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20 सालों से पक्षियों को दाना दे रहे मधुकर धोलकिया, पेंशन के रुपयों से भरते हैं पक्षियों का पेट

कहा जाता है कि व्यक्ति कहीं भी रहे, लेकिन अपनी जड़ों को नहीं भूल पाता. उस जगह की परंपराएं हमेशा ध्यान में रहती हैं.

पक्षियों को दाना देते मधुकर धोलकिया
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Published : Feb 26, 2019, 3:32 PM IST

रीवा। कहा जाता है कि व्यक्ति कहीं भी रहे, लेकिन अपनी जड़ों को नहीं भूल पाता. उस जगह की परंपराएं हमेशा ध्यान में रहती हैं. रीवा में ऐसा ही कुछ कर रहे हैं गुजरात के मूल निवासी मधुकर धोलकिया, जो पिछले 20 सालों से पक्षियों को दाना देते आ रहे हैं.

पक्षियों को दाना देते मधुकर धोलकिया


दरअसल मधुकर धोलकिया मूलत: गुजरात के हैं और यहां की एक परंपरा रही है कि वहां का हर परिवार पक्षियों को दाना देता है. गुजरात की मान्यता है कि इंसान तो अपना पेट भर लेता है, लेकिन पक्षियों का पेट कैसे भरे. बता दें कि मधुकर धोलकिया ने यहां शिक्षक के रूप में नौकरी भी की और स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद गुजरात के इस पक्षी प्रेम की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए उसे यहां भी कायम रखा. पिछले 20 सालों से मधुकर के घर की छत पर रोजाना हजारों पक्षी आते हैं और प्रतिदिन 7 किलो से लेकर 10 किलो तक चावल खाते हैं. खास बात यह है कि मधुकर अपने पेंशन के रुपयों से अच्छे किस्म का चावल खरीदकर पक्षियों का पेट भरते हैं.

bird,mage,tradition,gujarat
पक्षियों को दाना देते मधुकर धोलकिया


मधुकर को हजारों पक्षियों को दाना खाते देखना बहुत सुखद लगता है. स्वस्थ और तंदुरुस्त पक्षियों को हमेशा दाना मिलता रहे और भविष्य में भी यह सिलसिला जारी रहे, उसके लिये मधुकर ने तीन लाख रुपयों का ट्रस्ट भी बना रखा है. आने वाले समय में उनके नहीं रहने पर भी यह सिलसिला जारी रहे, वे उसकी भी व्यवस्था में लगे हैं. मधुकर समाज सेवा के अन्य कार्य भी करते हैं.

रीवा। कहा जाता है कि व्यक्ति कहीं भी रहे, लेकिन अपनी जड़ों को नहीं भूल पाता. उस जगह की परंपराएं हमेशा ध्यान में रहती हैं. रीवा में ऐसा ही कुछ कर रहे हैं गुजरात के मूल निवासी मधुकर धोलकिया, जो पिछले 20 सालों से पक्षियों को दाना देते आ रहे हैं.

पक्षियों को दाना देते मधुकर धोलकिया


दरअसल मधुकर धोलकिया मूलत: गुजरात के हैं और यहां की एक परंपरा रही है कि वहां का हर परिवार पक्षियों को दाना देता है. गुजरात की मान्यता है कि इंसान तो अपना पेट भर लेता है, लेकिन पक्षियों का पेट कैसे भरे. बता दें कि मधुकर धोलकिया ने यहां शिक्षक के रूप में नौकरी भी की और स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद गुजरात के इस पक्षी प्रेम की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए उसे यहां भी कायम रखा. पिछले 20 सालों से मधुकर के घर की छत पर रोजाना हजारों पक्षी आते हैं और प्रतिदिन 7 किलो से लेकर 10 किलो तक चावल खाते हैं. खास बात यह है कि मधुकर अपने पेंशन के रुपयों से अच्छे किस्म का चावल खरीदकर पक्षियों का पेट भरते हैं.

