराज खुद चारों धाम की यात्रा पर निकले और जगह-जगह से प्रतिमाएं लाकर सैकड़ों मंदिरों की स्थापना रीवा में ही करा दी.

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यही नहीं यहां चारों धाम के भगवान के साथ ही पवित्र नदियों के जल को भी एक कुंड में समाहित किया गया है. इससे एक ही परिसर में चारों धाम की परिक्रमा और गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा का जल चढ़ाने को मिल जाता है. रीवा राजघराने के आराध्य देव भगवान लक्ष्मण को माना जाता है, इस कारण इसका नाम लक्ष्मणबाग के नाम से रखा गया. इसकी स्थापना यह बताती है कि पहले यहां लक्ष्मण मंदिर बनाया जाना था, लेकिन लोगों ने मांग उठाई थी कि चारों धाम के देवी-देवताओं के दर्शन के लिए मंदिर बनाए जाएं. इसी के चलते यहां पर चारों धाम के मंदिर बनाए गए हैं.


लक्ष्मणबाग संस्थान द्वारा देश के अलग-अलग हिस्सों में भी मंदिरों की स्थापना कराई गई थी. प्रदेश के बाहर स्थित मंदिरों में प्रमुख रूप से राधामोहन बांदा, रानीमंदिर और रामभजन दारागंज प्रयागराज, सवामन सालिग्राम वृंदावन, श्री रामानुज कोटि बद्रीनाथ गढ़वाल, श्री जगन्नाथपुरी पुरी, बड़ी बघेली जोधपुर, छोटी बघेली जोधपुर, ब्रह्मशिला फतेहपुर, राजघाट कनखल हरिद्वार, छत्रपालगढ़, हनुमान जी इंदाराकुंआ दिल्ली, रघुनाथ जी रामदास इलाहाबाद के साथ ही गया, तिरुपति बालाजी सहित अन्य स्थानों पर स्थित हैं.

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लेकिन, लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह संस्थान दुर्दशा का शिकार होता गया. करीब तीन दशक पहले से यह विवादों में घिरता जा रहा है. देश के कई शहरों में संस्थान से जुड़े 72 मंदिर हैं, जिनमें अधिकांश में संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा है. अलग-अलग अदालतों में करीब दो दर्जन की संख्या में मामले लंबित हैं. लगातार आय के स्त्रोत घटते जा रहे हैं, संपत्तियों में अवैधानिक रूप से कब्जा होता जा रहा है. यहां अब शहर के लोग ही कम संख्या में पहुंच रहे हैं, बाहर के लोगों का आना-जाना तो बंद ही हो गया है.

रीवा। शहर में एक ऐसा मंदिर है, जिसमें चारों धाम एक ही जगह मौजूद हैं. माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से चारों धाम की यात्रा का फल मिलता है. विंध्य क्षेत्र की गरीब जनता की सुविधाओं को ध्यान मे रखते हुए तत्कालीन महाराजा विश्वनाथ सिंह ने 1850 में लक्ष्मणबाग ट्रस्ट की स्थापना की थी.


इसमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, वैद्यनाथ और पुरी से भगवान को लाकर लक्ष्मणबाग में स्थापित किया गया है. देश की चारों दिशाओं में मौजूद चारों धाम के अलावा यहां पर हरिद्वार, बद्रीनारायण, तिरुपति बालाजी, जगदीश स्वामी, रंगनाथ लक्ष्मीनारायण, कस्तूरीनाथ दीनानाथ भगवान को विराजमन किया गया है. महाराज विश्वनाथ की सोच थी कि विंध्य की गरीब जनता चारों धाम की यात्रा नहीं कर सकती और इनके मन में हमेशा यात्रा न करने का मलाल रहेगा. लिहाजा महाराज खुद चारों धाम की यात्रा पर निकले और जगह-जगह से प्रतिमाएं लाकर सैकड़ों मंदिरों की स्थापना रीवा में ही करा दी.

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यही नहीं यहां चारों धाम के भगवान के साथ ही पवित्र नदियों के जल को भी एक कुंड में समाहित किया गया है. इससे एक ही परिसर में चारों धाम की परिक्रमा और गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा का जल चढ़ाने को मिल जाता है. रीवा राजघराने के आराध्य देव भगवान लक्ष्मण को माना जाता है, इस कारण इसका नाम लक्ष्मणबाग के नाम से रखा गया. इसकी स्थापना यह बताती है कि पहले यहां लक्ष्मण मंदिर बनाया जाना था, लेकिन लोगों ने मांग उठाई थी कि चारों धाम के देवी-देवताओं के दर्शन के लिए मंदिर बनाए जाएं. इसी के चलते यहां पर चारों धाम के मंदिर बनाए गए हैं.


लक्ष्मणबाग संस्थान द्वारा देश के अलग-अलग हिस्सों में भी मंदिरों की स्थापना कराई गई थी. प्रदेश के बाहर स्थित मंदिरों में प्रमुख रूप से राधामोहन बांदा, रानीमंदिर और रामभजन दारागंज प्रयागराज, सवामन सालिग्राम वृंदावन, श्री रामानुज कोटि बद्रीनाथ गढ़वाल, श्री जगन्नाथपुरी पुरी, बड़ी बघेली जोधपुर, छोटी बघेली जोधपुर, ब्रह्मशिला फतेहपुर, राजघाट कनखल हरिद्वार, छत्रपालगढ़, हनुमान जी इंदाराकुंआ दिल्ली, रघुनाथ जी रामदास इलाहाबाद के साथ ही गया, तिरुपति बालाजी सहित अन्य स्थानों पर स्थित हैं.

