रायसेन। इन तस्वीरों को देखकर आप कोई अंदाजा लगाएं, इससे पहले हम खुद आपको पूरी कहानी बयां कर देते हैं. दरअसल सड़कों पर लेटते ये लोग अपनी 45 साल पुरानी आस्था और परंपरा को निभा रहे हैं. इसमें महिला, पुरुष, बच्चे और बुजुर्ग सब शामिल हैं. लेकिन सड़क पर इन श्रद्धालुओं की जान पर हमेशा खतरा बना रहता है.
यात्रा पूरी होने में लगते हैं दो दिनइस परंपरा को निभाने के लिए जिले के उदयपुरा के लोग हर साल 6 किलोमीटर तक पिंड भरते हुए नर्मदा घाट बोरास तक जाते हैं जिसमें करीब दो दिन लग जाते हैं. पिंड भरना एक कठिन तपस्या है, लेकिन लोगों की आस्था के आगे सब बेमानी हो जाता है. पिंड भरने जा रहे भक्तों में किसी की मन्नत पूरी हुई है तो कोई मन्नत मांगने जा रहा है.
प्रशासन नहीं करता कोई इंतजाम
अस्था से भरपूर इस परंपरा को तो लोग जान जोखि में डालकर निभाते हैं. लेकिन प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है. स्टेट हाइवे पर आस्था के इस सैलाब के लिए प्रशासन कोई इंतजाम नहीं करती. सड़क के दोनों तरफ से गाड़ियां आती-जाती रहती हैं लेकिन भक्तों की सुरक्षा का किसी को कोई ख्याल नहीं रहता.
जान पर भारी पड़ रही है आस्था
वहीं श्रद्धालुओं का कहना है कि प्रशासन की तरफ से कभी कोई सुविधा नहीं मिली. अपनी जान जोखिम में डालकर वो इस परंपरा को निभा रहे हैं. वहीं तहसीलदार का कहना है कि पुलिस की ड्यूटी लगी हुई हैं, साथ ही राज्सव के कार्मचारियों को भी लगाया गया हैं. सब कुछ प्रशासन की निगरानी में हैं . लेकिन इन तस्वीरों में ना पुलिस बल दिख रहा, ना ही राजस्व का कोई अमला.
क्या प्रशासन को हादसे का इंतजार ?
पिछले 45 सालों से ये परंपरा लगातार जारी है, लेकिन प्रशासन ने आज तक इसके लिए कोई इंतजाम नहीं किए. तो सवाल ये है कि क्या प्रशासन किसी हादसे का इंतजार कर रहा है. आखिर क्यों नहीं आज तक कोई व्यवस्था की गई.