रायसेन। बाल श्रम महापाप है. बालश्रम रोकने के लिए कड़े कानून बने हैं. देश का भविष्य बनाना है तो बालश्रम को मिटाना है. ऐसे कितने ही स्लोगन हर रोज पढ़ने, सुनने को मिल जाते हैं. लेकिन हकीकत कुछ और ही है. तमाम कानूनों पर आज भी गरीबी और भूख भारी पड़ती है. खिलौने से खेलने की उम्र में नन्हें हाथों में फावड़ा अक्सर देखने को मिल जाते हैं. मासूमों का बचपन मजदूरी की आग में जल रहा है . रायसेन में एक ईंट भट्टे पर इसका ताजा उदाहरण देखने को मिला है.
12 साल में 12 'मन' का बोझ
बचपन एक बार फिर बाल मजदूरी का दंश झेलने को मजबूर है. रायसेन जिले में ईंट भट्टों में देश के नौनिहालों का बचपन झुलस रहा है. जिन हाथों में किताब, पेंसिल होनी चाहिए, उन हाथों में फावड़े नजर आते हैं. मजबूरी माता पिता की भी होगी. उनकी गरीबी बचपन को मजदूरी की आग में झोंक रही है. कारण कई हैं, लेकिन इन मासूमों का तो कोई कसूर नहीं. फिर क्यों इनसे बचपन छीना जा रहा है. ये बच्चे क्या जानें कानून और स्लोगन. इन्हें तो बस मजदूरी करनी है. सुबह से लेकर दिन ढलने तक. मां बाप को चार पैसे देने हैं कमाकर.
ईंट भट्टों में झुलसता बचपन
रायसेन क्षेत्र के कई ईंट भट्टों पर बाल मजदूरी कोई चोरी छिपे नहीं हो रही है. सबसे सामने, खुले आसमान के नीचे. सब देख रहे हैं बचपन को कुचलते हुए. शायद कानून के रखवालों और जिम्मेदार अफसरों की आंखें बंद हैं और कान बहरे. मजदूरी के बोझ से सिसकते बचपन की आवाज इनके कानों तक जाने क्यों नहीं पहुंचती.
साहब, कब होगा एक्शन ?
अब आते हैं प्रशासन पर. जब ईटीवी भारत ने श्रम विभाग के इंस्पेक्टर संदीप पाण्डेय को रायसेन के ईंट भट्टों में लाचार बचपन के बारे में बताया, तो उनका जवाब वही था, जो हर बार होता है. शिकायत मिलेगी तो जांच होगी. कड़े कानून बने हुए हैं. अगर कोई दोषी होगा तो सख्त एक्शन लिया जाएगा.
समाज का कलंक समाज ही मिटाएगा
बचपन मजबूर है. गरीब माता पिता लाचार हैं. बच्चों से उनका बचपन छीनने वाले ताकतवर हैं. कानून को वे अपनी जेब में समझते हैं. अफसर बेफिक्र हैं. देश का भविष्य गारे मिट्टी में पिस रहा है. ये साबित हो चुका है कि सिर्फ कानून बनाकर बाल मजदूरी से मुक्ति नहीं मिल सकती. ये कानूनी समस्या से ज्यादा सामाजिक कलंक है. देश को आगे ले जाना है तो समाज को सोच बदलनी होगी. जो हो रहा है, होने दो के मनोविज्ञान से बाहर आना होगा. इसलिए जब कोई ईंट भट्टे वाला, ढाबे वाला या कोई सेठ मासूमों के बपचन को रौंदता हुआ नजर आए, तो आवाज उठानी होगी. क्योंकि बचपन से खिलवाड़ को चुपचाप देखना भी इसे बढ़ावा देने से कम नहीं है