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लेकिन, लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह संस्थान दुर्दशा का शिकार होता गया. करीब तीन दशक पहले से यह विवादों में घिरता जा रहा है. देश के कई शहरों में संस्थान से जुड़े 72 मंदिर हैं, जिनमें अधिकांश में संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा है. अलग-अलग अदालतों में करीब दो दर्जन की संख्या में मामले लंबित हैं. लगातार आय के स्त्रोत घटते जा रहे हैं, संपत्तियों में अवैधानिक रूप से कब्जा होता जा रहा है. यहां अब शहर के लोग ही कम संख्या में पहुंच रहे हैं, बाहर के लोगों का आना-जाना तो बंद ही हो गया है.

Intro:रीवा में एक ही मंदिर परिसर मे चारों धाम के सभी भगवान मौजूद है। ऐसा कहा जाता है कि यहां उतना ही महत्व है जितनी की चारोधाम यात्रा का होता है।  




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ये है रीवा का ऐतिहासिक लक्ष्मणबाग ट्रस्ट.... यहां मौजूद है चारो धाम के भगवान। विंध्य क्षेत्र के गरीब जनता की सुविधाओं को ध्यान मे रखते हुए तत्तकालीन महाराजा विश्वनाथ सिंह ने 1850 में लक्ष्मणबाग ट्रस्ट की स्थापना कराई। केदारनाथ, बद्रीनाथ, बैजनाथ और पुरी से भगवान को लाकर लक्ष्मणबाग मे स्थापित किया। देश के दिशाओं मे मौजूद चारोधाम के अलावा यहां पर हरिद्वार, बद्रीनारायण बालाजी त्रिरंगनम, जगदीश स्वामी, रंगनाथ लक्ष्मीनारायण, कस्तूरीनाथ दीनानाथ भगवान को विराजमन किया। महाराज विश्वनाथ जी की सोच थी कि विंध्य की गरीब जनता चारोधाम की यात्रा नही कर सकती और इनके मन मे हमेशा यात्रा ना करने का मलाल रहेगा। लिहाजा महाराज खुद चारोधाम की यात्रा पर निकले और जगह जगह में सैकडो मंदिरो की स्थापना कराई। चारो दिशाओ से भगवान को गाजे बाजे के साथ धूम धाम के साथ रीवा ले आये। इससे जहां लोगो को चारो धाम की यात्रा की अनुभूति मिलती है और लक्ष्मणबाग में यात्रा दर्शन करने से उन्हे चारो धाम का फल मिलता है। यहां चारो धाम के भगवान के साथ ही पवित्र नदियों के जल को भी एक कुंड मे समाहित किया है लिहाजा एक ही परिसर मे चारो के धाम की परिक्रमा और गंगा, जमुना, गोदावरी, नर्मदा का जल चढाने को मिल जाता है यह पुन्य चारो धाम की यात्रा से किसी मायने में कम नही है।

रक्ष्मणबाग नाम क्यो पड़ा।

रीवा राजघराने के आराध्यदेव लक्ष्मण को माना जाता है, इस कारण इसका नाम लक्ष्मणबाग के नाम से रखा गया। इसकी स्थापना के पीछे यह प्रमुख वजह बताईगई थी कि पहले लक्ष्मण मंदिर बनाया जाना था लेकिन लोगों ने मांग उठाई थी कि चारों धाम के देवी-देवताओं के दर्शन के लिए मंदिर बनाए जाएं, जिसके चलते यहां पर चारों धाम के मंदिर बनाए गए हैं। इसे तीर्थ स्थल के रूप में उस समय देखा जाता था, विंध्य ही नहीं आसपास के अन्य क्षेत्रों के लोग भी इसे देखने आते थे।


देश में प्रसिद्ध है यह संस्थान के मंदिर।

लक्ष्मणबाग संस्थान द्वारा देश के अलग-अलग हिस्सों में मंदिरों की स्थापना कराई गई थी। प्रदेश के बाहर स्थित मंदिरों में प्रमुख रूप से राधामोहन बांदा, रानीमंदिर और रामभजन दारागंज प्रयागराज, सवामन सालिग्राम वृंदावन, श्री रामानुज कोटि बद्रीनाथ गढ़वाल, रीवा क्षेत्र श्री जगन्नाथपुरी पुरी, बड़ी बघेली जोधपुरी, छोटी बघेली जोधपुर, ब्रम्हशिला फतेपुर, राजघाट कनखल हरिद्वार, छत्रपालगढ़, हनुमान जी इंदाराकुंआ दिल्ली, रघुनाथ जी रामदास इलाहाबाद के साथ ही गया, तिरुपतिबालाजी सहित अन्य स्थानों पर हैं।



जानिए क्या है वर्तमान की हालात।

लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह संस्थान दुर्दशा का शिकार होता गया। करीब तीन दशक पहले से यहां का मामला विवादों में घिरता जा रहा है। देश के कई शहरों में संस्थान से जुड़े 72 मंदिर हैं। अधिकांश में संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा है। अलग-अलग अदालतों में करीब दो दर्जन की संख्या में मामले लंबित हैं। लगातार आय के स्त्रोत घटते जा रहे हंै, संपत्तियों में अवैधानिक रूप से कब्जा होता जा रहा है। यहां अब शहर के लोग ही कम संख्या में पहुंच रहे हैं, बाहर के लोगों का आना-जाना बंद ही हो गया है।








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