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पक्षियों को दाना देते मधुकर धोलकिया


मधुकर को हजारों पक्षियों को दाना खाते देखना बहुत सुखद लगता है. स्वस्थ और तंदुरुस्त पक्षियों को हमेशा दाना मिलता रहे और भविष्य में भी यह सिलसिला जारी रहे, उसके लिये मधुकर ने तीन लाख रुपयों का ट्रस्ट भी बना रखा है. आने वाले समय में उनके नहीं रहने पर भी यह सिलसिला जारी रहे, वे उसकी भी व्यवस्था में लगे हैं. मधुकर समाज सेवा के अन्य कार्य भी करते हैं.

Intro:पूरे हिन्दुस्तान के हर प्रांत की अपनी बोली भाषा रीति रिवाज और परंपराएं हैं जो सदैव जीवित रहेगी चाहे उस प्रांत का व्यक्ति कहीं भी जा कर बस जाये बड़े बुजुर्गों व वंश परंपरा के अनुसार व्यक्ति कहीं भी रहे वह भूल नहीं सकता व अपनी परंपराओं को अंतिम समय तक जीवित रखने का प्रयास करता है।रीवा में ऐसा ही कुछ कर रहे हैं गुजरात के मूल निवासी मधुकर धोलकिया जो लगभग 70 वर्ष पूर्व रीवा आकर बस गये हैं। मधुकर धोलकिया जी मूलतः गुजरात के हैं और गुजरात की एक परंपरा रही है कि वहां के हर परिवार के लोग पक्षियों को दाना देते है गुजरातियों का यह मानना है कि इंसान तो अपना पेट भर लेता है पर पक्षियों का पेट कैसे भरे।




Body: यहां शिक्षक के रूप में नौकरी भी की व स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद गुजरात की इस पक्षी प्रेम की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए उसे यहां भी कायम रखा।उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए 73 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक मधुकर धोलकिया जी विगत 20 वर्षों से पक्षियों को दाना देते आ रहे हैं ।मधुकर जी के घर की छत पर प्रतिदिन हजारों पक्षी आते हैं और दाना खाने के पहले बड़ी संख्या में एकत्र हो पेड़ों पर घर की मुंडेर पर दिन निकलने का इंतजार करते हैं जब खेतों में खाने के लिये मिलता है तो कम आते हैं और भूखे रहने पर हजार की संख्या में कबूतर और तोते आते हैं। और उनके घर की छत पर एक दो नहीं हजारों पक्षी आते हैं और प्रतिदिन सात किलो से लेकर दस किलो तक चावल खाते हैं और यह सारा खर्च मधुकर जी अपने पेंशन के रुपयों से अच्छे किस्म का चावल खरीद कर पक्षियों का पेट भरते हैं मधुकर जी को हजारों पक्षियों को दाना खाते देखना बहुत सुखद लगता है स्वस्थ व तंदुरूस्त पक्षियों को हमेशा दाना मिलता रहे व भविष्य मे भी यह सिलसिला अनवरत जारी रहे उसके लिये तीन लाख रुपयों के ट्रस्ट भी बना रखा है आने वाले समय में उनके न रहने पर भी यह सिलसिला जारी रहे उसकी भी व्यवस्था में लगे हैं। साथ ही समाज सेवा के अन्य कार्य भी करते हैं। 


 वी.ओ.02: पूरे विश्व में जीव जंतुओं से लेकर पक्षियों को बचाने की पहल हर देश के लोग कर रहे हैं और भारत में तो प्रकृति का वरदान है हिमालय से लेकर कन्या कुमारी तक पहाड़ जंगल और पेड़ पौधे हैं जहां हजारों किस्म के पक्षी रहते आये हैं पर बढ़ती आबादी और शहरों के विकास के चलते अब पक्षियों का पलायन शुरू हो गया व इनकी संख्या में भी कमी आ गयी है ऐसे में मधुकर जी के यहां हजारों पक्षियों को देखकर लगता है कि हर शहर हर प्रान्त में ऐसी परंपरा कायम हो जहां पक्षियों को दाना मिले और यह सब सुरक्षित रहे जिससे आने वाली पीढ़ियों तक इन्हें सब देख सके।




Conclusion:...

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